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अबकी बार 400 पार या तड़ीपार….?

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प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

किसी भी बात को लगातार झूठ बोलते रहने पर वह बात धीरे-धीरे लोगों को ‘सच’ लगने लगती है! यही ‘गोएबल्स तकनीक’ है। लेकिन जब हमें एहसास होता है कि जिन बातों पर हम विश्वास करते हैं, वे तो वास्तव में झूठी हैं, तब तक समय बीत चुका होता है।

जब आम राय यह बन जाती है कि ‘हिटलर हमारे देश के लिए ईश्वर का उपहार है’ तो इसके पीछे निश्चित रूप से कोई ‘प्रपोगण्डा’ काम कर रहा है, और आम आदमी को पता ही नहीं चलता कि हम उनके प्रभाव में आकर अंधभक्त बन गये हैं। इसके विपरीत, वह यह मानता रहता है कि उसकी पढ़ाई के अंत में यही उसकी राय है। यह इन ‘अदृश्य हाथों, प्रचार दिमागों’ की सीमा है। हमारे देश में अभी जो चल रहा है, वह इससे अलग नहीं है।

वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी न केवल धन और संसाधनों के मामले में ताकतवर है, बल्कि वह दिखावे और आडंबर की पार्टी भी है। दूसरी ओर, चुनाव के मद्देनजर बैंक खाते फ्रीज कर सभी राजनीतिक दलों को दुविधा में डाल दिया गया है। यह स्पष्ट रूप से लोकतंत्र का विध्वंस है। प्रशंसक मोदी के बारे में जब बात करते हैं, तो ऐसे मतदाता शायद ही कभी ‘भाजपा’ शब्द का उच्चारण करते हैं। वे हमेशा ‘मोदी’ कहते हैं, या ‘कमल का फूल’ कहते हैं! उनके किसी भी कार्यक्रम या प्रसंग का खर्च आंखें फाड़ देने वाला होता है। ऐसे छोटे-बड़े ‘इवेंट’ पर एक साल में कितने हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च होंगे और ये पैसा आता कहां से है? इसका आकलन करना जरूरी है। इस तरह इस सवाल का ‘नंगा सच’ ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ के जरिए सामने आया। देश में एक ओर ‘प्रधानमंत्री सहायता निधि’ बंद की गई और दूसरी ओर ‘पीएम केयर फंड’ शुरू किया गया। सबसे बड़ी बात यह है कि यह फण्ड निजी है, इसलिए इसे आरटीआई के दायरे से बाहर रखा गया है। यह इस देश में भ्रष्टाचार और बेशर्मी का सबसे घटिया उदाहरण है!

दो साल पहले जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली जाने वाली सभी सीमाएं बंद कर दीं और 13 महीने तक बैठे रहे, तो उस दौरान 700 से ज्यादा किसान मारे गए। अब इस साल फिर से 13 फरवरी 2024 से पंजाब के किसानों ने सरकार द्वारा दिए गए (लिखित) वादे के मुताबिक अपनी मांगों को पूरा करने के लिए अपना विरोध प्रदर्शन शुरू किया और उनकी सड़कों को खोदकर और रास्ते में कीलें गाड़कर उनका रास्ता रोक दिया गया। यहां तक ​​कि दुश्मन को भी शर्म आ जाए, ऐसे अत्याचारों के कारण किसान पंजाब की सीमा पार कर हरियाणा को भी पार नहीं कर पाए और कई किसानों की जान चली गई। क्योंकि पंजाब और दिल्ली के बीच पड़ने वाले हरियाणा में बीजेपी सरकार सत्ता में है और उसने केंद्र सरकार की मदद से इन प्रदर्शनकारियों को पूरी ताकत से रोकने की कोशिश की है। बेशर्मी का एक और उदाहरण किसानों को इकट्ठा होने से रोकने के लिए रामलीला मैदान में सीवेज का पानी छोड़ना है!

