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कोविड-19 महामारी दुनिया के नागरिकों के खिलाफ था सूचना युद्ध
कुछ विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि तीसरा विश्व युद्ध सूचना युद्ध information warfare होगा और जंग का मैदान इंटरनेट होगा। कोविड-19 ने अनुमान के मुताबिक ही असर दिखाया है। सभी मुख्यधारा की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, इन्फॉरमेशन आउटलेट्स और वर्ल्ड गर्वनमेंट पर बिग फार्मा कंपनियों ने कब्जा कर लिया। Facebook Files आंतरिक दस्तावेजों का एक समूह है, जिसे अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की मांग पर मजबूरी में जारी released किया गया। इस दस्तावेज से ये पता चलता है कि इंटरनेट पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया। अनिवार्यता से संबंधित या वैक्सीन लेने पर संदेह और सरकार की नीतियों की आलोचना को सेंसर कर दिया गया था। इस आंतरिक दस्तावेज से पता चलता है कि वैसे सूचनाओं को सेंसर किया गया जिससे वैक्सीन के खिलाफ वातावरण बन रहा था। वैक्सीन से हुए नुकसान के बारे में लिखे गए पोस्ट को हटा दिया गया। मुख्यधारा की मीडिया में ये खबर फैलाई गई कि वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित और असरकारक था- जबकि ये बात झूठ थी। लोगों ने भरोसा जारी रखा क्योंकि चयनात्मक सूचनाओं ने उनके दिमाग पर कब्जा कर लिया था। वीकिपीडिया ने भी चुनी हुई खबरें ही दिखाई। यहां तक कि वीकिपीडिया के खोजकर्ता लैरी सैंगर को ही अब इस पर भरोसा not trust नहीं रहा है!
यह प्रवृत्ति जारी है। टीके से होने वाली क्षति और मृत्यु की सीमा स्वतंत्र शोधकर्ताओं पर छोड़ दी गई है जो उपाख्यानों और कठिन डेटा की सुनामी पर काम कर रहे हैं। मामले को और अधिक कठिन बनाने के लिए, इसे पूरी तरह छुपाने का एक ठोस प्रयास किया जा रहा है।
हम इसे कैसे समझा सकते हैं? नियामक एजेंसियों को फार्मास्युटिकल कंपनियों से अपनी आधी या अधिक फंडिंग मिलती है। मीडिया ने प्रचार प्रसार किया क्योंकि उनका तीन-चौथाई या अधिक विज्ञापन राजस्व फार्मा से आता था। शॉट्स के विकास को भारी सरकारी अनुदान से लाभ हुआ। आम नागरिक एक ऐसे युद्ध में असमान आभासी युद्धक्षेत्र पर है जो लंबे समय तक चलने वाला है।
ऑन्कोलॉजिस्ट कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने और जैविक खेती को बढ़ावा देने का आह्वान करते हैं: क्या यह काम कर सकता है?
देश भर से प्रैक्टिस कर रहे लगभग 100 ऑन्कोलॉजिस्ट दो दिवसीय सम्मेलन के लिए शिमला में एकत्र हुए और राज्य में कैंसर रोगियों की बढ़ती संख्या पर चर्चा की।
हिमाचल प्रदेश में पुरुषों में फेफड़ों का कैंसर बढ़ रहा है। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में शिमला कैंसर अस्पताल के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. मनीष गुप्ता ने कहा कि कीटनाशकों का उपयोग एक गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि वे भूजल में मिल रहे हैं।
डॉ. गुप्ता ने कहा कि “कैंसर को एक लाइफस्टाइल रोग माना जाता है; लाइफ स्टाइल खराब से बदतर होता जा रहा है। हमारे लोग एक्सरसाइज नहीं कर रहे हैं और मोबाइल एवं अन्य तकनीकि का इस्तेमाल कर रहे हैं। हर साल रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है, हिमाचल प्रदेश में हर साल कैंसर के 6000 नए मरीज सामने आ रहे हैं। हमें फल और सब्जियां मूल रूप में नहीं मिल रही हैं। लोग पैस्टिसाइड का इस्तेमाल कर रहे हैं”।
इस सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों ने पैस्टिसाइड पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया और ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ बढ़ने की मांग demanding की।
UHO ये प्रस्ताव देता है कि राज्य में कैंसर के बढ़ते कारणों पर रिसर्च किया जाए। पेस्टिसाइड कैंसर के कई कारणों में से एक होगा। तंबाकू के उपयोग के बारे में क्या ख्याल है? हिमाचल प्रदेश जैसे ठंडे पहाड़ी इलाकों में जीवाश्म ईंधन का उपयोग घर में वायु प्रदूषण को बढ़ा रहा है। क्या यह भी कैंसर का एक कारण हो सकता है?क्या बड़े पैमाने पर ऑर्गेनिक फार्मिंग संपोषणीय होगा? हमें कैंसर से जुड़े मुद्दों पर अंर्तविषयक अनुसंधान की जरुरत है।इसमें कैंसर विशेषज्ञ, कृषि वैज्ञानिक और दूसरे विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं। पाठकों को इस मुद्दे पर हमारे वेबसाइट पर अपना विचार साझा करना चाहिए।