भारतीय सिनेमा के मशहूर कवि, गीतकार और स्क्रीन राइटर जावेद अख्तर ने दुनिया भर में हिंदी सिनेमा और साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आज जावेद अख्तर अपना 80वां जन्मदिन मना रहे । उनका जन्म 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर में मशहूर शायर रहे जांनिसार अख्तर के घर हुआ । इतने दिग्गज हस्ती के बेटे होने के बाद भी जावेद अख्तर को अपनी पहचान बनाने के लिए खूब संघर्ष करना पड़ा है और इसमें कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने अपनी काबिलियत के दम पर अब तक इंडस्ट्री में एक खास जगह बना रखी है। ऐसे में आइए उनके संघर्ष से लेकर सफलता तक पर एक नजर डालते हैं।
जावेद अख्तर का रुझान शुरुआत से ही साहित्य की ओर अधिक था। साथ ही उन्हें फिल्मों में भी काफी रुचि थी। ऐसे में वह अपनी किस्मत आजमाने के लिए साल 1964 में मुंबई आ गए। यहां आकर उनका जीवन कुछ आसान नहीं था बल्कि काम पाने के लिए उन्हें दर-दर तक भटकना पड़ा था।। जावेद ने साल 2020 में अपने सोशल मीडिया एक हैंडल पर एक ट्वीट शेयर करते हुए अपने इस सफर को याद किया। उन्होंने लिखा, ‘यह 4 अक्टूबर 1964 का दिन था जब मैं मुंबई आया था। इस 56 साल के लंबे सफर में कई टेढ़े-मेढ़े रास्ते, कई रोलर कोस्टर और उतार-चढ़ाव आए, लेकिन कुल मिलाकर यह मेरे पक्ष में है। शुक्रिया मुंबई, शुक्रिया फिल्म इंडस्ट्री, शुक्रिया जिंदगी, आप सभी बहुत दयालु हैं।
जावेद अख्तर को काफी संघर्ष करने के बाद साल 1969 में ब्रेक मिला, जिसके बाद उनकी किस्मत बदल गई। जावेद और सलीम खान की जोड़ी भारत की सबसे लोकप्रिय लेखक की जोड़ी है, जिसने साथ मिलकर कई सुपरहिट फिल्में दी हैं। इनमें ‘त्रिशूल’, ‘दीवार’, ‘काला पत्थर’, ‘डॉन’, ‘शोले’, ‘मिस्टर इंडिया’ जैसी कई बेहतरीन हिट फिल्में शामिल हैं ।
जावेद ने कई फिल्मों के लिए सदाबहार गाने भी लिखे हैं। इनमें ‘सिलसिला’, ‘साथ-साथ, मशाल’, ‘दुनिया’, ‘अर्जुन’ और ‘सागर’ जैसी फिल्में शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, ‘जोधा अकबर’, ‘रॉक ऑन’ और ‘ओम शांति ओम’ जैसी फिल्मों के लिए ‘सर्वश्रेष्ठ गीतकार’, ‘स्वदेश’, ‘वी द पीपल’, ‘कल हो ना हो’ और ‘लगान’, ‘वन्स अपॉन ए टाइम इन इंडिया’ जैसी फिल्मों के लिए भी अवार्ड मिला है।