Homeदुनियायूनिवर्सल हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (UHO)— न्यूज़ लेटर 2 जून 2023

यूनिवर्सल हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (UHO)— न्यूज़ लेटर 2 जून 2023

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यह साप्ताहिक समाचार पत्र दुनिया भर में महामारी के दौरान पस्त और चोटिल विज्ञान पर अपडेट लाता हैं। साथ ही कोरोना महामारी पर हम कानूनी अपडेट लाते हैं ताकि एक न्यायपूर्ण समाज स्थापित किया जा सके। पारदर्शिता,सशक्तिकरण और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए ये छोटा कदम है- यूएचओ के लोकाचार।

फाइजर इंडिया ने अपोलो हॉस्पिटल्स के सहयोग से भारत में वयस्क टीकाकरण के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) किया लॉन्च

फाइजर ने अपोलो हॉस्पिटल्स के साथ मिलकर सीओई की स्थापना की है।इसका मकसद वयस्क टीकाकरण को बढ़ावा देना है।टीके से रोके जा सकने वाली बीमारियों से बचाव के लिए एंड टू एंड इकोसिस्टम तैयार किया जाएगा।सीओई में न्यूमोकोकल रोग, हेपेटाइटिस ए और बी, मानव पेपिलोमा वायरस (एचपीवी) और अन्य के खिलाफ टीकाकरण शामिल होगा। मशहूर डॉक्टरों ने इस लॉन्च की सराहना की है। हालांकि, सार्वजनिक स्वास्थ्य अभ्यास में टीकों को बढ़ावा देते समय, निम्नलिखित कारकों पर विचार करने की आवश्यकता है।
• महामारी रोग विज्ञान यानी आबादी में बीमारी कैसे फैलती है (आयु, लिंग, जाति, भूगोल, घटना, व्यापकता, वयस्कता से पहले पूर्व जोखिम, जोखिम का खतरा, आदि)
• टीकों का असर
• लघु और दीर्घकालिक दुष्प्रभाव, यदि कोई हों।
• प्रभावी उपचार उपलब्ध है या नहीं।
•लागत-लाभ का विश्लेषण।
• जोखिम-लाभ विश्लेषण
• उपरोक्त कारकों पर विचार करने में विफल रहने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं जैसा कि निम्नलिखित समाचार में दिखाया गया है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में, कोविड-19 वैक्सीन प्रेरित मायोकार्डिटिस के बाद मरने वाले एक 24 वर्षीय व्यक्ति के परिवार ने रक्षा विभाग (डीओडी) पर दायर किया मुकदमा

कोविड-19 का टीका लेने के बाद मायोकार्डिटिस से मरने वाले एक 24 साल के व्यक्ति के परिवार ने रक्षा विभाग पर मुकदमा दायर किया है। मुकदमे में ये आरोप लगाया गया है कि कोविड वैक्सीन के आपातकालीन उपयोग के लिए इसे जान बूझकर “सुरक्षित और असरदार” बताया गया। आबादी के बड़े पैमाने पर टीकाकरण के बाद दुनिया भर में युवाओं की दुखद मौत साबित कर रही है कि ये टीके न तो सुरक्षित हैं और न ही प्रभावी। चिकित्सा शोधकर्ताओं को सामान्य आबादी के लिए टीकाकरण बढ़ाने से पहले सुरक्षा, प्रभावकारिता, लागत-लाभ, जोखिम-लाभ, आदि के पहलुओं पर अध्ययन (दवा उद्योग द्वारा प्रायोजित नहीं) करना चाहिए।

उद्योग और कॉरपोरेट अस्पतालों द्वारा वैक्सीन के प्रचार-प्रसार की चकाचौंध और ग्लैमर के बीच सावधानीपूर्वक शोध को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। दोनों बाजार की ताकतों से काफी प्रभावित हैं, निष्पक्ष शोध के लिए ये आदर्श वातावरण नहीं है।

