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मुस्लिम समुदाय से परहेज करने वाली बीजेपी का यूपी निकाय चुनाव में मुस्लिमों पर बड़ा दाव 

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अखिलेश अखिल 

लंबे समय से मुसलमानो से परहेज रखने वाली बीजेपी इस बार मुसलमानो पर दाव लगा रही है। जिस तरीके से यूपी निकाय चुनाव में बीजेपी ने मुस्लिमों  को उम्मीदवार बनाया है उससे साफ़ कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले वह एक नया प्रयोग कर रही है ताकि यह पता चल सके कि मुस्लिमो को साथ लेने के क्या परिणाम आ सकते हैं। हालांकि संघ बीजेपी लंबे समय से मुस्लिमो के बीच में काम में करती रही है लेकिन कभी भी चुनावी मैदान में इस समुदाय को उतारने से परहेज ही करती रही है। इक्के -दुक्के मुस्लिम उम्मीदवारों  को छोड़ दिया जाए तो अभी तक बीजेपी ने थोक  भाव में कभी मुस्लिमो को टिकट नहीं दिए हैं।      
बीजेपी सूत्रों से मिल रही  जानकारी के मुताबिक यूपी के निकाय चुनाव में बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार को पार्टी ने मैदान में उतारा है। खबर के मुताबिक यूपी निकाय चुनाव में 391 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें 5 नगर पालिका परिषद और 35 नगर पंचायतों के अध्यक्ष प्रत्याशियों के अलावा नगर निगमों के पार्षद प्रत्याशी शामिल हैं। इसमें दो पार्षद उम्मीदवार लखनऊ, 21 मेरठ, 13 सहारनपुर और तीन बनारस में है।जानकार बताते है कि बीजेपी ने इस चुनाव में ज्यादा से ज्यादा निकायों को जीतने का लक्ष्य रखा है। इसी कारण उसने अपनी इस थ्योरी का इस्तेमाल किया है। उसने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है। इसे एक प्रयोग के तौर भी देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि निकाय चुनाव में अगर यह प्रयोग सफल रहा तो आगामी लोकसभा चुनाव में इस प्रयोग को दोहराया जा सकता है।
जानकार यह कह रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सपा और बसपा से बड़ी चुनौती मिलने वाली है। क्योंकि दोनों दल सपा और बसपा के पास मुस्लिम वोटरों की बड़ी संख्या है। ऐसे में बीजेपी को लग रहा है कि मौजूदा राजनीति में जिस तरह से मुस्लिम वोट को लेकर खेल चल रहा है अगर उसे नहीं साधा गया तो उसकी मुश्किलें और भी बढ़  सकती है।  लेकिन देखना ये है कि ये है मुस्लिम उम्मीदवारों को मुस्लिम समाज के लोग किस रूप में लेते हैं।                
बीएसपी ने भी निकाय चुनाव में मुस्लिमों पर बड़ा दांव खेला है। इन्होंने पहली बार 65 फीसद उम्मीदवार सिर्फ इस समुदाय से ही उतारे हैं। बीजेपी ने मेयर पद के लिए 17 में 11 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे हैं। जबकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने 4-4 मेयर सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। पिछले विधान सभा चुनाव में बसपा ने मुसलमानो पर बड़ा दाव नहीं खेला था। इसके साथ ही सूबे के अधिकतर मुस्लिम सपा खेमे में चले गए थे। इस बदलाव का असर ये तो कि सपा को काफी सीटें तो मिली लेकिन सरकार बनाने से सपा चूक भी गई। अब यूपी के अधिकतर मुस्लिम सपा के साथ हैं। लेकिन बसपा भी अपनी रणनीति बदल रही है। वहले वह दलित और ब्राह्मणो पर ज्यादा भरोसा करती थी जिसका लाभ उसे नहीं मिला। अब बसपा भी दलित और मुस्लिम समीकरण के सहारे आगे की राजनीति करना चाहती है। ऐसे में बीजेपी भी अब इस खेल में शामिल होकर नए प्रयोग करती दिख रही है।      
 यूपी में बीजेपी काफी पहले से ही पसमांदा मुसलमानो को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही संघ मुस्लिम मोर्चा भी मुस्लिम समाज के बीच अपना दायरा बढ़ा रहा है। ऐसे में कहा  कि निकाय चुनाव के जरिये ही बीजेपी मुसलमानो को भांपने की तयारी कर रही है। अगर इसमें सफलता मिलती है तो संभव है  कि बीजेपी की अगली राजनीति मुस्लिमो को केंद्र में रखकर बनेगी और उस आबादी को साधने के लिए कुछ लोकसभा की सीटें भी छोड़ी जा सकती है। 
            राजनीतिक जानकारों की माने तो पार्टी ने जिन निकायों और वाडरें में मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, उनमें या तो वह कभी जीती नहीं या उनमें चुनाव लड़े नहीं। इन लोगों ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर भरोसा जताकर अल्पसंख्यक समुदाय के बड़े वोट बैंक में सेंध लगाने का तानाबाना बुना है। साथ ही यह संदेश दिया है कि वह इनको अपने से दूर नहीं मानते हैं।
            बीजेपी के अल्पसंख्यक राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की विकास वाली राजनीति पर भरोसा कर मुस्लिम हमारी पार्टी से जुड़ रहा है। हमारी पार्टी ने कभी वोट बैंक की राजनीति नहीं की है। हमारी पार्टी इस समाज का उत्थान चाहती है। निकाय चुनाव में बीजेपी ने बड़ी संख्या में टिकट दिया है। यह जीतकर डबल इंजन सरकार के साथ काम करेंगे और सभी को आगे बढ़ाएंगे।
       बता दें कि 2012 से लेकर अब तक बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय को अपने कैंपेन से दूर रखा है। लेकिन पिछले दो तीन सालों में धीरे धीरे आरएसएस और बीजेपी की तरफ से इनके प्रति सॉफ्ट कॉर्नर दिख रहा है। बीजेपी के अंदर यह धारणा बनी है कि अब इनको हम अलग नहीं रख सकते हैं। अब उन्हें साथ लेकर चल रहे हैं। इसकी शुरूआत पसमांदा से हुई है। इसके बाद अन्य वर्ग को भी जोड़ेंगे। इसका प्रमाण 2024 में देखने को मिलेगा।  

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