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यूपी एनडीए में जातिगत गणना की मांग बढ़ी ,अनुप्रिया ,राजभर के बाद संजय निषाद ने बीजेपी को किया असहज !

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अखिलेश अखिल 
बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद देश की जातीय राजनीति कुलांचे मार रही है। बीजेपी तो कुछ ज्यादा ही असहज है। उसे लग रहा है कि इस जातीय खेल के सामने उसकी धार्मिक राजनीति को पलीता लग सकता है। बीजेपी काफी दबाब में है और उसे लग रहा है कि इसका काट नहीं निकाला गे तो खेल ख़राब हो सकता है। कई जानकार यह भी मान रहे हैं कि आज विपक्षी नेताओं के साथ बीजेपी जो कुछ भी करती दिख रही है और आगे भी करेगी उसके पीछे हजातिगत राजनीति भी एक कारण है। बिहार में जातीय आंकड़े जारी होने से बीजेपी काफी असहज हो गई है और अब वह काम करती दिख रही है  करने से बचती रही है। लेकिन यूपी में जिस तरह से जातीय जनगणना की मांग तेज हो रही है उससे बजप्प की मुश्किलें और भी बढ़ती जा रही है।  
     यूपी में जातीय गणना की मांग बीजेपी की दो सहयोगी पार्टी सुभासपा और अपना दल पहले की कर चुकी है। अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल पहले ही कह चुकी है कि अब समय आ गया है कि सूबे में जातीय गणना कराई जाए ताकि यह पता चले  कि किस समाज की कितनी आबादी है। पटेल के तुरंत बाद राजभर ने भी इसकी मांग कर दी और कहा कि जातीय गणना ाजी की राजनीति ,समाज और देश के लिए जरुरी है और इसे जल्द करानी चाहिए। लेकिन अब निषाद पार्टी ने नेता संजय निषाद ने इससे आगे की बात भी कह दी है। उन्होंने इशारों में और भी बातें कही है। संजय निषाद के बयान के बाद बीजेपी की मुश्किलें और भी बढ़ गई है।           
     बता दें कि निषाद पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के मंत्री संजय निषाद ने यूपी में जाति सर्वेक्षण की अपनी पार्टी की मांग दोहराई है। उन्होंने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि भाजपा यह सुनिश्चित करेगी कि 2024 के लोकसभा चुनावों में सीट-बंटवारे समझौते के तहत उनकी पार्टी को ‘सम्मानजनक संख्या में सीटें’ मिले।       
       संजय निषाद ने कहा, ”हम 1961 की जनगणना नियमावली के अनुसार यूपी में जाति सर्वेक्षण,जनगणना के पक्ष में हैं ताकि सभी जातियों को अपनी संख्यात्मक ताकत के बारे में पता चल सके। हम यह भी मांग करते हैं कि मछुआरों और नाविकों के तटवर्ती समुदाय को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए और उसी के रूप में गिना जाए।” संजय निषाद ने पिछली सपा और बसपा सरकारों पर तटवर्ती समुदाय के हकों को नकारने का आरोप लगाया और कहा कि उनकी पार्टी आगामी 2024 का लोकसभा चुनाव अपने चुनाव चिन्ह पर लड़ेगी।
                  बता दें कि साल 2016 में पार्टी की स्थापना के बाद से, निषाद पार्टी प्रमुख के बेटे प्रवीण निषाद दो बार लोकसभा सांसद रहे हैं, लेकिन किसी अन्य पार्टी के चिन्ह पर। प्रवीण एक बार 2018 के लोकसभा उपचुनाव में सपा के चिन्ह पर गोरखपुर से और 2019 में संत कबीर नगर से भाजपा के चिन्ह पर सांसद बने।
               निषाद के दूसरे बेटे सरवन भी 2022 के यूपी चुनाव में भाजपा के चिन्ह पर चौरी चौरा विधानसभा सीट से विधायक बने। 2022 के यूपी चुनाव लड़ने और जीतने वाले 11 निषाद पार्टी के उम्मीदवारों में से 5 ने भाजपा के प्रतीक पर ऐसा किया।

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