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बड़े अरमान के साथ शरद पवार को छोड़कर एनसीपी के बड़े नेता छगन भुजबल अजित पवार के साथ गए थे और शिंदे सरकार में मंत्री भी बने थे। लेकिन अब वे अजित पवार के साथ नहीं हैं। वे अलग हो गए हैं और मंत्री का पद भी छोड़ दिया है। छगन भुजबल नासिक जिले की राजनीति करते रहे हैं। वे आगे क्या करेंगे इस बारे में जानने की जरूरत है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एपी) से अलग हुए मंत्री छगन भुजबल ने दावा किया कि उन्होंने 16 नवंबर को महाराष्ट्र कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन इस बात को गुप्त रखा था।अहमदनगर में छगन भुजबल ने शनिवार को एक विशाल ओबीसी एल्गर रैली को संबोधित किया। इस दौरान छगन भुजबल ने कहा कि उन्होंने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री के पद से इस्तीफा दो महीने पहले 16 नवंबर को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को सौंप दिया था, जब मराठा आरक्षण मुद्दे पर राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन चरम पर था, लेकिन उन्होंने इस पर चुप रहना ही बेहतर समझा।
भुजबल ने कहा कि वह अगले दिन यानी 17 नवंबर को एक निर्धारित सार्वजनिक रैली के लिए गए थे, और 18 नवंबर सीएम एकनाथ शिंदे ने दोनों डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के साथ उन्हें इस मामले पर चर्चा करने के लिए बुलाया था।उस बैठक में सीएम और दोनों डिप्टी सीएम ने उनसे अपना इस्तीफा वापस लेने का अनुरोध किया, क्योंकि इससे राज्य में राजनीतिक जटिलताएं और संभावित कानून-व्यवस्था का मुद्दा पैदा हो सकता है।
भुजबल ने कहा कि उनका त्याग पत्र अभी भी शिंदे के पास है, लेकिन अब वह समाज के हित में और ओबीसी को न्याय सुनिश्चित करने के बड़े उद्देश्य के लिए येओला (नासिक) से विधायक पद छोड़ने की योजना बना रहे हैं।
यह खुलासा तब हुआ, जब उन्होंने शिवबा संगठन के अध्यक्ष मनोज जरांगे-पाटिल के छह महीने लंबे आंदोलन के बाद प्रस्तावित मराठा आरक्षण के संबंध में आक्रामक रुख अपनाया, जो 27 जनवरी को समाप्त हो गया था, लेकिन 10 फरवरी से फिर से शुरू हो सकता है।
भुजबल छगन ने शनिवार को रैली में सत्तारूढ़ महायुति सरकार और जरांगे-पाटिल पर भी कटाक्ष किया और दोहराया कि वह मराठों के लिए आरक्षण की मांग पूरी करवाने के लिए ओबीसी कोटा के मामले में कोई अन्याय नहीं होने देंगे।