अखिलेश अखिल
आज सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना ने उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमे शहरो ,सड़को और गलियों के नाम बदलने के लिए एक रेनेमिंग कमीशन यानी नाम बदलो आयोग बनाने की मांग की गई थी। इस याचिका को अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय ने दायर किया था और कहा था कि विदेशी आक्रांताओं ने देश पर हमला करके कई जगहों के नाम बदल दिए हैं और उन्हें अपना नाम दे दिया। याचिका में यह भी कहा कि आजादी के उन जगहों के प्राचीन फिर से रखने को गंभीर नहीं है। याचिका में यह भी दर्ज किया गया था कि धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के हजारो जगहों दिए गए हैं ऐसे में इस तरह जरूरत है ताकि अपनी संस्कृति को फिर स्थापित किया जा सके।
लेकिन शीर्ष अदालत ने इस याचिका को बहुत जल्द कर दिया और सख्त लहजे में यह भी कहा कि देश अतीत का कैदी बनकर नहीं रह सकता। अदालत ने कहा धर्मनिरपेक्ष भारत सभी का है। देशो को आगे ले जाने वाली बातो को सोंचना चाहिए कोर्ट ने याचिका को उपद्रव ,की मंशा वाला करार दिया क्योंकि ऐसा करने से मुद्दा जिन्दा रहेंगे और स्थिति बनी रहेगी। अदालत ने उपाध्याय को कहा कि आप मुद्दा को ज़िंदा रखना चाहते हैं और देश को उबाल रखना चाहते हैं। आपकी उंगलियां एक विशेष समुदाय पर उठती है। आप किसी ख़ास संप्रदाय को निशाना बना रहे हैं। आप हाशिल क्या करना चाहते हैं ?
याचिका की हर पंक्ति में ऐसी -ऐसी बातें कही गई थी जिससे अदालत भी स्तब्ध हो गया। याचिका में कहा गया था कि शक्तिपीठ के लिए प्रसिद्ध किरितेश्वरी का नाम बदल कर मुर्शिदाबाद रखने ,प्राचीन कर्णावती का नाम अहमदाबाद ,हरिपुर को हाजीपुर ,रामगढ़ को अलीगढ कर दिए गए। बता दें कि याचिका ने शहरो के अलावे कस्बो के नाम को भी बदले जाने की बात कही गई थी। याचिका में ढीली की कई सड़को था रोड ,लोधी रोड ,हुमायु रोड ,चेम्सफोर्ड रोड ,हेली रोड जैसे नामो को बदलने की जरूरत बतायी गई थी।
लेकिन शीर्ष अदालत इस याचिका को देखकर ही हैरान हो गया। अदालत ने याचिका में की गई मांग पर हैरानी जताई। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने याचिका में लिखी गई बातों को काफी देर तक पढ़ने के बाद कहा कि आप सड़को का नाम बदलने को अपना मौलिक अधिकार बता रहे हैं ? आप चाहते हैं कि हम गृह मंत्रालय को निर्देश दें कि वह इस विषय के लिए आयोग का गठन करे ? जस्टिस नागरत्ना ने आगे कहा कि हिन्दू एक धर्म नहीं जीवन शैली है। इसमें कट्टरता की जगह नहीं। बांटों और राज करो की नीति अंग्रेजो की थी। अब समाज को बांटने की कोशिश नहीं होनी चाहिए।
इस पर याचिका में खुद ही पैरवी कर रहे उपाध्याय ने कहा कि , “सिर्फ सड़कों का नाम बदलने की बात नहीं है। इससे ज़्यादा ज़रूरी है इस बात पर ध्यान देना कि हज़ारों जगहों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का काम विदेशी हमलावरों ने किया।
इस तर्क पर जस्टिस जोसेफ ने कहा, “आपने अकबर रोड का नाम बदलने की भी मांग की है। इतिहास कहता है कि अकबर ने सबको साथ लाने की कोशिश की। इसके लिए उसने दीन ए इलाही जैसा अलग धर्म शुरु किया।” वहीं बेंच में शामिल जस्टिस नागरत्ना ने कहा, “हम पर हमले हुए, यह सच है। क्या आप समय को पीछे ले जाना चाहते हैं? इससे आप क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में समस्याओं की कमी है? उन्हें छोड़ कर गृह मंत्रालय अब नाम ढूंढना शुरू करे?”
इसके बाद अश्विनी उपाध्याय ने कोशिश की कि कोर्ट याचिका को सरकार के पास विचार के लिए भेज दे। लेकिन कोर्ट ने ऐसी इजाजत न देते हुए यह कहकर खारिज कर दिया कि, “आप सिर्फ मुद्दा गर्म रखना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्ष संस्थाओं से ऐसा कुछ करवाना चाहते हैं जो धर्मनिरपेक्ष नहीं है। हमारा स्पष्ट मानना है कि हम अतीत के कैदी बन कर नहीं रह सकते। इस बात की अनुमति नहीं दी जा सकती कि अतीत आज के भाईचारे को खत्म करे।”बेंच ने कहा कि इतिहास को इस तरह नहीं देखना चाहिए और न ही दिखाना चाहिए कि वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी उससे डर जाए।