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India को क्यों है German पनडुब्बियों की जरुरत, भारत खरीदना चाहता है जर्मनी से 6 सबमरीन

Published on

विकास कुमार
जर्मनी के रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस मुंबई में भारतीय नौसेना के लिए जहाज बनाने वाली कंपनी का दौरा करेंगे। इस कंपनी का नाम- मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड है। बोरिस पिस्टोरियस इस कंपनी का दौरा उस वक्त कर रहे हैं। जब इस बात की चर्चा हो रही है कि। भारत और जर्मनी मिलकर पनडुब्बियां बनाने की डील साइन करने वाले हैं। ऐसे में ये सवाल उठता है कि भारत आखिर जर्मनी से ही क्यों पनडुब्बी बनाने के लिए समझौता करना चाहता है। और भारत को इस डील से आखिर क्या फायदा होगा।

भारतीय नौसेना को 24 पनडुब्बियों की जरूरत, लेकिन अभी भारत के पास सिर्फ 16 पनडुब्बी है। हिंद महासागर में चीन के बढ़ते असर का मुकाबला करने के लिए भारत को पनडुब्बियों की सख्त जरूरत है। क्योंकि भारत के पास जो 16 पनडुब्बी है उनमें से केवल 6 नई पनडुब्बियां हैं। बाकी पनडुब्बियां तीस साल पुरानी हैं। इन पनडुब्बियों को जल्द ही सेवा से हटाया जा सकता है। ऐसे में अगर जर्मनी के साथ ये डील होगी तो भारत की पनडुब्बियों की जरूरत पूरी हो जाएगी।

भारत ने प्रोजेक्ट 75 के तहत नौसेना को 6 पनडुब्बियां सौंपने की योजना बनाई है। जर्मनी ने भारत के लिए पनडुब्बियां तैयार करने का ऑफर दिया है। अब भारत और जर्मनी के बीच इसी प्रोजेक्ट पर समझौता होने की उम्मीद जताई जा रही है। जर्मनी की पनडुब्बी में एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी रहती है। इस टेक्नोलॉजी से चलने वाली पनडुब्बियों की खासियत ये होती है कि। वह लंबे समय तक पानी के अंदर रह सकती हैं। उसे बार-बार बाकी पनडुब्बियों की तरह समुद्र की सतह पर नहीं आना पड़ता है। न्यूक्लियर पनडुब्बियों को छोड़कर बाकी सभी पनडुब्बियों को हवा के लिए बार बार पानी की सतह पर आना पड़ता है। इस दौरान दुश्मन उनकी लोकेशन डिटेक्ट कर उन पर हमला कर सकता है। अगर भारत को जर्मनी की एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी मिलती है। तो नौ सेना और भी मजबूत हो जाएगी। इससे हिंद महासागर में दुश्मन की हर चाल पर नजर रखने में भारतीय नौसेना को आसानी होगी। यही वजह है कि नौसेना जर्मनी की कंपनी से पनडुब्बियां बनवाना चाहती है।

साल 1986 से 1994 तक भारत ने जर्मनी से चार तरह की पनडुब्बियां खरीदी थीं। ये पनडुब्बियां आज भी भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हैं। भारतीय नौसेना को मजबूत करने में इन पनडुब्बियों का अहम योगदान है। इसलिए भारतीय नौसेना जर्मन टेक्नोलॉजी वाले पनडुब्बी को हासिल करना चाहती है।

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