न्यूज डेस्क
सु्प्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार सरकार को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने नीतीश सरकार के जाति आधारित जनगणना कराने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर विचार करने से इन्कार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को संबंधित उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने और कानून के अनुसार, उचित उपाय खोजने की स्वतंत्रता है।
Supreme Court refuses to entertain various pleas challenging Bihar Government’s decision to conduct caste-based census across the State.
The court grants liberty to petitioners to approach the concerned High Court and to seek appropriate remedies as per law. pic.twitter.com/9Ke8jZIYt9
— ANI (@ANI) January 20, 2023
किस जाति को कितना आरक्षण,हम तय नहीं कर सकते: कोर्ट
सुनवाई के दौरान जस्टिस बीआर गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि याचिकाओं में कोई दम नहीं है, लिहाजा इन्हें खारिज किया जाता है। पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा कि तो यह लोकप्रियता हासिल करने के इरादे से दाखिल याचिका है। हम कैसे यह निर्देश जारी कर सकते हैं कि किस जाति को कितना आरक्षण दिया जाना चाहिए। माफ कीजिए, हम ऐसे निर्देश जारी नहीं कर सकते और इन याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकते।
बिहार सरकार ने पिछले साल 6 जून को जारी की थी अधिसूचना
उल्लेखनीय है कि बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने पिछले साल 6 जून को जातीय जनगणना की अधिसूचना जारी कर दी थी। इस वर्ष सात जनवरी से जाति आधारित जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राज्य में यह सर्वे करवाने की जिम्मेदारी सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (जीएडी) को सौंपी गई है।
मोबाइल ऐप के जरिए डेटा इकट्ठा करेगी बिहार सरकार
सरकार मोबाइल फोन ऐप के जरिए हर परिवार का डेटा डिजिटली इकट्ठा करने की योजना बना रही है। सर्वे में शामिल लोगों को पहले ही आवश्यक ट्रेनिंग दे दी गई है। यह जनगणना दो चरणों में होगी। पहले चरण की जनगणना सात जनवरी से पटना से शुरू होगी। जातीय सर्वे के दूसरे चरण की शुरुआत एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक होगी। इस दौरान लोगों की जाति, उनकी उपजाति और धर्म से जुड़े आंकड़े जुटाए जाएंगे। बिहार सरकार इस सर्वे पर करीब 500 करोड़ रुपए खर्च करेगी।