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क्या मान लिया जाए कि नागरिकता कानून के प्रति अब सरकार गंभीर नहीं है ?

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अखिलेश अखिल

उस दौर को याद कीजिए जब नागरिकता कानून यानि सीएए को लेकर सरकार ने हंगामा खड़ा किया था और देश के भीतर आंदोलन की झड़ी लग गई थी। लेकिन अब इसको लेकर सरकार भी शांत है। नागरिकता कानून लाने की बात अब तीन साल से ज्यादा पुरानी हो गई लेकिन सरकार के लोग इस पर मौन हैं। इस मामले में अब न पीएम मोदी कुछ बोलते हैं और न ही गृहमंत्री अमित शाह। तीन साल पहले तक जहां-जहां चुनावी सभा में अमित शाह मंच पर खड़े होते थे,नागरिकत कानून की बात करते थे लेकिन अब जब दस राज्यों में चुनाव होने हैं ,नागरिकता कानून की बात गायब है। ऐसे में लगता है कि सरकार की यह योजना अब ठंढे बस्ते में डाल दी गई है। संभव हो कि 2024 के लोकसभा चुनाव में अगर बीजेपी की वापसी होगी तो इस कानून की बात होगी।

बता दें कि देश से घुसपैठियों को निकालने के लिए सरकार नागरिकत कानून लाने की बात कही थी। इसके लिए पूरी तैयारी की गई। 9 दिसंबर 2019 को लोकसभा में और 11 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में नागरिकता कानून पास हुआ था। 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने दस्तख़त कर दिया था। यह कानून 10 जनवरी 2020 को नोटिफाई हुआ था। तब से लेकर आज तक इस कानून को लागू करने के नियम नहीं बने हैं बल्कि सरकार ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। सवाल है कि जिस कानून को साहसिक, ऐतिहासिक बताया गया,वोट बैंक से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में लिया गया फैसला बताया गया उसके लागू करने के नियम क्यों नहीं बने हैं? तब लगता था कि अगर यह कानून नहीं बना तो देश बर्बाद हो जायेगा लेकिन अभी तक इसके कानून का पता नहीं है। अपने बंगाल के चुनावी दौरे पर गए अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया था कि कोरोना के ख़त्म होने के बाद सीएए को लागू कर दिया जाएगा और ममता बनर्जी ने केंद्रीय गृहमंत्री पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाईं थी।

दरअसल इस कानून को लेकर देश के मुस्लिम समुदाय में ख़ास विरोध रहा है। मुस्लिम समुदाय मानता है कि नागरिकत कानून एक धर्म विशेष के खिलाफ है। इसके साथ ही यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। जबकि अनुच्छेद 14 सभी को समानता की गारंटी देता है। इसके साथ ही आलोचकों का कहना है कि धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह कानून अवैध प्रवासियों को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में विभाजित करता है। और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस ड्राफ्ट में अफगानिस्तान, बांग्लादेश व पाकिस्तान के अलावा अन्य पड़ोसी देशों का जिक्र क्यों नहीं है।

बता दें कि सबसे ज्यादा इसका विरोध असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में शुरू हुआ था। नागरिकता कानून के मुताबिक बिना किसी धार्मिक भेदभाव के सभी अवैध प्रवासियों को बाहर  करने की बात है। जबकि राज्य में इस कानून को 1985 के असम समझौते से पीछे हटने के रूप में देखा जा रहा है। समझौते के तहत सभी बांग्लादेशियों को यहां से जाना होगा, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम। असम समेत पूर्वोत्तर के कई राज्यों को डर है कि इससे जनांकिकीय परिवर्तन होगा।

लेकिन सरकार का पक्ष कुछ और ही है। सरकार कहती है कि इन विदेशियों ने अपने-अपने देशों में भेदभाव व धार्मिक उत्पीड़न झेला है। कानून से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश व अन्य राज्यों में आए लोगों को राहत मिलेगी। इसके साथ ही भारतीय मूल के कई लोग नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता पाने में असफल रहे।

संसद से पास होने के बाद देश भर में हुए विरोध, धरना प्रदर्शनों और बड़े बड़े आंदोलनों के बाद ऐसा लगता है कि सीएए  फ़िलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। शायद यही कारण है कि तीन साल से भी अधिक समय होने के बावजूद सीएए आजतक लागू नहीं हुआ है। पर ऐसा नहीं है, दरअसल,किसी भी कानून के पास होने के बाद उससे संबधित नियम बनाने की कुछ प्रक्रिया होती है। बीजेपी के लोग कह रहे हैं कि केंद्रीय गृह मंत्रालय इस पर काम तो कर रही है पर ये नियम अभी तक बनाये नहीं जा सकें हैं।

नियम के मुताबिक संसदीय कार्य संबंधी नियमावली के अनुसार, किसी भी कानून के लिए नियम राष्ट्रपति की सहमति के छह महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए या फिर लोकसभा और राज्यसभा की अधीनस्थ विधान संबंधी समितियों से अधिक समय देने के लिए अनुरोध किया जाना चाहिए। क्योंकि गृह मंत्रालय सीएए  कानून बनने के छह महीने के भीतर नियम नहीं बना सका, इसलिए मंत्रालय ने समितियों से बार समय मांगा है। तीन साल के भीतर बार बार समय सीमा बढ़ी है। अबतक 8 बार से ज्यादा समय सीमा बढ़ने से लगता है कि सरकार की मंशा शायद बदल गई है। तो गृह मंत्री बताएं कि उन घुसपैठियों को पहचानने और निकालने के लिए जो कानून पास हुआ उसके नियम कहां हैं? क्या इस देरी से घुसपैठियों को लाभ नहीं हो रहा होगा? तीन साल तक सरकार नियम क्यों नहीं बना सकी है? केरल के अर्नाकुलम की कांग्रेस सांसद हिबी इडेन ने नागरिकता कानून को लेकर सवाल पूछा था. इसके जवाब में लोकसभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एक जवाब दिया। राय का जबाब था कि दस जनवरी 2020 से प्रभावी होगा है। लेकिन क्या यह सब हो सका ? आश्चर्य है कि जिस कानून को सरकार राष्ट्र रक्षा के लिए सबसे जरुरी मानती है उसके कानून अभी तक नहीं बन सके।और अब तो इसकी सम्भावना भी नहीं दिख रही। चुनावी माहौल में बीजेपी ऐसा कुछ करेगी नहीं और सरकार कोई जहमत उठाएगी नहीं। चुनावी खेल में नेता लोग जब देश को भी दाव पर लगा देते हैं तो नागरिकता कानून की हैशियत क्या है।

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