अखिलेश अखिल
जातिगत गणना और फिर उसके बाद जाति की संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग पर बिहार आगे बढ़ चूका है। तेजी से बहुत कुछ होता दिख रहा है। एक तरफ पांच राज्यों के चुनाव हो रहे हैं तो बिहार में मंडल -कमंडल की लड़ाई को धार देने की कोशिश की जा रही है। वैसी अयोध्या में रामलला मंदिर और प्रभु राम केकी प्राणप्रतिष्ठा की तारीख भी तय हो चुकी है और विहिप आगे की राजनीति को धार देने के लिए अपना अभियान भी चला रही है। अभियान यही है कि 22 जनवरी को अयोध्या में लाखों लोग पहुंचे। भगवान के नारे लगाए जाए और फिर अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए वोट डाले जाए। बस यही मकसद है। यह सब चल रहा है। बीजेपी और संघ को अभी उम्मीद है कि अयोध्या का लाभ कम से कम इस चुनाव तक बीजेपी को मिल भी सकता है।
उधर इंडिया गठबंधन के लोग अपने अपने राज्यों को ठीक करने में जुटे हैं लेकिन बिहार की राजनीति कुछ अलग ट्रैक पर ही दौड़ रही है। नितीश कुमार अब आगे की राजनीति में बीजेपी के लिए कोई स्पेस नहीं छोड़ना चाहते। बीजेपी जिस तरह से उनका फजीहत कर रही है इससे आजिज आ चुके नीतीश बीजेपी को उस छोड़ पर पहुंचाने को तैयार हैं जहाँ से वह वापस कर ही नहीं सकती। हालांकि यह सब अतिशियोक्ति हो सकती है। राजनीति में कब ,कौन और कैसे पनप जाता है यह कोई नहीं जानता। खैर नीतिश कुमार की चाहत यही है कि बिहार की पूरी राजनीति उनके कब्जे में आ जाए। आरक्षण की अगली लड़ाई को उसी परिपेक्ष में देखने की जरूरत है।
मंगलवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में जातिगत सर्वे की रिपोर्ट को विस्तार से पेश किया। इस दौरान उन्होंने राज्य में बढ़ती हुई जनसंख्या से लेकर कई पहलुओं पर अपनी राय रखी। इस दौरान उन्होंने राज्य में आरक्षण का दायरा 50% से बढ़ाकर 65% करने का प्रस्ताव विधानसभा में पेश किया। इसमें सवर्णों को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को शामिल नहीं किया गया है। बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार सरकार ने ओबीसी और ईबीसी वर्ग के लिए ये प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव के पास हो जाने के बाद बिहार में आरक्षण का दायरा 75 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।
विधानसभ में पेश प्रस्ताव के मुताबिक अनुसूचित जाति को फिलहाल 16 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 20 फीसदी करने, अनुसूचित जनजाति को 1 फीसदी से बढ़ाकर 2 फीसदी करने, अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलाकर 43 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है।
मुख्यमंत्री ने मंगलवार को बिहार विधानसभा में जो प्रस्ताव दिया, वह अगर फाइनल हो गया तो बिहार की सरकारी नौकरियों में अनारक्षित वर्ग के लिए मात्र 25 प्रतिशत सीटें बचेंगी। सरकारी नौकरियों के बाद सरकार बाकी चीजों में भी यह आरक्षण रोस्टर लागू करेगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को कहा कि जाति गणना की रिपोर्ट के आधार पर बिहार सरकार निर्णय लेगी।
अनुसूचित जाति और जनजातियों की संख्या में वृद्धि के कारण इन्हें मिलने वाले आरक्षण को बढ़ाना पड़ेगा। सरकारी सेवाओं में इनके आरक्षण के अनुपात को तो बढ़ाना ही होगा। पिछड़े वर्ग और अतिपिछड़े के लिए भी आरक्षण बढ़ना चाहिए। मेरा यह कहना है कि जो 50 प्रतिशत आरक्षण है, उसे हम 65 प्रतिशत कर दें। पहले से अगड़ी जातियों को 10 प्रतिशत है तो इस 65 प्रतिशत के बाद कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाएगा। तब अनारक्षित 25 प्रतिशत बचेगा।
बिहार सरकार ने जिन जातियों को सवर्णों में शामिल किया है, उसमें हिन्दू और मुस्लिम धर्म की 7 जातियां हैं। सामान्य वर्ग में भूमिहार सबसे ज्यादा 25.32% गरीब हैं। कायस्थ 13.83% गरीब आबादी के साथ सबसे संपन्न हैं. वहीं, पिछड़ा वर्ग में यादव जाति के लोग सबसे गरीब हैं।
बिहार विधानसभा में मंगलवार को देश का पहला जातिगत आर्थिक सर्वे पेश किया गया। इस रिपोर्ट में बताया गया है। बिहार में पिछड़ा वर्ग के 33.16%, सामान्य वर्ग में 25.09%, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 33.58%, एससी के 42.93% और एसटी 42.7% गरीब परिवार हैं।