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राजनीति में अगर सब कुछ संभव है तो नीतीश कुमार का पाला बदलना भी असंभव नहीं !

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अखिलेश अखिल 

बिहार की राजनीति में बयान बाजी का दौर चल रहा है। यह समझ से परे हैं कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार काफी समय पहले एनडीए छोड़कर राजद और महागठबंधन के साथ आ गए हैं तो बीजेपी बार -बार यह क्यों कह रही है कि नीतीश कुमार के लिए एनडीए का दरबाजा हमेशा के लिए बंद हो चुका है। जदयू की तरफ से हमेशा यही जवाब मिलता है कि क्या नीतीश कुमार एनडीए में जाना चाहते हैं कि बीजेपी उन्हें लेने को तैयार नाह है ? नीतीश कुमार भी कभी कभार इसी तरह का ब्यान देते हैं। वे अब एनडीए के साथ नहीं जायेंगे। वे यह भी कहते रहे हैं कि उनका एक मात्र लक्ष्य बीजेपी को हराना है और पीएम मोदी को सत्ता से अलग करना है। लेकिन इसके बाद भी बहुत कुछ साफ़ नहीं है। नीतीश कुमार अभी भी शक के दायरे में तो हैं। उनके इधर कई कार्यक्रम ऐसे हुए हैं जो शक की गुंजाइस  को बढ़ाते हैं।            
     बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को समझ पाना अब लोगों के लिए एक तरह से नामुमकिन सा होता जा रहा है। वर्तमान में वो आरजेडी, कांग्रेस और लेफ्ट दलों के साथ मिलकर बिहार में महागठबंधन की सरकार चला रहे हैं।जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति द्वारा दिए गए भोज में उनका पटना से दिल्ली आना और भोज कार्यक्रम में काफी देर तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करने का वाक्या हो या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म जयंती पर उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन करने का वाक्या हो, इन दोनों ही घटनाओं ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या वाकई नीतीश कुमार एक बार फिर से पाला बदलने के बारे में सोच रहे हैं।
      भले ही नीतीश कुमार के मन में अभी कोई नै राजनीति नहीं हो और वाकई में वे इंडिया गठबंधन को ही आगे बढ़ाने में लगे हो लेकिन राजनीति के चतुर खिलाडी लालू यादव भी अब सतर्क ही लग रहे हैं। जानकार यह भी कह रहे हैं कि पिछले बाद भी जब नीतीश कुमार बीजेपी से निकलकर लालू यादव के  और सरकार बनाये थे तब भी उन्होंने कहा था कि अब वे बीजेपी के साथ नहीं जायेंगे। लेकिन कुछ ही महोनो बात वे गए भी और सरकार भी चलाते रहे। तब राजद की तरफ से भी यही कहा गया था कि अब कभी भी नीतीश के साथ राजनीति कह करेंगे। लालू यादव ने तो और भी बहुत कुछ कहा था। लेकिन समय के साथ बहुत कुछ बदलता है। समय बदला और राजनीति भी बदली। फिर से नीतीश कुमार ने पाला बदला और राजद के साथ गए और  सरकार भी चला रहे हैं। 
    लेकिन अभी जस तरह की राजनीति  बिहार में फिर से देखने को मिल रही है उससे साफ़ है कि आने वाले समय में कुछ भी हो सकता है। भले ही बीजेपी के नेता कोई भी बड़ा बयान दे रहे हों लेकिन सब जानते हैं कि अगर नीतीश की इच्छा होगी तो बीजेपी के साथ जाने में बीजेपी के किसी भी नेता  का कुछ भी नहीं चल सकता। वे सीधे पीएम मोदी और शाह से बात कर सकते हैं। लेकिन क्या अब ऐसा संभव है ? क्या नीतीश  कुमार भी ऐसा चाहते हैं ?कहना मुश्किल है। 
                   दरअसल, जिस विपक्षी गठबंधन को नीतीश कुमार ने बनाया उस ‘इंडिया’ गठबंधन में उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं होने से नीतीश परेशान तो हैं लेकिन उनकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण बिहार में लालू यादव द्वारा लोक सभा टिकटों के बंटवारे के फॉर्मूले को अब तक हरी झंडी नहीं देना है। दरअसल, 2014 के लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार जब भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़े थे तो उन्हें सिर्फ 2 सीटें ही मिल पाई थी। वर्ष 2017 में नीतीश कुमार फिर से भाजपा के साथ आ गए और भाजपा के पास 22 और अपने पास सिर्फ 2 सांसद होने के बावजूद उन्होंने 2019 के लोक सभा चुनाव के समय विधायकों की संख्या के आधार पर सीट बंटवारे का फॉर्मूला बना कर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ने के लिए 17 सीटें ले ली और अपने कई सिटिंग सांसदों का टिकट काटकर भाजपा को भी सिर्फ 17 सीटों पर ही लड़ना पड़ा।
                  बताया जा रहा है कि ज्यादा विधायकों की संख्या के आधार पर लालू यादव भी इस बार जेडीयू की सीटों में कटौती कर सकते हैं, हालांकि पिछले लोक सभा चुनाव में आरजेडी को एक भी सीट हासिल नहीं हो पाया था।बिहार में महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियों को लोक सभा चुनाव में एडजस्ट करना है इसलिए नीतीश कुमार चाहते हैं कि बिहार की 40 लोक सभा सीटों में से कौन कहां पर और कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगा, यह जल्द से जल्द तय कर लिया जाए क्योंकि उन्हें अपने सांसदों के बीच भी भगदड़ मचने का डर सता रहा है। लेकिन लगातार मुलाकातों के बावजूद लालू यादव फिलहाल अपने पत्ते खोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
इन हालातों में अक्टूबर का महीना बिहार की महागठबंधन सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। 

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