नई दिल्ली: जजों की नियुक्ति के मामले में केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट एक बार फिर आमने-सामने हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की तरफ से भेजे गए नामों पर सरकार की तरफ से निर्णय नहीं लिए जाने पर नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि अगर सरकार ने फैसला नहीं लिया तो उसे न्यायिक आदेश देना पड़ सकता है। इससे पहले केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम यह नहीं कह सकता कि सरकार उसकी तरफ से भेजे हर नाम को तुरंत मंजूरी दे। अगर ऐसा है तो उन्हें खुद ही नियुक्ति कर लेनी चाहिए।
कोर्ट ने कानून मंत्री को लगाई फटकार
शीर्ष अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून रुप से लागू नहीं हो पाया, इसलिए सिफारिशों को रोक दिया गया।न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति ए.एस. ओका ने कहा, जब कोई उच्च पद पर आसीन व्यक्ति कहता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार सिफारिश दोहराए जाने के बाद नामों को मंजूरी देनी होगी। इसने आगे कहा कि कानून के अनुसार यह मामला समाप्त हो गया है।
बिना वजह नामों को रोक कर रखना गलत: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार की तरफ से बिना कोई वजह बताए नामों को रोक कर रखना गलत है। सरकार अपनी मर्जी से नाम चुन रही है। इससे वरिष्ठता का क्रम भी गड़बड़ा रहा है। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमनी ने कहा कि वह लंबित फाइलों पर सरकार से बात कर जवाब देंगे। इस पर कोर्ट ने सुनवाई 8 दिसंबर के लिए टाल दी। वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कोर्ट से अवमानना नोटिस जारी करने की मांग की। इसका अटॉर्नी जनरल ने विरोध किया।
देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं: रिजिजू
गौरतलब है कि केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले महीने कहा था कि देश के लोग कॉलेजियम प्रणाली से खुश नहीं हैं और संविधान की भावना के अनुसार न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सरकार का काम है। भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश यू. यू. ललित ने हालांकि 13 नवंबर को कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली यहां मौजूद रहेगी और यह एक स्थापित मानदंड है, जहां न्यायाधीश ही न्यायाधीश को चुनते हैं।