नई दिल्ली: गोद लिए बच्चे को भी वास्तविक संतान की तरह ही अधिकार है और दोनों के बीच कोई अंतर नहीं है। अनुकंपा आधार पर नियुक्ति को लेकर उन दोनों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। यह व्यवस्था कर्नाटक हाईकोर्ट ने दी। कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा भेदभाव किया जाता है तो फिर गोद लेने का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। न्यायाधीश सूरत गोविंदराज और जस्टिस जी बासवराजा की खंडपीठ ने कर्नाटक सरकार के अभियोजन विभाग की दलील को खारिज करते हुए कहा कि हमारे विचार में मौजूदा नियमों के आधार पर अभियोजन विभाग और सहायक लोक अभियोजक द्वारा गोद लिए हुए बेटे तथा जैविक बेटे के बीच भेद करने के मामले में कोई असर नहीं पड़ेगा।
विभाग ने गोद लिये बेटे को नहीं दी अनुकंपा के आधार पर मिलने वाली नौकरी
बता दें कि विभाग ने मौजूदा नियमों का हवाला देते हुए गोद लिए हुए बेटे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने से इंकार कर दिया था। कोर्ट ने फैसले में कहा कि बेटा,बेटा होता है,और बेटी, बेटी होती है। वह चाहे गोद ली हो या वैसे हो। अगर ऐसे भेदभाव को मंजूर कर लिया जाता है तो गोद लिये जाने का कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा। मामला विनायक एम मुत्तातीसे संबंधित था जो सहायक लो अभियोजक ,जेएफएफसी बनहाती के कार्यालय में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था। उसने 2011 में एक बेटे को गोद लिया । मुत्ताती का मार्च 2018 में निधन हो गया। उसी साल उसके गोद लिए हुए बेटे गिरीश ने अनुकंपा के आधार पर नौकरी के लिए आवेदन किया।
गिरीश ने विभाग के निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की
गिरीश को इस आधार पर नौकरी देने से मना कर दिया कि वह गोद लिया हुआ बेटा है। अनुकंपा के आधार पर गोद लिए हुए बेटे को नौकरी देने का कोई नियम नहीं है। गिरीश ने विभाग के निर्णय के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 2021 में उसकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उसने खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर की।