रांची (बीरेंद्र कुमार): जैसे ही हेमंत सोरेन से जुड़ा हुआ मामला चुनाव आयोग या ईडी के पास पहुंचा वैसे ही हेमंत सोरेन को यह डर लगने लगा कि हो न हो कही इन मामलों की वजह से उनकी सरकार ही न गिर जाय। फिर क्या था वे आदिवासी और मूलवासी को लेकर इमोशनल कार्ड खेलने में लग गए। खुद को शहीद बताकर अगले चुनाव में अपनी जीत पक्का करने के लिए उन्होंने चुनाव की स्थिति में जीत हासिल करने के उद्देश्य से बीजेपी को धाराशाई करने के लिए दनादन राजनीतिक तीर चलाना शुरू कर दिया।
हेमंत सोरेन सरकार ने बीजेपी पर जितने भी तीर चलाए, उसमे सबसे प्रमुख था 1932 का खतियान वाला विधेयक जिसे हेमंत सोरेन की सरकार ने विधानसभा से पास करवाकर केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया है। लेकिन अब बीजेपी हेमंत सोरेन द्वारा चलाए गए इस तीर का मुंह हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार की तरफ ही करने में जुट गई है।
भारतीय जनता पार्टी ने चलाया अभियान
भारतीय जनता पार्टी अब अभियान चलाकर जगह-जगह कार्यक्रम कर लोगों को यह बताने में जुट गई है कि वास्तव में हेमंत सोरेन की मंशा यहां स्थानीयता नीति बनाने की ही नहीं है। यह सिर्फ आदिवासियों मूल वासियों और बाहरी भीतरी के मुद्दे पर लोगों को बांट कर अपने पक्ष में वोट बैंक तैयार करने की नीति पर चल रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि हेमंत सोरेन ने लोगों को भरमाने के लिए स्थानीयता की नीति को विधानसभा में पास करवाया है, इस स्थानीयता नीति में नियोजन जैसे कई मूलभूत चीजों को इसमें नहीं जोड़ा गया है,जिससे उसके होने या नहीं होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है।
इस औचित्यहीन विधेयक के जरिए हेमंत सोरेन सिर्फ वोट बैंक का जुगाड़ करने में जुटे है क्योंकि वे यह जान गए हैं कि चुनाव आयोग और ईडी के यहां उनके विरुद्ध चल रहे मुद्दे इतने गंभीर हैं कि कभी भी उनकी सरकार की नैया डूब सकती है। वहीं बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का कहना है कि हेमंत सोरेन की मंशा अगर स्थानीयता की नीति को लेकर साफ होती तो वे इसे संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने का बहाना बनाकर केंद्र सरकार के पाले में नहीं भेजते और सीधे-सीधे इसे लागू कर देते जैसा कि बाबूलाल मरांडी ने किया था।
बाबूलाल मरांडी के वक्त भी पूरा होमवर्क नहीं कर इसे लागू करने के कारण हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक करार दिया था। हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री हैं और उन्हें इन सब बातों की जानकारी है कि इस रूप में राज्य के लोगों के बीच वैमनस्यता फैलाकर लाई जाने वाली स्थानीयता की नीति हाईकोर्ट में निरस्त हो जाएगी। लेकिन इसके बावजूद मूल वासियों और आदिवासियों को भरमाकर चुनाव होने की स्थिति में अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने यह चाल चली की विधानसभा से इसे पारित करवाकर संविधान की नौवीं अनुसूची में डालने के लिए केंद्र सरकार के पाले में डाल दिया।
क्यों नहीं है झारखंड में सभी लोगों के नाम खतियान में दर्ज
झारखंड में प्रचलित एक कानून छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट में कुछ हल्के फुल्के छूट के अलावे जमीन के स्वामित्व हस्तांतरण पर रोक हैं तो वही संथाल परगना टेनेंसी एक्ट लगभग पूरी तरह से जमीन के स्वामित्व हस्तांतरण, यहां तक कि लीज देने पर भी प्रतिबंध लगाता है। इस कारण लंबे समय से रहने के बावजूद भी यहां कई कई वर्षों से रह रहे, कई लोगों के नाम खतियान में दर्ज नहीं है। ऐसे में खतियान आधारित स्थानीयता नीति को पूर्व की ही तरह लागू करने के बाद हाईकोर्ट असंवैधानिक करार दे सकता है।
बावजूद इसके इस मुद्दे का तीर पहले हेमंत सोरेन की सरकार ने बीजेपी की तरफ मुंह कर छोड़ा और अब बीजेपी इसका मुंह हेमंत सोरेन सरकार की ओर मोड़ने में लगा है। इस परिस्थिति में ये 7 राजनीतिक दल वाले कितने घायल होंगे, होंगे भी या नहीं, कहा नहीं जा सकता। लेकिन असली रूप में घायल तो जनता को होना पड़ता है। इसका उदाहरण यहां पहले भी देखा जा चुका है। जब पिछली बार बाबूलाल मरांडी की सरकार ने इसे लागू किया था तब इसी मुद्दे पर यहां कई लोगों की जान चली गई थी। और अगर हाईकोर्ट ने इसपर आपत्ति नहीं जताई होती तो कितने और लोगों की जान स्थानीयता के ऐसे स्वार्थपूर्ण कानून लागू करने के प्रयास के कारण चली जाती।