अखिलेश अखिल
इतना तो साफ़ हो गया है कि एक बार फिर से गठबंधन सरकार का स्वर्णकाल आ गया है। शायद देश की जनता भी यही चाहती है। तभी तो इस बार के चुनाव में जनता ने किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया। चुकी सरकार अभी बीजेपी को बनाने की बारी है इसलिए गठबंधन के तिकड़म से अभी बीजेपी को ही गुजरना है।
बीजेपी और मोदी -शाह के लिए यह अग्निपरीक्षा की तरह है। सच तो यही है कि मोदी अब तक जो राजपाट चलाते रहे हैं वह बहुमत के दम पर ही चलाते रहे हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। अगर एनडीए की सरकार बन भी जाती है तो आगे चलकर यह सरकार कई मुद्दों पर बिखर सकती है और इसकी बानगी सरकार बनने से पहले ही दिखने लगी है।
सरकार बनाने जा रही बीजेपी के लिए अभी से मुश्किलें खड़ी हो गई है। दरअसल,एनडीए को अपना समर्थन देने के बदले बिहार के जदयू और आंध्र प्रदेश की तेलगू देशम पार्टी मोदी कैबिनेट में अहम मंत्रालय चाहती है। 12 सीटें जीतने वाले नीतीश कुमार के दबाव से बीजेपी जहां टेंशन में हैं। वहीं सूत्रों का कहना है कि दबाव से निपटने के लिए भाजपा ने छोटे दलों और निर्दलीय सांसदों से बात करना शुरू कर दिया है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, एनडीए की बैठक में सहयोगी दलों को बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि सीसीएस वाले यानी सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति के तहत आने वाले 4 मंत्रालय होम, डिफेंस, वित्त और विदेश किसी को भी नहीं दिया जाएगा। इसके साथ ही बीजेपी सड़क एवं परिवहन मंत्रालय और रेल मंत्रालय के साथ ही लोकसभा स्पीकर का पद भी किसी को नहीं देना चाहती।
इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि मोदी सरकार के 10 सालों के दौरान नितिन गडकरी ने इस मंत्रालय में शानदार काम किया है। उन्होंने कई एक्सप्रेसवे बनाए और हाईवेज की स्थिति भी सुधरी है। इसलिए भाजपा चाहती है कि रिपोर्ट कार्ड मजबूत करने वाले मंत्रालय को अपने पास ही रखा जाए।
जानकार मानते हैं कि पिछले 10 साल के दौरान जैसे सड़क एवं परिवहन मंत्रालय में परिवर्तन देखने को मिला। ठीक उसी तरह नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में रेलवे ने कई अहम बदलाव किए हैं। वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनें चलाने, पटरियों के दोहरी और विद्युतीकरण के साथ ही कई अहम बदलाव किए गए है। इसलिए भाजपा इस मंत्रालय को भी किसी सहयोगी दल को नहीं देना चाहती।
वहीं, लोकसभा स्पीकर के पद को न देने के पीछे कारण बताया जा रहा है कि कभी किसी सहयोगी दल के समर्थन वापस लेने की स्थिति में उसका रोल अहम हो जाता है। इसलिए टीडीपी की नजर स्पीकर के पद पर है ताकि वह सत्ता की कुंजी पकड़ ले। भाजपा इस पद को भी देने से हिचक रही है। बीजेपी को लग रहा है कि स्पीकर का पद अगर घटक दलों को दे दिया गया तो भविष्य की राजनीति ही ख़त्म हो सकती है।
भाजपा चाहती है कि मोदी सहयोगियों को फूड प्रोसेसिंग, भारी उद्योग, ऊर्जा जैसे मंत्रालय सहयोगियों को दिए जाएं। वे मंत्रालय अपने पास ही रखे जाएं, जो सरकार के लिए रिपोर्ट कार्ड को दुरुस्त रखने को जरूरी हैं।
लेकिन अब सवाल है कि क्या जदयू और टीडीपी ऐसा मान जायेंगे ? जानकार कह रहे हैं कि यह सब दबाव की राजनीति है और इस दबाव में अगर बीजेपी आगे बढ़ती है तो संभव ही कि सरकार चल भी जाए लेकिन बीजेपी अपने अजेंडे को लागू नहीं कर पाएगी।
गठबंधन की सरकार चलाने के लिए एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम की भी जरूरत हो सकती है लेकिन क्या बीजेपी ऐसा कुछ कर सकेगी ? ऐसे में साफ़ लगता है कि अगर किसी भी गठबंधन की सरकार बन भी जाती है तो मध्यावधि चुनाव की सम्भावना हमेशा बनी रहेगी।