अखिलेश अखिल
महीने भर से अडानी के कारोबार में ढलान जारी है। यह ढलान और कहाँ तक जाएगी कोई नहीं जनता। खुद अडानी भी नहीं कि जानते की आगे क्या होगा। खुद को प्रबंधकीय कौशल में महारथ हाशिल करने की बात करने वाले अडानी के सारे प्रबंधकीय गुर ख़त्म से हो गए हैं। बुधवार को जो हुआ उसकी कल्पना भी नहीं जा सकती। देखते देखते अडानी कंपनी को 51 हजार करोड़ की चपत लग गई। ये पैसे डूब से गए। पहले से बर्बाद हो रहे अडानी के लिए बुधवार काला हो गया। अडानी के शब्दों में इसे काला बुधवार ही कहा जा सकता है।
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद अदानी समूह के शेयरों में गिरावट का सिलसिला जारी है। बुधवार को एक दिन में कंपनी के 51 हजार करोड़ रुपए डूब गए। मंगलवार को कंपनी के 10 शेयरों की बाजार पूंजी आठ लाख करोड़ रुपए से ज्यादा थी, जो बुधवार को बाजार बंद होने तक गिर कर साढ़े सात लाख करोड़ रुपए पर आ गई। अगर 24 जनवरी को हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद से देखें तो कंपनी की बाजार पूंजी में 12 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की कमी आ चुकी है। रिपोर्ट से पहले कंपनी की बाजार पूंजी 19.19 लाख करोड़ रुपए थी। फोर्ब्स की रियल टाइम बिलिएनेयर्स लिस्ट के मुताबिक गौतम अदानी की नेटवर्थ सिर्फ 43.4 अरब डॉलर रह गई है।
इसके बाद अदानी दुनिया के अमीरों की सूची में 26वें स्थान पर आ गए। बहरहाल, वैश्विक संकेतों के कमजोर होने के चलते बुधवार को शेयर बाजार बड़ी गिरावट के साथ बंद हुआ। बांबे स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक 927 अंक टूट कर 59,744 पर आ गया। निफ्टी भी 272 अंक नीचे 17,554 के स्तर पर बंद हुआ।
बाजार की बिकवाली में बैंकिंग, मेटल और आईटी के शेयर सबसे आगे रहे। 30 शेयरों के संवेदी सूचकांक में से 29 शेयरों में गिरावट रही। अदानी समूह के सभी 10 शेयरों में गिरावट रही। अदानी समूह की मुख्य कंपनी अदानी एंटरप्राइजेज का शेयर 11.05 फीसदी टूट कर 1,397 रुपए पर बंद हुआ। अदानी पोर्ट्स में 7.24 फीसदी की गिरावट हुई। बाकी आठ शेयरों में भी पांच-पांच फीसदी की गिरावट हुई।
उधर देश में अडानी को लेकर चारो तरफ चुप्पी छाई हुई है। सरकार इस पर कुछ बोल नहीं रही और विपक्ष की आवाज को कोई सुन नहीं रहा। मामला अब शीर्ष अदालत तक पहुँच गया है। सामने कई चुनाव है इसके बाद लोकसभा चुनाव। देश में हरो तरफ चुनावी कीर्तन जारी है। कैसे किसको झटका दिया जाए ,कैसे किसको कमजोर किया जाए और कैसे किसे साधा जाए इसी पर देश भर में बहस जारी है। अडानी अकेले अब क्या करेंगे यही सोंचने की बात है। याद रखिये राजनीति किसी की नहीं होती। उसका साथ तभी तक होता जब तक उसके हित सधते रहते हैं। हित ख़त्म सामने वाले को उखाड़ फेंक दिया जाता है। क्या अडानी इसी खेल के पात्र हो गए हैं ?

