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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन, भारत पर क्यों है सबकी नजरें और चीन क्यों है बेचैन

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बीरेंद्र कुमार झा
ब्रिक्स देश का 15वां शिखर सम्मेलन का आयोजन जोहांसबर्ग में 22 से 24 अगस्त तक प्रायोजित है। इस शिखर सम्मेलन में भारत, रूस,ब्राजील, चाइना और दक्षिण अफ्रीका के शासनाध्यक्ष ऑन के सम्मिलित होने की संभावना है भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज सुबह मंगलवार की सुबह दक्षिण अफ्रीका में होने वाले 15वें वृक्ष शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए यहां से रवाना हो चुके हैं।

ब्रिक्स देशों की कॉमन करेंसी

ब्रिक्स देशों के बीच आपसी व्यापार को बढ़ावा देने और डॉलर के दबाव को दूर करने के उद्देश्य से ब्रिक्स देशों में संबंधित चीन और रूस जैसे देश ब्रिक्स की एक साधा करेंसी जारी करने का पक्षधर रही है। ब्रिक्स में सम्मिलित देशों में अभी इस बात पर कोई एका नहीं हुई है।कुछ देश एक साझा मुद्रा की वकालत कर रहे हैं तो कई देश अपने नेशनल करेंसी में ही ब्रिक्स देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के पक्षधर हैं।

3 जुलाई को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कह दिया था कि ब्रिक्स की नई करेंसी को लेकर कोई योजना नहीं है और भारत का मुख्य फोकस रुपए को मजबूत करने पर है। हालांकि इसी समय केन्या में रूसी दूतावास के बयान ने एक साझा मुद्रा (common currency) को लेकर ग्रुप की गंभीरता की झलक दे दी थी। रूसी एंबेसी के बयान में कहा गया था कि ब्रिक्स देश जो साझा मुद्रा शुरू करने वाले हैं, वह गोल्ड बैक्ड होगी।ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डि सिल्वा और रूसी विदेश मंत्री सरगई लावरोव ने ब्रिक्स देशों की साझा मुद्रा के समर्थन में बयान भी दिए हैं।चीन और रूस जैसे देश इसे डी डॉलरीकरण की दिशा में बड़ा कदम मानते हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने तो अप्रैल में इसे लेकर कहा भी था कि ब्रिक्स के अंदर व्यापार के लिए हमें यूरो जैसी एक साझा मुद्रा बनानी चाहिए।

ब्रिक्स के विस्तार पर भारत की ओर निगाहें क्यों

आज से शुरू हो रही ब्रिक्स सम्मेलन में जो सबसे अहम मसला होगा, वह है ब्रिक्स का विस्तार।दरअसल यह एक ऐसा मामला है जिसपर सदस्य देशों के बीच सबसे ज्यादा माथापच्ची होने की आशंका है। यह सही है कि भारत को ब्रिक्स के विस्तार पर कोई एतराज नहीं है,और यह बात भारत ने कई बार साफ भी कर दिया है,लेकिन यह भी सच है कि चीन ब्रिक्स में वैसे देशों को प्रवेश दिलाने के लिए पूरा जोर लगा देगा जो या तो उसके पाले में हैं या फिर उसके पाले में आ सकता हैं। इसे लेकर मीडिया के एक खेमे में आशंका भी जताई गई थी जिसके बाद चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में चीन की ओर से भारत को लेकर नरम रुख अपनाया गया और यह भी कहा गया कि पश्चिम देश नहीं चाहता है कि ब्रिक्स मजबूत ग्रुप बन कर उभरे।दरअसल रूस इस वक्त अपनी उलझन में फंसा है। ऐसे में दुनिया की निगाहें इस समय भारत की ओर लगी है कि ब्रिक्स सम्मेलन में भारत अपनी आवाज को कितनी बुलंदी से रख पाता है।

क्या है ब्रिक्स और क्यों है यह इतना महत्वपूर्ण

ब्रिक्स दुनिया की 5 सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समूह है इस ब्रिक्स (BRICS )का हर अक्षर समूह के एक देश की अगुवाई करता है।ये देश हैं – ब्राजील,रूस, भारत ,चीन और दक्षिण अफ्रीका।इस साल दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स का अध्यक्ष है और वहां के जोहांसबर्ग में इस संगठन का 15 वां शिखर सम्मेलन हो रहा है। वैसे ब्रिक्स का मुख्यालय चीन के शंघाई में है।

