अखिलेश अखिल
बिहार की बीजेपी यूनिट कहने को जो भी कहे लेकिन सच यही है कि क्या बीजेपी इस स्थिति में हैं जो 40 सीटों के जितने वाले उम्मीदवारों की तलाश कर सकें। अभी तक बीजेपी 40 सीटों की राजनीति नहीं की है। उसकी चुनावी रणनीति पिछले डेढ़ दशक से बीजेपी के साथ ही बनती रही है। लेकिन अब उसे अपनी रणनीति खुद बनानी है। बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि जिन सीटों पर वह अपना उम्मीदवार लोकसभा चुनाव के लिए उतार सकती है क्या उसके पास इतने उम्मीदवार हैं ?और हैं भी तो क्या वह चुनाव जीतने में सक्षम होंगे ? बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती यही है कि बीजेपी से जदयू के हटने के बाद बीजेपी जदयू वाली सीट पर किसे उम्मीदवार बनाती है। पिछले चुनाव में जदयू 17 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और इसमें से 16 सीट वह जितने में सफल रही। बीजेपी भी 17 सीटों पर खड़ी थी और उसके सभी उम्मीदवार चुनाव जीत गए। रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा को 6 सीटें मिली थी और वह भी 6 सीटें जीतने में सफल रही। बिहार में मात्र एक सीट कांग्रेस को मिली थी और राजद को कुछ नहीं मिला था।
लेकिन इस बार माहौल बदल गया है। जदयू ,बीजेपी से अलग हो गई है और बिहार में मजबूत महागठबंधन की सरकार है। उधर नीतीश कुमार को विपक्षी दलों ने बड़ी जिम्मेदारी यह दी है कि अगले लोसभा चुनाव में सभी दलों को एक कर बीजेपी को हराये। नीतीश कुमार इस अभियान में जुट गए हैं। उन्होंने आज ही ममता से मुलाकात कर बीजेपी को हराने का ऐलान भी किया है। उधर ममता बनर्जी ने भी कहा है कि हम सब मिलकर बीजेपी का मुकाबला करेंगे और उसे जीरो पर ला देंगे। लेकिन बिहार की बात करें तो 40 सीटों की लड़ाई में बीजेपी की चुनौती सबसे बड़ी है। अगर भाजपा 2014 के फॉर्मूले पर लड़ती है तो वह 30 सीटों पर लड़ेगी और 10 सीटें सहयोगियों को दी जाएंगी। ध्यान रहे उस समय भी जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ा था और भाजपा छोटी सहयोगी पार्टियों के साथ लड़ी थी और 40 में से 32 सीट पर जीती थी। अगर उसी फॉर्मूले पर टिकट बंटता है तो भाजपा 30 सीट लड़ेगी और उसे बाकी के लिए नए उम्मीदवार तलाशने होंगे। लंबे समय तक जदूय के साथ रहने की वजह से भाजपा के लिए इन सीटों पर अच्छा उम्मीदवार तलाशने में दिक्कत हो रही है।
दूसरी मुश्किल लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों धड़ों यानी पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच एकता बनवाने की है। दोनों अलग अलग सीटों की मांग कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि भाजपा ने चिराग पासवान को दो सीट का प्रस्ताव दिया तो वे राजद की इफ्तार पार्टी में पहुंच गए। उनकी पार्टी के एक नेता का कहना है कि दो सीट तो महागठबंधन में भी मिल जाएगी। वे कम से कम पांच सीट मांग रहे हैं और उनके चाचा पशुपति पारस भी पांच सीट मांग रहे हैं क्योंकि उनके साथ पांच सांसद हैं। भाजपा दोनों को छह से ज्यादा सीट नहीं दे सकती है क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को सीट देनी है और अगर जीतन राम मांझी व मुकेश सहनी भाजपा के साथ जुड़ते हैं तो उनको भी सीटें देनी होंगी। ऐसे में बीजेपी की दिक्क़ते ज्यादा है। हालांकि अभी यह भी तय नहीं है कि माझी और सहनी बीजेपी के साथ जायेंगे ही। एक बात साफ़ है कि उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के साथ जायेंगे। उनको दो चार सीटों की जरूरत है। वह मिल भी सकता है लेकिन इस धमाचौड़ी में उपेंद्र कुशवाहा कितना कुछ कर पाएंगे यह देखना होगा।
बिहार में बीजेपी की बढ़ेगी मुश्किलें ,40 सीटों पर उम्मीदवार उतरना किसी चुनौती से कम नहीं !
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