सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन का महीना महादेव भोले भंडारी को अत्यंत ही प्रिय होता है। धर्म शास्त्रों में सावन के महीने का विशेष महत्व बताया गया है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-आराधना और जप-तप करना विशेष रूप से फलदाई होता है।
- सावन के महीने में भगवान शिव जल्द प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस महीने शिव मंदिरों में शिव भक्तों और भगवान शिव से जुड़ी पूजा-उपासना का सुंदर वातावरण बन रहता है।
- सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक और सावन सोमवार का व्रत रखते हुए विधिवत रूप से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। सावन के महीने में कांवड़ यात्राएं निकाली जाती है।
- महिलाएं सावन के महीने में सोलह सोमवार का व्रत रखने का संकल्प लेती हैं। सावन के महीने में भगवान शिव को गंगाजल, बेलपत्र,भांग, धतूरा आदि चीजों को चढ़ाया जाता है।
- इस माह में शिवजी का ध्यान करते हुए शिव चालीसा,रूद्राभिषेक और शिव आरती की जाती है। अब आपके मन में यह प्रश्न उठता होगा कि आखिरकार सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा क्यों की जाती है। आइए जानते हैं इस सावन महीने से जुड़ी पौराणिक कथाएं।
- पार्वतीजी की तपस्या से भगवान शिव हुए प्रसन्न माता सती ने भगवान शिव को हर जन्म में पाने का प्रण किया था, उन्होंने अपने पिता राजा दक्ष के घर योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था। इसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया था।
- माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और उनसे विवाह किया। इसलिए भगवान शिव को सावन का महीना विशेष प्रिय है।
- श्रावण मास में हुआ समुद्र मंथन समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नामक विष निकला तो उसके ताप से सभी देवता भयभीत हो गए। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। लोक कल्याण के लिए भोलेनाथ ने इस विष का पान कर लिया और उसे अपने गले में ही रोक लिया जिसके प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नील कंठ कहलाये।
- विष के ताप से व्याकुल शिव तीनों लोको में भ्रमण करने लगे किन्तु वायु की गति भी मंद पड़ गयी थी इसलिए उन्हें कहीं भी शांति नहीं मिली। अंत में वे पृथ्वी पर आये और पीपल के वृक्ष के पत्तों को चलता हुआ देख उसके नीचे बैठ गए जहां कुछ शांति मिली।
- शिव के साथ ही सभी देवी-देवता उस पीपल वृक्ष में अपनी शक्ति समाहित कर शिव को सुंदर छाया और जीवन दायिनी वायु प्रदान करने लगे। विष का प्रभाव कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया,जिससे उन्हें राहत मिली।
- इससे वे प्रसन्न हुए। तभी से हर वर्ष सावन मास में भगवान शिव को जल अर्पित करने या उनका जलाभिषेक करने की परंपरा बन गई।
- सावन में ससुराल आते हैं शिव मान्यता है कि भगवान शिव सावन के महीने में शिवजी पृथ्वी लोग अपने ससुराल जरूर आते हैं। साथ ही सावन के महीने में ही मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने शिवजी की कठोर तपस्या से वरदान प्राप्त किया था, जिससे यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।