जानकारों का कहना है कि वर्ष 2050 तक ब्रिक्स देश मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज के मामले में अगवा होंगे और कच्चे माल के प्रमुख सप्लायर भी हो जाएंगे। इसमें भी चीन और भारत मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसिंग के प्रमुख सप्लायर होंगे तो रूस और ब्राजील कच्चे माल के सबसे बड़े सप्लायर होंगे।

ब्रिक्स देशों की आबादी दुनिया का लगभग 40% है। वैश्विक जीडीपी यानि सकल घरेलू उत्पाद में इस समूह का हिस्सा लगभग 30% है।ब्रिक्स देश आर्थिक मुद्दों पर एक साथ काम करना चाहते हैं,लेकिन इनमें से कुछ देशों के बीच भरी राजनीतिक विवाद भी है। इन विवादों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सबसे प्रमुख है।

देश जो ब्रिक्स से जुड़ने में दिखा रहे हैं रुचि

ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए दिए गए आवेदन पर ब्रिक्स के सदस्य देश आपसी सहमति से फैसला लेते हैं कि आवेदन करने वाले देश को ब्रिक्स का सदस्य बनना है या नहीं।वर्ष 2020 तक नए सदस्यों को इस समूह से जोड़ने के प्रस्ताव पर खास ध्यान नहीं दिया जाता था,लेकिन इसके बाद इस समूह को विस्तार देने पर चर्चा शुरू हुई है। फिलहाल अल्जीरिया,अर्जेंटीना ,बहरीन इजिप्ट इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और यूएई ने ब्रिक्स समूह से जुड़ने के लिए आवेदन दिए हैं।इसके अलावे अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बेलारूस ,कजाकिस्तान, मेक्सिको ,नाइजीरिया पाकिस्तान, सेनेगल, सूडान ,सीरिया थाईलैंड ट्यूनीशिया, तुर्किए,उरुग्वे, वेनेजुएला और जिंबॉब्वे ने भी इसकी सदस्यता में रुचि दिखाई है।

ब्रिक्स से जुड़ने के लिए क्यों लालायित है कई देश

विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं कि दर्जनों देशों का ब्रिक्स से जुड़ने में रुचि दिखाना इस बात का सबूत है कि अभी तक पश्चिमी देश जिस अर्थव्यवस्था के मॉडल को चला रहे हैं वह पसंद नहीं किया जा रहा है। पूरे विश्व में ऐसे संगठनों की मांग बढ़ी है जो किसी एक प्रमुख शक्ति या बड़े गुट के गुलाम ना हो।दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाएं वैश्वीकरण को बढ़ावा देना चाहती है,लेकिन इसके लिए वे अपने राजनीतिक प्रणाली,संस्कृति ,घरेलू नीतियों विदेशी नीति से समझौता नहीं करना चाहते हैं। ब्रिक्स भी इसी राह पर चलता है। साथ ही एक कॉमन करेंसी में कारोबार के खिलाफ है, जो लोगों को पसंद आ रहा है।

चीन क्यों चाहता है ब्रिक्स का विस्तार और भारत को क्या है इसमें डर

ब्रिक्स के विस्तार में चीन ज्यादा पैरवी कर रहा है। दरअसल वह चाहता है कि ब्रिक्स को पश्चिमी प्रभुत्व को टक्कर देने वाले गुट के तौर पर देखा जाए। इन प्रयासों में चीन को रूस का भी समर्थन है जो फिलहाल यूक्रेन की वजह से कूटनीतिक मोर्चे पर अलग-अलग महसूस कर रहा है। एक चीनी अधिकारी के हवाले से आ रही खबर के अनुसार चीन का मानना है कि अगर हम ब्रिक्स में इतने देश शामिल कर लें, जिसकी कुल जीडीपी विकसित देशों के संगठन G7 जितनी हो तो दुनिया में ब्रिक्स की आवाज और मजबूत होगी ।साथ ही ब्रिक्स में वह ऐसे देशों की शामिल करना चाहता है जो या तो इसके गुट का हो या जो आसानी से इसके गुट में आ जाए। वहीं माना जाता है कि भारत नहीं चाहता है कि ब्रिक्स चीन केंद्रित समूह में बदले या उसकी पहचान अमेरिका विरोधी संगठन के तौर पर हो।

 

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