नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी लगाने से इनकार कर दिया है। बोलने की आजादी को लेकर संविधान पीठ ने अहम फैसला देते हुए कहा है कि राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सासंदों, विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती।
Supreme Court says that no additional restrictions, other than those prescribed under Article 19(2) of the Constitution, can be imposed on a citizen under right to freedom of speech & expression.
Statement made by a minister can’t be vicariously attributed to the govt, says SC pic.twitter.com/iLBb0vP9kb
— ANI (@ANI) January 3, 2023
मंत्री के बयान को परोक्ष रूप से भी सरकार का बयान नहीं कहा जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी मंत्री के बयान को परोक्ष रूप से भी सरकार का बयान नहीं कहा जा सकता, चाहे सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को ही क्यों न लागू किया जाए। पांच सदस्यों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 19-(2) के अंतर्गत निर्धारित प्रतिबंधों को छोड़कर किसी भी नागरिक की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार पर कोई अन्य प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
पांच जजों की पीठ ने सुनाया फैसला
न्यायमूर्ति एस. अबुल नज़ीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. राम सुब्रह्मण्यम और बी.वी. नागरत्ना की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि धारा 19-(2) के अंतर्गत प्रावधानों की व्यापक व्याख्या की गई है। जस्टिस राम सुब्रमियम ने बहुमत के इस फैसले को सुनाया।
जस्टिस नागरत्ना ने सुनाया अलग फैसला
बेंच में शामिल जस्टिस बी वी नागरत्ना ने अपना अलग फैसला सुनाया। जस्टिस नागरत्ना ने साफ किया कि जनप्रतिनिधियों पर आर्टिकल 19(2) में दिये गए वाजिब प्रतिबंध के अलावा अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। मंत्री का बयान सरकार का बयान माना जाए या नहीं- इस पर उनका विचार अलग था।
Justice BV Nagarathna in a separate judgement says that it is for parliament in its wisdom to enact a law to restrain public functionaries from making disparaging remarks against fellow citizens.
— ANI (@ANI) January 3, 2023
उनका कहना है कि मंत्री निजी और आधिकारिक दोनों हैसियत से बयान दे सकते है। अगर मंत्री निजी हैसियत से बयान दे रहा है तो ये उनका व्यक्तिगत बयान माना जायेगा। लेकिन अगर वो सरकार के काम से जुड़ा बयान दे रहा है तो उसका बयान सरकार का सामूहिक बयान माना जा सकता है।
“It is for political parties to control speeches made by their ministers which can be done by forming a code of conduct. Any citizen who feels attacked by such speeches or hate speech by public functionary can approach court for civil remedies,” says Justice BV Nagarathna
— ANI (@ANI) January 3, 2023
2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस को आजम खान ने कहा था राजनीतिक साजिश
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक याचिका में सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों के लिए बोलने की आजादी पर गाइडलाइन बनाने की मांग की गई थी। दरअसल, नेताओं के लिए बयानबाजी की सीमा तय करने का मामला 2016 में बुलंदशहर गैंग रेप केस में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे आजम खान की बयानबाजी से शुरू हुआ था। आजम ने जुलाई, 2016 के बुलंदशहर गैंग रेप को राजनीतिक साजिश कह दिया था। इसके बाद ही यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।