अखिलेश अखिल
राजनीति से अभी पिछले दिनों ही कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने रिटायरमेंट की घोषणा की। लम्बे समय से वे बीजेपी में किनारे किये गए थे। हालांकि उम्र भी हो गई थी। बीजेपी की मौजूदा राजनीति में 70 साल के बाद चुनावी राजनीति में लगभग प्रतिबन्ध है। दो -चार नेता इसके अपवाद हो सकते हैं। आगामी चुनाव में भी कई नेताओं को टिकट नहीं मिलेगी इसकी सम्भावना जताई जा रही है। येदियुरप्पा तो 80 साल के हैं।
कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा को लोग येदि के नाम से जानते हैं। कर्नाटक में बीजेपी को स्थापित करने में येदि की भूमिका बड़ी रही। वे चार बार मुख्यमंत्री भी रहे लेकिन कोई भी टर्म पूरा नहीं कर सके। रिटायरमेंट के समय उन्होंने बहुत सी बातें कही लेकिन यह भी कहा कि वे अंतिम समय तक बीजेपी की सेवा करते रहेंगे। पीएम मोदी ने येदि के इस बयान की खूब प्रशंसा की थी।
अब कर्नाटक चुनाव सामने है। कांग्रेस की अपनी तैयारी है और बीजेपी की अपनी तैयारी। दोनों पार्टियां सत्ता में लौटने को बेचैन है लेकिन बीजेपी की सरकार भ्रष्टाचार की वजह से कुछ ज्यादा ही बदनाम है। कांग्रेस इसे भुना भी रही है। ऊपर से येदि का राजनीति से बाहर चले जाना बीजेपी को खलने लगा है। बीजेपी को लग रहा है कि येदि ने अगर मुँह मोड़ लिया तो लिंगायत वोट नहीं मिलेगा। और ऐसा हुआ तो बीजेपी का फिर क्या होगा ? मंथन के बाद तय हुआ कि इस बार भी कर्नाटक का चुनाव येदि की अगुवाई में ही होगा। येदि की बीजेपी के पोस्टर बॉय होंगे और सीटों का गणित भी वही सम्हालेंगे। पूरे कर्नाटक में बीजेपी के बैनर -पोस्टर लग गए हैं। येदि के बड़े -बड़े पोस्टर से कर्नाटक की गालियां पटी हुई है।
येदि चुनाव का नेतृत्व तो करेंगे लेकिन कुछ पाएंगे नहीं। यह भी अलग तरह की राजनीति है। बीजेपी चाहती है कि लिंगायत वोट बीजेपी के साथ ही रहे। लिंगायत वोट पर येदि की पकड़ है। ऐसे में येदि के इस्तीफे के बाद भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस समुदाय को साधने की होगी। बीते दिन ही विभिन्न लिंगायत मठों के 100 से अधिक संतों ने येदियुरप्पा से मुलाकात कर उन्हें समर्थन की पेशकश की थी। संतों ने भाजपा को चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें हटाया गया, तो परिणाम भुगतने होंगे। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय 17% के आसपास है। राज्य की तकरीबन आधी आबादी पर लिंगायत समुदाय का प्रभाव है। ऐसे में भाजपा के लिए येदि को नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा। ऐसा होने का मतलब इस समुदाय के वोटों को खोना होगा। कहा जाता है कि राज्य की 224 सीटों में से 100 सीटों पर लिंगायत समाज सीधा असर डालता है।
लिंगायत वीरशैव संप्रदाय का हिस्सा है। शैव संप्रदाय के कुछ लोग शिव के साकार रूप की पूजा करते हैं। वहीं, लिंगायत संप्रदाय के लोग शिव के निराकार अर्थात इष्टलिंग की पूजा करते हैं। लिंगायत समुदाय को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है। इस समुदाय के लोग ना वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में। वे पुनर्जन्म में भी विश्वास नहीं करते हैं।लिंगायत समुदाय के लोगों का मानना है कि एक ही जीवन है और कोई भी अपने कर्मों से अपने जीवन को स्वर्ग और नरक बना सकता है।
बीजेपी के चुनावी प्रचार अभियान से साफ है कि पार्टी येदियुरप्पा फैक्टर पर निर्भर है और उन्हें पोस्टर बॉय के रूप में पेश कर रही है। बीते कुछ दिनों में पीएम मोदी, अमित शाह, रक्षा मंत्री और जेपी नड्डा जैसी शीर्ष नेताओं को जनसभाओं ने येदियुरप्पा की तारीफ करते देखा गया है।
कर्नाटक में भाजपा के मजबूत नेता येदियुरप्पा अभी संसदीय बोर्ड के सदस्य हैं। पुत्र बीवाई राघवेंद्र शिमोगा से सांसद हैं। येदियुरप्पा के एक पुत्र बीवाई विजयेंद्र प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष हैं। विजयेंद्र को बूथ मैनेजमेंट का एक्सपर्ट माना जाता है। भीतरखाने चर्चा है कि अगली सरकार में येदियुरप्पा अपने पुत्रों को बड़े ‘रोल’ में देखना चाहते हैं। ऐसे में येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय में अपने दबदबे के चलते पार्टी को अपनी ताकत दिखाकर बेटों को आगे कर सकते हैं।