न्यूज डेस्क
माफिया डॉन अतीक अहमद हत्या का मामला अब सुप्रीम अदालत पहुंच गया है। हालाकि अतीक अहमद एक बड़ा गैंगस्टर था। उस पर दर्जनों आपराधिक मामले दर्ज थे । उसके इशारे पर कई लोगों की जाने भी गई थी लेकिन पुलिस कस्टडी में जिस तरह से उसे और उसके भाई अशरफ की हत्या की गई वह कई सवालों को जन्म दे रहा है । अतीक की हत्या करने वाले तीनों हत्यारे ज्यादा उम्र के भी नही हैं लेकिन जिस तरह से अतीक को गोली मारने के शूटरों ने जय श्रीराम के नारे लगाए उसके बाद कहा जा रहा है हत्यारे किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े हैं। जानकर कह रहे हैं कि यह एक नए तरह को हिंदुत्व मिलिशिया की शुरुआत है जो हिंदुओं के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का प्रयास है। यह प्रयास कैसे शुरू हुआ इसकी जांच जरूरी है। ऐसे में वर्ष 2017 के बाद से हुई कुल 183 मुठभेड़ की जांच की मांग को लेकर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका एडवोकेट विशाल तिवारी ने दायर की है। जिसमें 2017 के बाद से हुई 183 मुठभेड़ों की जांच की मांग की गई है। एडवोकेट विशाल से सुप्रीम कोर्ट से इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति का गठन करने की मांग की है।
याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश पुलिस ने डेयरडेविल्स बनने की कोशिश की है। इसके अलावा याचिका में कानपुर बिकरू एनकाउंटर केस 2020 जिसमें विकास दुबे और उसके सहयोगियों की जांच और सबूतों को रिकॉर्ड करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को फर्जी मुठभेड़ों का पता लगाने के लिए निर्देश जारी करने की भी मांग की है। इसके अलावा याचिका में एडवोकेट विशाल ने अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ की हत्या के बारे में भी पूछताछ करने की मांग की है, जिनकी पुलिस की मौजूदगी में हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि उनकी जनहित याचिका कानून के शासन के उल्लंघन और उत्तर प्रदेश द्वारा की जा रही दमनकारी पुलिस बर्बरता के खिलाफ है। याचिकाकर्ता ने अदालत को अवगत कराया है कि उसने विकास दुबे के कानपुर मुठभेड़ से संबंधित एक मामले में भी अदालत का दरवाजा खटखटाया है। इसी तरह की घटना उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अतीक के मामले में भी दोहराई गई, जिसमें अतीक के बेटे असद की मुठभेड़ में मौत हुई है। जबकि अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हमलावरों द्वारा तब हत्या कर दी गई जबकि वे पुलिस हिरासत में थे। याचिकाकर्ता अधिवक्ता विशाल तिवारी ने कोर्ट में कहा कि इस तरह की घटनाएं लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए गंभीर खतरा हैं। इस तरह की हरकतें अराजकता की स्थापना और पुलिस राज्य का प्रथम दृष्टया विकास हैं।