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सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी महेश राउत को अंतरिम जमानत दी है। शीर्ष कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े केस में आरोपी राउत को अपनी दादी की मृत्यु के बाद धार्मिक क्रिया में शामिल होने के लिए दो सप्ताह की अंतरिम जमानत दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने 26 जून से 10 जुलाई तक राउत को अंतरिम जमानत दी है। हालांकि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत राउत की अंतरिम जमानत पर रिहाई के नियम और शर्तें तय करेगी।
आदिवासी अधिकार एक्टिविस्ट और शोधकर्ता महेश राउत को एल्गार परिषद मामले में शामिल होने के लिए 2018 में गिरफ्तार किया गया था। तलोजा सेंट्रल जेल में बंद एक्टिविस्ट ने अपनी दादी की मृत्यु के बाद गढ़चिरौली जाने के लिए दो सप्ताह की अस्थायी जमानत मांगी थी।
पुणे के भीमा कोरेगांव गांव में हिंसा के सिलसिले में 6 जून 2018 को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए 16 लोगों में से एक राउत भी थे। जांच एजेंसी का दावा है कि उनके माओवादियों से संबंध है। उनपर 31 दिसंबर 2017 को एल्गार परिषद कार्यक्रम और अगले दिन भड़के दंगों के लिए फंडिंग करने का आरोप लगाया गया है।
यह मामला 31 दिसंबर 2017 को महाराष्ट्र के पुणे के शनिवारवाड़ा में कबीर कला मंच के कार्यकर्ताओं द्वारा आयोजित एल्गार परिषद के दौरान भड़काऊ भाषण देकर लोगों को उकसाने से संबंधित है। आरोप है कि इस आयोजन से विभिन्न जाति समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा दिया गया, जिससे दंगा हुआ।
पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने इसी मामले में जेल में बंद गौतम नवलखा को जमानत दे दी थी। नवलखा पर माओवादियों के साथ कथित संबंध का भी आरोप है। उन्हें 14 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि 73 वर्षीय गौतम नवलखा को उनकी बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य के चलते सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नवंबर 2022 से घर में नजरबंद कर दिया गया था।
नवलखा और अन्य लोगों को पुणे पुलिस और बाद में एनआईए ने सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने और एक जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव स्मारक पर जातीय दंगे भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया था। इस दौरान भड़की हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। जबकि कई लोग घायल हुए थे।