बीरेंद्र कुमार झा
भारतीय जनता पार्टी जैसा की तय माना जा रहा कि अपेक्षाकृत कम प्रतिरोध वाले छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से मुख्यमंत्री का चुनाव अभियान प्रारंभ करेगी ताकि वहां विरोध भी नहीं हो और मध्यप्रदेश तथा राजस्थान जैसे राज्यों पर विरोध का स्वर अपना रहे नेताओं पर असर भी पड़े ,खासकर राजस्थान में जहां वसुंधरा लगभग बगावती मूड में है । आज रविवार को पार्टी के तीनों पर्यवेक्षक अर्जुन मुंडा, सर्वानंद सोनोवाल और दुष्यंत गौतम सुबह की फ्लाइट दिल्ली से छत्तीसगढ़ पहुंच गए हैं। वहां पहुंचने पर बीजेपी कार्यालय में इनका भव्य स्वागत किया गया।यहां ये पहले पार्टी के वरिष्ठ विधायकों से करेंगे और उसके बाद 12:00 बजे इनका पार्टी विधायकों के साथ बैठक होना तय है, जिसमें मुख्यमंत्री का नाम तय होने की संभावना बताई जा रही है।यहां तो खैर शाम तक मुख्यमंत्री का चेहरा सामने आ जाएगा,लेकिन बीजेपी के मुख्यमंत्री चुनाव का असली दंगल तो राजस्थान में हैं जहां कल सोमवार को पर्यवेक्षकों का पार्टी नेताओं से बैठक होने की बात सामने आ रही है।
राजस्थान के पर्यवेक्षक
भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान के लिए जिन तीन पर्यवेक्षकों का चुनाव किया है ,उसमें पूर्व बीजेपी अध्यक्ष वर्तमान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के अलावा सरोज पांडेय और विनोद तामड़े शामिल है। माना जा रहा है माना जा रहा है की ये सोमवार को राजस्थान पार्टी विधायकों के साथ चर्चा कर मुख्यमंत्री का नाम तय करेंगे।बाद में इस नाम पर केंद्रीय नेतृत्व का मुहर लग जाने के बाद मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा कर दी जाएगी।
राजनाथ सिंह की भूमिका
राजनाथ सिंह पूर्व में दो-दो बार भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं।ऐसे में भारतीय जनता पार्टी में उनकी गहरी पहुंच राजस्थान भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और विधायकों तथा सांसदों के बीच है। राजनाथ सिंह अपने इसी पहुंच के बल पर मुख्यमंत्री के नाम पर आम सहमति बनवा सकते हैं। इसके अलावा वसुंधरा राजे को राजनाथ सिंह खेमा का ही माना जाता है। ऐसे में इस बात के कयास लगाये जा रहे हैं की राजनाथ सिंह वसुंधरा राजे को बगावत करने से रोक लें और उसके बदले में वसुंधरा राजे को केंद्र में कोई सम्मानजनक पद और उनके बेटे को राज्य में उपमुख्यमंत्री या अन्य किसी महत्वपूर्ण पदों को स्वीकार करने के लिए राजी कर पिछले 7 दिनों से राजस्थान में चला आ रहा मुख्यमंत्री संकट का समाधान कर दें।
वसुंधरा के बगावत की संभावना
चुनाव परिणाम आने की शुरुआती दिनों में वसुंधरा राजे ने जबरदस्त बगावती तेवर दिखने शुरू कर दिए थे। फोन पर विधायकों को अपने पक्ष में कर एक प्रकार से वे केंद्रीय नेतृत्व को भी चुनौती देने की मूड में दिख रही थी। लेकिन बाद में प्रत्यक्ष तौर पर उनका यह बगावती तेवर थम सा गया।भले ही उनका यह बगावती तेवर थमा दिख रहा है,लेकिन सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार अब वे अंदर ही अंदर अपने मुख्यमंत्री बनने के प्रयास में पूरी तरह से जुटी हुई हैं और ऐसा न होने की स्थिति में हर हथकंडा अपना सकती हैं।
बीजेपी शक्ति परीक्षण के दिन जारी कर सकती है व्हिप
बीजेपी वसुंधरा के बगावती तेवर को नजरअंदाज कर अपने पसंदीदा मुख्यमंत्री का चुनाव कर सकती है।साथ ही साथ यह शक्ति परीक्षण के दिन किसी भी प्रकार की किरकिरी को रोकने के लिए व्हिप जारी कर सकती है,ताकि ज्यादातर विधायक अपनी विधायकी चले जाने के डर से बीजेपी के चुने हुए मुख्यमंत्री के नाम पर मतदान करने के लिए बाध्य हो जाए।
क्या वसुंधरा के बगावत से बीजेपी को सरकार बनने में आएगी संकट
3 दिसंबर को राजस्थान में आए चुनाव परिणाम में विभिन्न पार्टियों को मिले चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो उससे यह स्पष्ट हो जाएगा की वसुंधरा की बगावत बीजेपी की की रंग में भंग कर सकती है या नहीं? 3 दिसंबर को आए इस चुनाव परिणाम में भारतीय जनता पार्टी को 115 सीटें, कांग्रेस को 69 सीटें, बीएसपी को 2 सीटें और अन्य को 13 सीटें प्राप्त हुई।
बात वसुंधरा की बगावत की करें तो चुनाव परिणाम आने के शुरुआती दौर में उनके पक्ष में 20 विधायकों के होने की बात कही जा रही थी, हालांकि बाद में कई नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व पर ही अपना भरोसा जताने की बात कहना प्रारंभ कर दिया था। इसके अलावा उनके बेटे दुष्यंत ने शक्ति आजमाइश के तौर पर 5 विधायकों को एक रिसॉर्ट में ले जाकर रखा था, जिसमें से एक विधायक के पिता ने अपने बेटे को पुलिस की मदद से वहां से छुड़ा लिया और उसके सारे खेलों का भंडाफोड़ हो गया, जिसके बाद बांकी के विधायक भी वहां से निकल गए और उसके शक्ति प्रदर्शन की हवा निकल गई।इसके बावजूद कुल मिलाकर देखा जाए तो जिस 20 विधायकों की बात वसुंधरा राजे कर रही थी, उन सभी विधायकों के वसुंधरा राजे के पक्ष में जाने वाले अधिकतम बगावत करने वाले विधायकों की संख्या को भी शामिल कर लिया जाए तो उनके बगावती विधायकों की संख्या को बीजेपी के जीते हुए उम्मीदवारों की संख्या में से घटा दिया जाए तो भी बीजेपी के पास 84 विधायक विधायक मौजूद रहेंगे। इसके विपरीत इसके विपरीत कांग्रेस के अपने 69 और अन्य 13 निर्दलीय विधायकों को भी जोड़ दिया जाए तो इनकी कुल संख्या 72 तक ही सीमित हो जाती है, जो बीजेपी के बाकी बचे हुए संख्या से काफी कम है। यानी कुल मिलाकर वसुंधरा के विद्रोही तेवर का बीजेपी के राजस्थान के मुख्यमंत्री के चुनाव पर कोई खास असर नहीं पड़ने वाला।