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बिहार की सियासत में अटकलों के बीच लालू यादव के आवास पर भी बढ़ी गतिविधियां

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अखिलेश अखिल
अगर राजनीति संभावनाओं का खेल है तो इस बात की भी सम्भावना हो सकती है कि नीतीश कुमार पाला बदले भी और उनका खेल ही ख़त्म हो जाए। अगर नीतीश कुमार बिहार को अपने इशारे पर नाचने को तैयार हैं तो इस बात की भी सम्भावना बी बढ़ गई है कि नीतीश कुमार के बड़े भाई और मौजूदा बिहार की सत्ता की सहयोगी पार्टी राजद और उसके मुखिया भी कोई बड़ा खेल कर जाए। जिस तरह से राजद प्रमुख लालू यादव के पटना स्थित आवास पर गतिविधियां बढ़ी है उससे तो यही कहा जा सकता है कि वाकई में बिहार में कोई बड़ा खेला फिर से होने की सम्भावना है। हालांकि इसकी पुष्टि अभी किसी भी पार्टी की तरफ से नहीं है। लेकिन सभी दलों के बीच बेचैन जरूर है। बैठके भी हो रही है। बीजेपी की बैठक कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। पटना से लेकर दिल्ली तक बैठक जारी है। बिहार के नेताओं का दिल्ली में आना जाना लगातार बढ़ा है कई तरह के बयान भी आ रहे हैं।

सबसे बड़ा बयान तो सुशील मोदी का आया है ,सुशील मोदी बिहार के कद्दावर बीजेपी नेता है और वे लगातार नीतीश कुमार के साथ की ही राजनीति करते रहे है और नीतीश मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिराजते रहे हैं। सुशील मोदी कल तक तो यही कह रहे थे कि नीतीश अब कही के नहीं रहेंगे। उनकी पार्टी टूट जाएगी। बिहार में फिर से जंगल राज आएगा। बिहार बर्बाद हो रहा है। की और बाते भी वे कहते रहे हैं। लेकिन अभी दो चार दिनों में उनके सुर बदले हुए हैं। अगर उनके ही बयान को आधार माना जाए तो बिहार में कुछ भी हो सकता है। नीतीश फिर से बीजेपी के साथ जा सकते हैं और वे खुद भी उपमुख्यमंत्री बन सकते हैं।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बिहार में चल रहे राजनीतिक नाटक के बीच, जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार 28 जनवरी को बीजेपी के साथ मिलकर फिर से नयी सरकार में मुख्यमंत्री की शपथ ले सकते हैं। जबकि बीजेपी के सुशील मोदी नए उप मंत्री हो सकते हैं। लेकिन इसी दौर में जब सुशील मोदी से बात की गई तो उन्होंने जो कहा उसके मायने बहुत कुछ हैं। सुशील मोदी ने कहा कि “जो दरवाजे बंद हैं वे खुल सकते हैं”, और राजनीति को “संभावनाओं का खेल” है।तो पहली बात तो यह ही कि गर राजनीति संभावनाओं का खेल है तो बड़ा सवाल यही ही कि क्या नीतीश के साथ बीजेपी की सर्कार बनती है तो क्या बिहार फिर से विकास के पथ पर आगे निकल जाएगा? क्योंकि अभी तक तो बिहार में नीतीश और बीजेपी की ही लम्बे समय तक सरकार चली है और बिहार का कितना विकास हुआ है यह सब जानते हैं ? खेल केवल यही होता है कि दल तो बदल जाते हैं लेकिन सीएम तो नीतीश कुमार ही रहते हैं। खैर आगे क्या होगा इसे देखने की जरूरत है।

उधर लालू यादव भी अपनी तैयारी कर रहे हैं। उनकी तैयारी यही है कि अगर नीतीश जाते भी हैं तो क्या बिहार में राजद और महागठबंधन की सरकार बची रह सकती है ?मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, लालू ने जीतन राम मांझी के बेटे संतोष मांझी को महागठबंधन में शामिल होने पर उपमुख्यमंत्री पद के साथ-साथ कुछ लोकसभा सीटों की पेशकश की थी। हालाँकि, संतोष मांझी ने कथित तौर पर इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है और कहा है, “हम एनडीए के साथ हैं; ऐसे प्रस्ताव आते रहते हैं।”

यह बढ़त लालू यादव के खेमे से नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी बीजेपी से दोबारा हाथ मिलाने के आश्चर्यजनक कदम के बाद आई है। लालू के खेमे में राज्य की सत्ता में बने रहने के लिए 122 के आंकड़े तक पहुंचने के लिए नए सिरे से गणित चल रहा है।राजद को अब 122 के आंकड़े तक पहुंचने के लिए आठ अतिरिक्त विधायकों की आवश्यकता होगी।
आठ विधायक राजद के पास आ जाते हैं तो बिहार में कुछ और भी हो सकता है। जीतन राम मांझी की पार्टी अभी भले ही लालू के ऑफर को नकार करि है लेकिन अगर सरकार बनाने की बात आएगी तो माझी यह दाव भी स्वीकार कर सकते हैं। भीतर से माझी की पार्टी नीतीश के खिलाफ ही है। आगे क्या कुछ होता है इसे देखने की जरुरत है।

हालांकि इसी राजनीतिक अनिश्चितता के बीच लोक जनशक्ति पार्टी के पूर्व अध्यक्ष चिराग पासवान ने खुलासा किया कि वह स्वयं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ लगातार संपर्क में हैं। उन्होंने बिहार के मौजूदा खेल को काल्पनिक करार दिया। इस सवाल पर कि क्या नीतीश के गठबंधन सहयोगी बनने पर वह उनके साथ सहज महसूस करेंगे, पासवान ने कहा, “ये काल्पनिक प्रश्न हैं जिनका मैं उत्तर नहीं देना चाहूंगा। ऐसी अटकलों का कोई अंत नहीं हो सकता।”

उधर आज ही सपा नेता अखिलेश यादव ने कनौज में पत्रकारों को कहा कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक है और नीतीश कुमार गठबंधन में हैं और रहेंगे। वे कही नहीं जा रहे हैं। जो हो रहा है वह सब बीजेपी की राजनीति है। हमारी भी इस राजनीति पर नजर है लेकिन एक बात साफ़ है कि गठबंधन मजबूती से आगे बढ़ रहा है। अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार तो कही नहीं जा रहे हैं लेकिन कांग्रेस को ममता बनर्जी से बात करनी चाहिए और उन्हें मानाने की जरूरत है। ऐसे में अखिलेश यादव की बातों को माना जाए तो नीतीश का यह सब खेल बीजेपी द्वारा संचालित है। लेकिन अगर ऐसा है भी जदयू को साफ़ -साफ़ बताना भी चाहिए।

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