एक तरफ ‘चुनावी बांड’ का दंश और दूसरी तरफ किसान आंदोलन, इससे ‘मोदी’ सरकार बेहद मुश्किल में है। यह सच है कि देश में चुनावों की घोषणा हो चुकी है और आदर्श आचार संहिता भी लागू हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता को गिरफ्तार कर लिया गया। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, जबकि दिल्ली राज्य सरकार दो साल पहले पंजाब से शुरू हुए किसान आंदोलन के बाद से ही किसानों की मदद कर रही है, क्या इसे छुपाने और इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले से ध्यान भटकाने के लिए गिरफ्तारी कहीं असंवैधानिक तो नहीं है? ऐसा संदेह होता है।

वित्तीय हेराफेरी के आरोप में पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया और पूर्व मंत्री सत्येन्द्र जैन जेल में हैं। बीजेपी का मुख्य निशाना मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ही थे। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव की बेटी कविता, लालू प्रसाद यादव के पूरे परिवार की जांच हो रही है। इसी डर से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया। खालिस्तान, उग्रवाद के मुद्दे पर अटकलें चल रही हैं कि पंजाब में हमारी सरकार कितने समय तक रहेगी। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के मामले थे, बदनामी हुई, कारावास भुगता, 6 साल तक संघर्ष किया। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये सभी मामले ‘फर्जी’ हैं। शिवकुमार को बरी कर दिया गया, यह सच है कि अंततः न्याय हुआ, लेकिन एक निर्दोष को 6 साल तक नाहक ही जेल में रखा गया। इस के लिए कौन जिम्मेदार है? महाराष्ट्र के अनिल देशमुख भी 13 महीने जेल में रहे और सबूतों के अभाव में उन्हें कोर्ट से जमानत भी मिल गई। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जेल में हैं। विपक्ष को बदनाम करना, झूठे आरोप में गिरफ्तार करना और मतदाताओं के मन में यह बिठा देना कि भाजपा का कोई विकल्प नहीं है, यही ‘गोएबल्स तकनीक’ है, जिसे भाजपा जर्मनी के हिटलर के बाद इस समय भारत में इस्तेमाल कर रही है। आज की राजनीति में इन हथियारों का इस्तेमाल होता है और ये आम आदमी को आसानी से बहकाते नजर आते हैं। इसके अलावा, मोबाइल वाले वीडियो और सोशल मीडिया यह काम आसानी से कर देते हैं। ‘प्रोपेगैंडा’ में विपक्ष पर बिना किसी गलती के जोरदार हमला किया जाता है, क्योंकि अगर सच दिखा दिया जाए तो प्रोपेगेंडा फेल हो जाता है।

कई राज्यों में विपक्षी दल सीधे तौर पर ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स आदि सिस्टम से डराए गए। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के भीतर से सेनापति को उखाड़कर जीत हासिल की। सबसे पहले पंजाब का उदाहरण याद करते हैं, पंजाब चुनाव में कांग्रेस हार गई। इससे पहले भी पार्टी के अंदर कई बार बगावत हो चुकी है। चुनाव ख़त्म हो चुका था और कैप्टन अमरिन्दर सिंह, जो स्वयं मुख्यमंत्री रह चुके थे, सीधे भाजपा में जाते दिखे। ट्रैक्टर रैली में राहुल गांधी के साथ मार्च करने वाले तुरंत अगले मिनट-घंटे में बीजेपी में शामिल हो जाते हैं, लेकिन पंजाब में आम आदमी पार्टी चुनाव जीत जाती है, ये हार बीजेपी के लिए बहुत बड़ी क्षति है। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले ईडी द्वारा अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के पीछे का गणित समझना मुश्किल नहीं है।

