विकास कुमार
दक्षिण भारत में नौ सौ सालों से एक मंदिर शान से खड़ा है। जी हां हम बात कर रहे हैं तंजौर के वृहदेश्वर मंदिर की। तमिलनाडु के तंजौर में स्थित ये मंदिर 11वीं सदी में बनाया गया था। भारत में ग्रेनाइट से बना ये अपनी तरह का पहला मंदिर है। इस मंदिर का शीर्ष और गर्भगृह बरबस ही लोगों का ध्यान आकर्षित करता है। द्रविड शैली में बना ये मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है। अपनी भव्य वास्तुशिल्प कला के कारण तंजोर के वृहदेश्वर मंदिर की एक अलग ही पहचान बन गई है।
चोल शासकों ने करवाया था मंदिर का निर्माण
तंजौर मंदिर का निर्माण एक हजार तीन से एक हजार दस ईसवी के बीच चोल शासक राजराज चोल प्रथम ने करवाया था। उसी के नाम पर इस मंदिर को राजराजेश्वलर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। राजराजेश्वर मंदिर द्रविड़ वास्तुाकला का बेमिसाल उदाहरण है। यह अपने दौर की दुनिया की विशालतम वास्तुकला में से एक गिना जाता था।
एक लाख तीस हजार टन ग्रेनाइट पत्थर से बना है 13 मंजिला मंदिर
13 मंजिला बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 66 मीटर है। यह मंदिर भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है। इस मंदिर की ऊंचाई करीब दो सौ 16 फीट है। इस मंदिर को एक लाख तीस हजार टन ग्रेनाइट के पत्थर से बनाया गया है। हैरानी की बात ये है कि तंजौर के आस-पास कोई पहाड़ नहीं है। ऐसे में ये सवाल सबके मन में जरुर उठता है कि आखिर भारी-भरकम पत्थार यहां कहां से आए, साथ ही ये भारी भरकम पत्थर यहां कैसे लाए गए। पुराने विवरण के आधार पर ये अंदाजा लगाया जाता है कि यहां हजारों हाथियों की मदद से इन पत्थरों को लाया गया था। इस मंदिर के पत्थरों को पजल तकनीक से आपस में जोड़कर तैयार किया गया है।
मंदिर का गुंबद है 80 टन वजनी
मंदिर का विशालकाय गुंबद हैरान करने वाला है। इस विशालकाय पत्थर का वजन 80 टन से भी अधिक है। उस जमाने में जब कोई क्रेन या लिफ्ट वगैरह नहीं थी,तब इतने विशाल पत्थर को कैसे शीर्ष तक लाया गया होगा। मंदिर में विशालकाय शिवलिंग के वजह से इसे बृहदेश्वर कहा जाता है। मंदिर के सामने नंदी बैल की भी विशालकाय प्रतिमा स्थारपित है। इसे भी एकाश्म पत्थर से काटकर बनाया गया है। नंदी बैल की ऊंचाई 13 फीट है। ये मंदिर भारत के प्राचीन गौरव की गाथा कह रही है।