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दाम चाहिए, तो बाजार पर नियंत्रण रखें

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प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

भारत गणराज्य की कम से कम 65 से 70 फीसदी आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है। यह सेक्टर लगभग 140 करोड़ लोगों की आजीविका का प्रबंधन कर रहा है। आज़ादी के बाद, विशेषकर 1980 के दशक के बाद इस क्षेत्र में धीरे-धीरे सुधार हुआ और भारत आयातक के बजाय निर्यातक देश के रूप में उभरा। लेकिन पिछले चार-पांच सालों से बारिश की कमी, अतिवृष्टि, बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि के कारण यह क्षेत्र बेहद अविश्वसनीय हो गया है। इसमें कड़ी मेहनत के बाद उगाए गए सामान को बाजार में सस्ते दाम पर बेचा जाता है। कभी-कभी सड़क पर फसल फेंकने का समय आ जाता है। मुख्य रूप से पिछले दो वर्षों से सरकार द्वारा निर्यात प्रतिबंध के नाम पर कीमतों को नीचे धकेल दिया गया है, जिसमें पूरे भारत के गरीब, मध्यम वर्ग के लोग जो कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं, पूरी तरह से अभिभूत हो गए हैं, लेकिन सरकार का कुछ भी लेना-देना नहीं है। वे शहरी वोट बैंक पर कब्जा बनाए हुए हैं। चाहे किसान सड़कों पर कितने भी विरोध प्रदर्शन करें, वे इसे गंभीरता से नहीं लेगी।

इसीलिए किसानो जागो!सावधान हो जाओ!!…. कहने का समय आ गया है। क्योंकि आजकल ‘मुफ्तखोर को हलवा-पूरी… और अन्नदाता भूखे मरे’ की स्थिति हो गई है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की गारंटी के साथ सत्ता में आई मुंहजोर सरकार के अब अवसरवादी राजनेताओं पर भरोसा करने के दिन लद गए हैं। ये हमारी सरकार बनकर सत्ता में आए हैं। जिन्हें यहां कुछ नहीं मिला, इसलिए वहां चले गए…. अब ऐसा ख़त्म होना चाहिए। उनके पास अपनी दस पीढ़ियों के लिए बैठकर खाने के लिए पर्याप्त सामान उपलब्ध है। इसलिए उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। किसानों को सब्सिडी की भीख मांगना बंद कर देना चाहिए, यदि वे वास्तव में किसान राजा बनना चाहते हैं, तो उन्हें व्यक्तिगत और दलगत स्वार्थ छोड़कर एकजुट होना होगा। फ्रांस के किसानों की तरह एकता दिखानी होगी।

अब भारत का किसान वर्ग, सरकार से गारंटी-मूल्य की भीख मांगने की बजाय 140 करोड़ के पेट की चिंता करना बंद करें। केवल एक काम करना चाहिए। वह यह कि आवश्यकता से कम फसल पैदा करें। जो लोग इस स्थिति में बैठकर लाखों की सैलरी लेते हैं, जो करोड़ों का टर्नओवर करते हैं, उनके पेट की चिंता आपको क्यों है? वर्ष -दो वर्ष भारत में किसानों को केवल अर्ध-खेती ही करनी चाहिए। यदि आधी भूमि को बंजर छोड़कर उसमें घास उगने दी जाए, तो उसमें बहुत सारे तने उग आएंगे, इसलिए बिना बंजर किए सोया को दोगुना कर दें और स्वचालित रूप से आधी भूमि पर बुआई हो जाएगी। साथ ही, बार-बार फसल काटने, कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों के तथा विश्राम की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरता भी खराब हो गई है। एक एकड़ में धनिया, मेथी और गोभी लगा कर उन्हें रुपये-दो रुपए में बेचना पड़ता है,तथा 5-25 एकड़ में प्याज की खेती करके उसे 200 से 500 रुपये में बेचना पड़ता है। फिर भी खेती और फसलों की लागत कम नहीं होती। इसलिए कम उगाओ। आवश्यकता से बहुत कम उगाओ। आप जिस दूरी पर वर्तमान में अपनी फसल लगा रहे हों, उस दूरी को आप दोगुनी कर दो! और तब, आपको बिना मांगे अपनी फसल की कीमत स्वचालित रूप से मिल जाएगी! इसमें कृषि भी शामिल होगी और लागत आधी हो जायेगी। इससे आपकी बचत होगी क्योंकि खेती, मजदूरी, खाद, बीज, दवा की लागत आधी हो जायेगी, लेकिन दूरी बढ़ने से फसल जोरदार होगी।