मध्य प्रदेश में भी यही हुआ, कमलनाथ ने अपना पूरा जीवन कांग्रेस में बिताया। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण की भूमिका निभाई। पूरे चुनाव के दौरान धूल उड़ाते हेलीकॉप्टरों ने लोगों की आंखों में ऐसी छवि बनाई, मानो वोट पक्ष में जा रहे हों। फिर उन्हीं कमलनाथ के बारे में चर्चा उड़ी कि वे खुद बीजेपी में शामिल होंगे। यह अचानक नहीं होता। कमलनाथ ने कांग्रेस पार्टी के टिकट वितरण को अपने हाथ में ले लिया और एक बेकार, कमजोर उम्मीदवार देकर पार्टी को सचमुच धोखा दिया और चुनाव भाजपा के हाथों में सौंप दिया है। इसके लिए कितने हजारों करोड़ की डील की गई, इसका राज अब प्रदेश की जनता के सामने आ गया है। मजेदार बात यह है कि उनके अपने गृहक्षेत्र छिंदवाड़ा से सभी विधायक कांग्रेस के ही कैसे निर्वाचित होते रहे हैं, क्योंकि वे उनके दरबार में नौकरों की तरह हैं। कमलनाथ मूल रूप से मध्यप्रदेश के नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं। इंदिरा गांधी ने उन्हें मध्य प्रदेश भेजा और कहा, ‘यह मेरा तीसरा बेटा है, इसे आपकी गोद में डाल रही हूं’। उस क्षेत्र के लोग आज भी इंदिरा गांधी की यादों को संजोकर रखते हैं। जनता आज भी कांग्रेस को पसंद करती है, इसलिए लोग कमलनाथ को अपना मुखिया मानते हैं। वे ही संपत्ति का रखरखाव करते हैं और धन बढ़ाते हैं, उन्होंने अपना वर्तमान और भविष्य को सुरक्षित कर लिया है। बदले में चुनाव की कमान बीजेपी को सौंप दी गई है।

छत्तीसगढ़ में भी यही हुआ, ‘गुजरात/अडानी पैटर्न’ वहां कम से कम एक साल पहले से ही फैला हुआ था। जंगल, जमीन और खान-खनिज पर हजारों करोड़ का ‘निवेश’ किया गया। कहा जाता है कि इसका बड़ा हिस्सा कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने ले लिया। ये सब चुनाव से पहले होता है, चुनाव सिर्फ ‘इलाज’ बनकर रह जाता है।

विपक्षी दल के विधायक से पूछा जाता है, ‘कब तक विधायक रहोगे? क्या करेंगे आप, अगर छापा पड़ा तो जेल जाओगे, बदनामी होगी। पराजित हो जाओगे, बल्कि आपको बीजेपी में शामिल हो जाना चाहिए।’ तब बात फिट बैठ जाती है। अजित पवार, अशोक चव्हाण, छगन भुजबल, विखे पाटिल आदि जैसे कई कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी नेताओं को बीजेपी की इन्हीं राजनीतिक शार्क ने निगल लिया है। अब उन्हें बीजेपी के उस विशाल पेट में मजे से खाने में कोई दिक्कत नहीं है। मगर ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ कहने वाली पार्टी ही अब ‘कांग्रेस युक्त भाजपा’ हो गई है।

किसी खास इलाके या प्रांत में उद्यमशील वित्तीय ताकत वाला कोई व्यापारिक समूह और उसके लिए अच्छा काम करने वाला नेता भाजपा की नजर में आता है। तब वहां मिलजुल कर रहने वाले सामाजिक तत्वों को यह बात खटकती है। इन्हें वहां के राजनीतिक परिवार पसंद नहीं आते। फिर उन्हें पेशकश की जाती है, लालच दिया जाता है, धमकाया जाता है। लेकिन कुछ भी हो, बाद में उस नेता को या तो बीजेपी के साथ रहना पड़ता है या फिर उसे खत्म होने के लिए तैयार रहना पड़ता है। बीजेपी की असली राजनीति यही है कि उस क्षेत्र का हर सत्ता केंद्र और व्यापारिक नेटवर्क उसके ही हाथ में हो। इसीलिए करीब तीन साल हो गए। देश में कोई स्थानीय चुनाव नहीं हुए हैं। नगर पालिकाओं, महानगर पालिकाओं, जिला परिषदों का कामकाज प्रशासक चला रहे हैं। राज्य की नगर पालिकाओं का ख्याल मन में आते ही सिर घूम जाता है। इतना बड़ा कारोबार भाजपा के हाथ में है। अकेले मुंबई का बजट लगभग पचास हजार करोड़ है। ठाणे, नवी मुंबई, मीरा भायंदर, पिंपरी चिंचवड़, पुणे, कल्याण-डोंबिवली, नागपुर, सोलापुर, लातूर, नासिक, अकोला, अमरावती आदि का बजट मिला दिया जाए तो कितने लाख करोड़ होगा? प्रत्येक अधिकारी इतने बड़े टर्नओवर का प्रभारी है। वहां के आयुक्त ऊपर से मिली चेतावनी पर कार्रवाई करते रहते हैं।

