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क्या राहुल गांधी की जातिगत जनगणना वाली राजनीति कर्नाटक चुनाव को प्रभावित कर सकती है ?

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अखिलेश अखिल
राजनीति में कोई भी नेता कोई बयान ऐसे ही नही देता है। बयान देने के पीछे को साजिश होती है और खेल भी । राहुल गांधी ने पिछले दिनों कर्नाटक की सभा में अचानक जातिगत जनगणना का मुद्दा उठा दिया । कोई सोच भी नही सकता था कि जो राहुल गांधी लगातार बीजेपी और मोदी को अडानी और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर रहे थे ,अचानक जातिगत जनगणना का आलाप क्यों करने लगे । और वह भी कर्नाटक चुनाव के दौरान ही । राहुल के बयान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खडगे ने उसे और भी तेजी से आगे बढ़ाया । अब पूरे देश में जातिगत जनगणना की बात केंद्र की राजनीति बनती दिख रही है ।

लेकिन सवाल तो यह है कि इस जातिगत जनगणना वाले बयान का कोई असर कर्नाटक चुनाव में पड़ेगा ? कर्नाटक की राजनीति में पिछड़ी जातियों का क्या असर है इस पर नजर डालने की जरूरत है ।

कर्नाटक में ओबीसी की कितनी ताकत?

अभी कोई बड़ा आंकड़ा तो सामने नही है और देश के भीतर सभी संडे 2011 के जनगणना वाले जी चल रहे हैं । ऐसे में कर्नाटक में 2011 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या 6.11 करोड़ है। इनमें सबसे ज्यादा हिन्दू 5.13 करोड़ यानी 84 फीसदी हैं। इसके बाद मुस्लिम हैं जिनकी जनसंख्या 79 लाख यानी 12.91 फीसदी है। राज्य में ईसाई 11 लाख यानी लगभग 1.87 फीसदी हैं और जैन आबादी 4 लाख यानी 0.72 फीसदी है।

कहा जाता है कि इसमें 54 फीसदी ओबीसी वोटर्स हैं। 2018 के चुनाव में इनमें से करीब 50 प्रतिशत ने भाजपा को वोट दिया था। इसके अलावा लिंगायत सुदाय की आबादी 19 प्रतिशत है। इनके 70 प्रतिशत वोट भाजपा को ही मिले थे। वोक्कालिगा समुदाय का सबसे ज्यादा वोट जेडीएस और फिर कांग्रेस को मिला था।

फिर राज्य में कुरुबा जाति की आबादी आठ फीसदी, एससी 17 फीसदी, एसटी सात फीसदी हैं। लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं। इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के चलते हुआ था।

अब कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की बात करके ओबीसी बोट में सेंध लगाने की चल चली है । अभी तक कर्नाटक में ओबीसी का बड़ा तपका बीजेपी के साथ ही जुड़ा रहा है लेकिन अब लगता है कि राहुल ने एक बड़ा खेल किया है ।जानकर मान रहे हैं कि अगर ओबीसी का कुछ वोट भी कांग्रेस के पास आता है तो कांग्रेस को इसका लाभ मिलेगा । इसके साथ ही कर्नाटक के ओबीसी भी अब उत्तर भारत के ओबीसी की तरह ही जातिगत जनगणना की मांग करेंगे । खबर है कि राहुल जिस दिन जातिगत जनगणना की बात कर रहे थे उस दौरान बड़ी संख्या में ओबीसी नेताओं से भी इनकी मुलाकात हुई थी । लगता है इसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है और आगे भी इसका लाभ मिलेगा ।

ऐसा नहीं है कि केवल कर्नाटक में ही ओबीसी पर सियासत हो रही है। बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने जातीय जनगणना शुरू करवा दिया है। यूपी में अखिलेश यादव लगातार इसकी मांग कर रहे हैं। इसी तरह तमिलनाडु से लेकर कई राज्यों में जातीय जनगणना की मांग हो रही है। कहा जा रहा है कि इसके जरिए सारे विपक्षी दल भाजपा को घेरना चाहते हैं।

जातिगत जनगणना पर राहुल क्या बोले

राहुल गांधी ने कर्नाटक में पहली चुनावी रैली की। राहुल ने इस दौरान कहा, ‘यूपीए ने 2011 में जाति आधारित जनगणना की। इसमें सभी जातियों के आंकड़े हैं। प्रधानमंत्री जी, आप ओबीसी की बात करते हैं। उस डेटा को सार्वजनिक करें। देश को बताएं कि देश में कितने ओबीसी, दलित और आदिवासी हैं।’

राहुल ने आगे कहा कि अगर सभी को देश के विकास का हिस्सा बनना है तो प्रत्येक समुदाय की आबादी का पता लगाना जरूरी है। कृपया जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी करें ताकि देश को पता चले कि ओबीसी, दलितों और आदिवासियों की जनसंख्या कितनी है। यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो यह ओबीसी का अपमान है। आरक्षण पर से 50 प्रतिशत की सीमा को हटा दें।

कांग्रेस नेता ने यह भी बताया कि सचिव भारत सरकार की रीढ़ होते हैं, लेकिन केंद्र सरकार में दलित, आदिवासी और ओबीसी समुदायों से संबंध रखने वाले केवल सात प्रतिशत सचिव हैं।

राहुल के बयान का कितना असर पड़ेगा?

कई राजनीतिक जानकर कहते हैं कि ‘देश में पिछड़े वर्ग यानी ओबीसी की आबादी करीब 50 फीसदी से ज्यादा है। 2014 के बाद से ओबीसी वर्ग का ज्यादा वोट भाजपा को ही मिला है। विपक्ष में जितने दल हैं, उनमें शामिल ज्यादातर नेता भी ओबीसी वर्ग के ही हैं। ऐसे में सभी पार्टियों का फोकस इन वोटर्स पर है।’

इसके साथ ही जानकर यह भी कहते हैं कि ‘राहुल गांधी को भाजपा ने मोदी सरनेम विवाद में ओबीसी विरोधी बताया। इसी का खूब प्रचार किया गया। ऐसे में राहुल गांधी ने बड़े ही साफ तरीके से खुद का बचाव करते हुए भाजपा पर ही अटैक करना शुरू कर दिया है। राहुल को उम्मीद है कि इससे उनकी पार्टी को न सिर्फ कर्नाटक चुनाव में फायदा हो सकता है, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी बढ़त मिल सकती है। और ऐसा हुआ तो खेल कुछ और ही हो सकता है ।

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