न्यूज़ डेस्क
राजनीति में कौन किसे आगे बढ़ता देखना चाहता है। कोई भी पार्टी भले ही साथ -साथ की राजनीति करे लेकिन वह यह नहीं चाहती कि उसकी सहयोगी पार्टी जाए। लगता है यही हाल इस समय कांग्रेस का है। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस का ग्राफ आगे बढ़ता जा रहा है। चुनाव के परिणाम चाहे जो भी हो लेकिन जनता के बीच उसकी पैठ बनती और जनता कांग्रेस और उसके नेताओं को सुन भी रही है। खासकर राहुल की राजनीति आज सबसे आगे है। जनता को लगने लगा है कि राहुल जो कह रहे हैं वही सही है लेकिन यह भी समझ रही है कि राहुल और कांग्रेस में भी अंतर है। लेकिन मजे की बात तो यह है कि पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की सहयोगी पार्टी ही उसका खेल बिगाड़ रही है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के अंदर जिस तरह का विवाद शुरू हुआ है वह अनायास नहीं है। ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस की सहयोगी पार्टियां इन चुनावों में उसका खेल बिगाड़ने के लिए खेल कर रही हैं। चाहे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी हो या नीतीश कुमार की पार्टी जदयू हो या शरद पवार की पार्टी एनसीपी या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सब किसी न किसी रूप में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए काम कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी के नेता इस बात को समझ रहे हैं लेकिन इस समय उनको पता है कि झगड़ा बढ़ाने से कांग्रेस को नुकसान होगा। इसके बावजूद मध्य प्रदेश में कमलनाथ की झल्लाहट से साफ हो गया कि वे समाजवादी पार्टी का खेल समझ गए हैं।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सीधी लड़ाई भाजपा के साथ है। हर बार ऐसा ही होता है। लेकिन इस बार समाजवादी पार्टी गठबंधन की दुहाई देकर सीटों की मांग करने लगी और कांग्रेस से बात किए बगैर उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी। इसे देखते हुए कांग्रेस ने भी बात नहीं कि और उम्मीदवार घोषित कर दिए। इससे सपा को बहाना मिल गया और उन्होंने कांग्रेस का खेल बिगाड़ना शुरू कर दिया। सपा ने 33 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए। सबको पता है कि राज्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच बहुत नजदीकी मुकाबला है। पिछले विधानसभा चुनाव में 84 सीटों का फैसला 10 हजार से कम वोट से हुआ था, जिसमें 44 भाजपा ने और 40 कांग्रेस ने जीती थी। ऐसी सीटों पर सपा के उम्मीदवारों के वोट काटने से खेल बिगड़ सकता है। इसके अलावा अखिलेश यादव के अपमान का मुद्दा बना कर सपा पिछड़ी जाति में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा रही है।
इसी तरह आम आदमी पार्टी ने भी सभी राज्यों में उम्मीदवार उतार दिए हैं। हालांकि उनके उम्मीदवार ज्यादा वोट लेने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन कुछ सीटों पर वोटकटवा की भूमिका निभा कर कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस बीच एनसीपी प्रमुख शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले की नजदीकी आम आदमी पार्टी के नेताओं से बढ़ी है। शराब घोटाला मामले में गिरफ्तार संजय सिंह का सबसे ज्यादा समर्थन एनसीपी ने किया है। कांग्रेस का समर्थन सशर्त था लेकिन एनसीपी ने बिना शर्त समर्थन किया। दोनों में अंदरखाने तालमेल होने की बात है। उधर बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा नेताओं को दोस्त बता कर कांग्रेस की पिछली सरकार पर निशाना साधा और उसके बाद सपा ने विपक्षी गठबंधन बनाने का श्रेय नीतीश कुमार को पटेल बताते हुए दिया। इसका मकसद भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना था। कांग्रेस बहुत बातो को समझ रही है। उसका लक्ष्य चुनाव जीतने पर है। कांग्रेस के सभी शीर्ष नेता गठबंधन के खेल को समझ रहे हैं लेकिन अभी कोई कुछ बोल नहीं रहा। कांग्रेस जान रही है कि पांच राज्यों के चुनाव में अगर वह जीत न सकी तो लोकसभा चुनाव में सहयोगी पार्टी उसे टिकट भी नहीं देगी।
असल में गठबंधन में शामिल विपक्षी पार्टियां नहीं चाहती हैं कि कांग्रेस की स्थिति मजबूत हो। अगर पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस मजबूत होती है तो लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे में कांग्रेस बेहतर मोलभाव करने की स्थिति में रहेगी। ऐसे में सहयोगी पार्टियों को कांग्रेस के लिए ज्यादा सीटें छोड़नी होंगी। इसलिए कई सहयोगी पार्टियां चाहती हैं कि पांच राज्यों में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन नहीं करे। इससे कांग्रेस बैकफुट पर आएगी और सीट बंटवारे की बातचीत में सहयोगी पार्टियां उसको दबा लेंगी।