सरकार अब भी कह रही है कि हम भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में अनाज दे रहे हैं। इसका मतलब है कि अस्सी करोड़ लोग अपने पेट भरने के लायक भी पर्याप्त पैसा नहीं कमा पा रहे हैं। सरकार द्वारा इस बड़े वर्ग को इससे मुक्त करने की प्रक्रिया भी कृषि क्षेत्र की कमर तोड़ रही है। चूँकि अनाज मुफ़्त मिलता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में युवा-मजदूर गाँव-गाँव घूमकर ताश खेलते हैं, लेकिन काम के बदले में अपने पिता से भी आधी मज़दूरी मांगते हैं, जिसे किसान वहन नहीं कर सकते। इससे किसानों का शोषण हो रहा है। इसका कारण कोई और नहीं, बल्कि सरकार द्वारा अलग-अलग नामों से दिया जाने वाला मुफ्त अनाज, दाल, तेल और राशन है। अगर सरकार ने इसे बंद कर दिया, तो सभी को अपना पेट भरने के लिए काम करना ही पड़ेगा। तब वैकल्पिक रूप से काम के लिए जनशक्ति भी उपलब्ध होगी।

सच तो यही है कि सरकार एक तरह से इस युवा जनसमूह को निष्क्रिय बना रही है सरकार इनको मुफ्त अनाज किसके भरोसे दे रही है? यह अनाज कहां से आता है? क्या यह कारखाने में निर्मित है या आयातित है? ये सभी मुफ़्त चीज़ें किसानों द्वारा उगाई गई हैं। इसमें उसके परिश्रम का पसीना है। कभी लेवी के नाम पर, कभी निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर, कीमतें कम करके सरकार इसे अगले स्तर पर ले गई है। कृषि व्यवसाय में एक बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर हमें यह जांचना है कि आय, मुनाफा दोगुना होता है या आधा,… तो दवा, खाद, बीज, पाइप, ट्रैक्टर, उपकरण, माल ढुलाई, डीजल आदि की खपत के चलते बिना फसल वाली जमीन के दायरे को दोगुना कर दें। जैसा कि मैं मानता हूं, दो साल में आधी जमीन पर ही फसल उगाएं।

महामारी, तूफ़ान, हवा, ख़राब मौसम, ओले जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हमारे हाथ में नहीं हैं। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित सबसे बड़ी निर्यात प्रतिबंध नामक बीमारी है। और वो बीमारी अब अक्सर किसान की जड़ में है। यदि आप इसका उत्तर देना चाहते हैं, तो आपको कभी न कभी। ‘बाजार बंद’ नामक अहिंसक हथियार उठाना ही होगा। अगर बाजार बंद करना है, तो किसानों की एकता बहुत जरूरी है। इसके लिए सभी को योगदान देने की जरूरत है। व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं और पिछले दरवाजे से भी नहीं!

इसमें कुछ महत्वपूर्ण पहलू इस प्रकार हैं :-
1) यदि बाजार बंद करना है, तो गांव के लोगों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी कृषि उत्पाद, खाद्यान्न, सब्जियां, फल, दूध गांव से बाहर न जाएं. गांव की जरूरतों को गांव में पूरा करें। अपने-अपने गांव में ही एक-दूसरे को प्रतिदिन सब्जी, दूध, फल की आपूर्ति करें।
2)सड़क से लेकर दिल्ली तक दलालों की चेन तोड़ें।
3) किसी भी साप्ताहिक बाजार में सामान न भेजें।
4) महीने में कम से कम पंद्रह दिन तक किसानों का माल शहरों, बड़े शहरों, राजधानियों और विदेशी राज्यों में नहीं भेजा जाना चाहिए। खराब होने वाली सब्जियों की भाजपा खेती कम करो।
5) केवल अपने परिवार के लिए दूध निकालें, बाकी बछड़ों को पीने दें। इसे सड़क पर न फेंकें, बल्कि घी जैसे उप-उत्पाद पैदा करें। प्याज, आलू और लहसुन को संरक्षित किया जा सकता है। बाज़ार में लाए बिना भंडारण करें। यदि सभी किसान एकजुट हो जाएं और कम उत्पादन करें, तो आप व्यापारी के दरवाजे पर नहीं होंगे, बल्कि व्यापारी आपके खेतों पर आएगा। आप अपने सामान की कीमत तय करें। फर्जी किसान उत्पादक कंपनियों, नाफेड को माल न बेचें। जब तक इस देश में किसान संगठित और आर्थिक रूप से शिक्षित नहीं होंगे, सरकार, मुफ्तखोर और व्यापारी- दलाल आपको लूटते रहेंगे। 100 क्विंटल प्याज उगाकर 200 रुपये में बेचकर 20000 रुपये कमाने की बजाय सिर्फ 20 क्विंटल ही उगाएं, कीमत कम से कम 4 हजार रुपये हो जाएगी और मिलेंगे 80 हजार रुपये। यानी कम लागत, कम मेहनत! इसके लिए ही देश के सभी किसान संगठनों को एक साथ आना होगा और ग्रामीण स्तर से सही योजना बनानी होगी। सरकार से भीख मांगने की बजाय आपको अपने सामान की मनचाही कीमत पाने की इच्छाशक्ति विकसित करनी चाहिए।

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– प्रकाश पोहरे
(संपादक- देशोन्नती/ राष्ट्रप्रकाश)

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