बीमार और उपचार की जरुरत वाले लोगों के एक छोटे हिस्से के बजाय बड़े पैमाने पर टीके के प्रचार का लक्ष्य पूरी आबादी को वैक्सीन लगाना है। बीमारी से रोकथाम के लिए केवल टीकों पर निर्भर रहना अब इलाज का सस्ता साधन नहीं रह गया है और कभी-कभी सुरक्षित भी नहीं, जैसा कि कोविड-19 टीके लगवाने वाले युवाओं की दुर्भाग्यपूर्ण मौतों से पता चलता है।कल्पना की किसी भी सीमा तक जोखिम लाभ युवाओं में लाभ के पक्ष में काम नहीं करता है क्योंकि उनमें कोविड-19 से मृत्यु दर लगभग शून्य है।

इजरायली डेटा से खुलासा हुआ है कि कोविड-19 के कारण 50 साल से कम उम्र के स्वस्थ लोगों की नहीं हुई है मौत

सूचना की स्वतंत्रता के आग्रह के जवाब में इजराइल के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दिए गए आंकड़ों से पता चला है कि कोविड-19 के कारण जिन लोगों की मृत्यु हुई, उनमें से 50 वर्ष से कम आयु के स्वस्थ लोगों में एक भी मौत नहीं हुई। यह खुलासा कोविड-19 टीकाकरण के बाद युवा लोगों में होने वाली दुखद मौतों को और भी मार्मिक बनाता है।

इंडोनेशियाई सरकार पर वैक्सीन मैंडेट्स के मामले में दायर हुआ मुकदमा

टेड हिल्बर्ट और फतोनी रहमान की अध्यक्षता वाला एक इंडोनेशियाई समूह ने सरकार पर उनके वैक्सीन मैंडेट के लिए मुकदमा दायर किया है। समूह का कहना है कि सरकार का आदेश इंडोनेशिया के संविधान के सिद्धांतों के विपरीत है।

यूके में मुख्य धारा मीडिया ने चेतावनी दी है कि डब्ल्यूएचओ की महामारी संधि स्वतंत्रता के लिए होगी खतरा

ब्रिटेन में मुख्यधारा के प्रतिष्ठित अखबार द टेलीग्राफ ने एक लेख छापा है जिसमें चेतावनी दी गई है कि डब्ल्यूएचओ द्वारा प्रस्तावित महामारी संधि स्वतंत्रता के लिए खतरा होगी। यह उत्साहजनक है क्योंकि अब तक मुख्यधारा के समाचार मीडिया ने WHO द्वारा प्रस्तावित महामारी संधि को कवर नहीं किया है, जिसका उद्देश्य 2005 के अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम (IHR) में 300 से अधिक संशोधन करना है। IHR 2005, WHO को केवल सलाहकार की भूमिका प्रदान करता है। संशोधित IHR, जिसे महामारी समझौता या संधि कहा जाएगा, WHO को बिना किसी जवाबदेही के भारी नियामक शक्तियाँ देगा, जो महामारी या महामारी के खतरे की स्थिति में सदस्य देशों की स्वायत्तता को कम कर देगा।

हमें उम्मीद है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में मुख्यधारा का मीडिया महामारी संधि के इर्द-गिर्द बुनियादी सवाल उठाकर हमारी स्वायत्तता को बचाने का अपना कर्तव्य निभाएगा। कुछ चिंताएं यह हैं कि WHO के पदाधिकारी लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नहीं होते हैं; वे फार्मा इंडस्ट्री से जुड़े होने के कारण हितों के गंभीर टकराव के अधीन हैं।WHO के विशेषज्ञ अलग अलग भूगोल, जनसांख्यिकी और संस्कृति वाले देशों में स्वास्थ्य के मुद्दों पर निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। महामारी संधि पर संसद, मीडिया, नागरिक समाज, कानूनी हलकों, चिकित्सा बिरादरी, नैतिकतावादियों और सामाजिक वैज्ञानिकों के बीच चर्चा की जानी चाहिए।

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