एक चैंबर में बैठकर दी गई सूची के अनुसार टेंडरों का वितरण किया जाता है। शायद अगले एक साल तक इस स्वशासी निकाय के चुनाव नहीं होंगे। अत: नगर निगम स्तर पर भी जगह-जगह टेंडर गिरोहों का तनाव और प्रकोप भड़कने वाला है। यही वजह है कि ठाणे जिले में पुलिस स्टेशन पर फायरिंग हुई। इसके बारे में कोई नहीं सोचता, बल्कि ऐसा माहौल बनाया जाता है मानो ऐसा तो चलता ही रहता है। राज्य के गृह मंत्री देवेन्द्र फड़णवीस ने भी कहा कि कुत्ते गाड़ी के नीचे आ जाते हैं, तो भी गृह मंत्री को जिम्मेदार बताया जाता है। ऐसा काम अब नहीं चलेगा। पूरे देश में उसी शासन के उदय का जश्न मनाया जा रहा है। यह कथन बिना किसी मिथ्याकरण के समर्थित है। इस प्रकार इलेक्ट्रॉनिक चैनल सुर्खियाँ प्रदर्शित करते रहते हैं। जिस प्रकार राजनीतिक गांठें कस्बे, शहर, जिला स्तर पर फैली होती हैं, उसी प्रकार पूरे देश में इसके भव्य और विशाल नेटवर्क की योजना बनाई जाती है। शायद इसीलिए सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनल ‘अब की बार, 400 पार’, ‘आएगा तो मोदी ही’ जैसी बोल्ड हेडलाइन दिखा रहे हैं। यही ‘गोएबल्स’ तकनीक का हिस्सा है, इसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है..!

किसान नाराज हैं, युवा नाराज हैं, महिलाएं नाराज हैं, व्यापारी नाराज हैं, इलेक्ट्रोल बांड घोटाला, पिछले दस साल की सारी खोखली घोषणाएं, जजिया टैक्स के लिए भी शर्मनाक जीएसटी, टोल टैक्स से पेट्रोल, डीजल, गैस की महंगाई…. देश के कुछ उद्योगपतियों का 25 लाख करोड़ का कर्ज माफ किया गया और उनका आयकर 12 फीसदी कम किया गया और किसानों के हाथ में भीख का कटोरा थमा दिया गया…!

2014 में जब बीजेपी के पक्ष में लहर थी, तब उसके 283 सांसद चुनकर आए थे। 2019 में पांच साल बाद 303 सांसद, जब पुल के नीचे बहुत सारा पानी बह गया और कलई खुल गई, तब…! और अब 2024 में भी 60-70 प्रतिशत लोग भाजपा के नाम का डंका पीट रहे हैं। देश में व्याप्त अराजकता और दरार के बावजूद बीजेपी का ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा किस भरोसे पर आधारित है?

देशभर में ईवीएम के खिलाफ आक्रोश व्याप्त है, हर राज्य में, हर जिले में, हर छोटे-बड़े शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, पुणे, नागपुर, बेंगलुरु, हैदराबाद में ईवीएम के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन इस देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करने के कारण बीजेपी बेलगाम शासन कर रही है। तालतन्त्र को लापरवाही से छोड़ रही है, अब इस देश की जनता को यह संकेत दिखने लगे हैं कि इस देश की जनता भाजपा के इस बेलगाम सांड को सबक जरूर सिखाएगी। इसी तरह वोटरों ने उनको पिछली बार उनकी ‘सही जगह’ दिखा दी, जो कहते थे ‘मैं फिर आऊंगा, मैं फिर आऊंगा!’ अब देखना है कि देश के वोटर , बीजेपी को ‘अबकी बार 400 पार’ करवाते हैं या ‘तड़ीपार’ करते हैं….!
आगे-आगे देखिये होता है क्या?

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-प्रकाश पोहरे
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