न्यूज़ डेस्क
भारतीय अखाड़ा परिषद् ने 13 संतों और महामंडलेश्वरों को पैसे बनाने के आरोप में निष्कासित कर दिया है। इन संतों पर बड़े पैमाने पर पैसे बनाने के आरोप के साथ ही धार्मिक कार्यों में अवहेलना करने का भी आरोप लगया गया है। इसके साथ ही 112 संतों को नोटिस भी जारी किया गया है। अगर समय पर उचित जवाब नहीं देते हैं तो उन्हें भी निकाल बहार किया जाएगा। निष्कासित किये गए संत अब महाकुम्भ में भी भाग नहीं ले पाएंगे।
अब तक जूना अखाड़े ने 54, श्री निरंजनी अखाड़े ने 24 और निर्मोही अनी अखाड़े ने 34 संतों को नोटिस दिया है। इसमें 13 महामंडलेश्वर, 24 मंडलेश्वर और महंत शामिल हैं। निर्मोही अनी अखाड़े के अध्यक्ष और अखाड़ा परिषद (महानिर्वाणी समूह) के महामंत्री श्रीमहंत राजेंद्र दास ने आधा दर्जन संतों को अखाड़े से निष्कासित कर दिया है। इनमें नासिक के महामंडलेश्वर जयेंद्रानंद दास, चेन्नई के महामंडलेश्वर हरेंद्रानंद, अहमदाबाद के महंत रामदास, उदयपुर के महंत अवधूतानंद और कोलकाता के महंत विजयेश्वर दास शामिल हैं।
इनके अलावा नासिक के आठ, उज्जैन के सात, हरिद्वार के छह, द्वारका के दस और रांची के एक संत को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। वहीं श्री निरंजनी अखाड़े ने महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी को निष्कासित कर उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है। इनके अलावा सात संतों को निष्कासित किया गया है।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् यानी एबीएपी और श्री निरंजनी अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने कहा, ”छह संतों की आंतरिक जांच में कई महामंडलेश्वर और संत खरे नहीं उतरे। निरंजनी अखाड़े की महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी को निष्कासित कर पुलिस कार्रवाई की गई है। जो भी गलत होगा उसके खिलाफ आगे भी कार्रवाई की जाएगी। अखाड़े से निष्कासित लोगों को महाकुंभ-2025 में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।”
जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि ने कहा, “संतों के कामकाज की जांच चल रही है। कुछ की स्थिति संदिग्ध है, उन्हें नोटिस देकर जवाब मांगा गया है। उचित जवाब नहीं मिलने पर उन्हें निष्कासित कर दिया जाएगा।”
प्रत्येक अखाड़े का संचालन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, उपसचिव, मंत्री, उपमंत्री, कोतवाल, थानापति आदि पदाधिकारियों द्वारा किया जाता है। 15-20 वर्षों तक समर्पित भाव से कार्य करने वाले पदाधिकारियों को अखाड़े में पद दिया जाता है। इनकी नियुक्ति चुनाव के माध्यम से होती है। वहीं, पांच वरिष्ठ और विद्वान सदस्यों को पंच परमेश्वर की उपाधि दी जाती है। ये अखाड़े के आश्रम, मठ मंदिर, गुरुकुल का संचालन करते हैं।
अखाड़ों के पदाधिकारी और पंच सभी संतों पर नजर रखते हैं। जिन संतों के खिलाफ शिकायतें मिलती हैं और जिनकी गतिविधियां संदिग्ध होती हैं, उनके वहां संबंधित अखाड़े के सचिव, मंत्री, संयुक्त मंत्री स्तर के पदाधिकारी को भेजा जाता है। वे वहां 15 से 20 दिन तक रुकते हैं और सारी जानकारी जुटाते हैं। यह रिपोर्ट अखाड़े के पंच परमेश्वर के समक्ष रखी जाती है। सभी पहलुओं पर चर्चा करने के बाद निष्कासन या नोटिस देने की कार्रवाई की जाती है।