पिछले कुछ वर्षों में विकास को सीमेंट से किये गए निर्माण, सड़कों का चौड़ीकरण, डामर सड़कों का सीमेंटीकरण, पेड़ों की कटाई, वायु और जल प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के रूप में परिभाषित किया गया है, जो महात्मा गांधी की परिभाषा से बहुत अलग है।
लगभग 700 किमी समृद्धि हाईवे को 70,000 करोड़ रुपये खर्च करके बनाना उन्हीं तथाकथित विकास में से एक है! इस महामार्ग पर करीब 1 किलोमीटर तक 100 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। उपमुख्यमंत्री पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि इस महामार्ग को गोंदिया-गढ़चिरौली तक बढ़ाया जाएगा।
उस संभावित विस्तार का एक कारण बताया गया है। वह यह कि इस हाईवे से विदर्भ के धान किसानों और आदिवासियों को लाभ होगा। लेकिन अगर डबल इंजन वाली केंद्र सरकार चावल के निर्यात पर रोक लगा देती है, गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगाया जाता है, तो इससे धान उत्पादकों को क्या लाभ होगा? इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। फिर ऐसा सवाल जिसने पूछा, वह देशद्रोही है…!!
समृद्धि हाईवे को लेकर कई लोगों ने कई प्रकार की राय व्यक्त की हैं। मैं स्वयं इस राजमार्ग से तीन-चार बार यात्रा कर चुका हूं। उस समय के अनुभव से यह समृद्धि हाईवे और सीमेंट रोड का घाट क्यों बिछाया जा रहा है? इसका जवाब मिल गया। यह इस प्रकार है..
महाराष्ट्र के कुल क्षेत्रफल के केवल 12.33 प्रतिशत भाग पर ही खनिज संसाधन पाये जाते हैं। कोंकण के ठाणे, रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग जिलों को बाहर रखा गया। पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुर को छोड़कर शेष खनिज संसाधन विदर्भ के चंद्रपुर, गढ़चिरौली, भंडारा, गोंदिया, नागपुर और यवतमाल जिलों में हैं। देश के कुल मैंगनीज भंडार का 40 प्रतिशत महाराष्ट्र में है। सिंधुदुर्ग के कुछ हिस्सों के अलावा, शेष मैंगनीज भंडार मुख्य रूप से भंडारा और नागपुर जिलों में ही हैं।
लौह अयस्क की बात करें, तो भारत के कुल लौह अयस्क भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा महाराष्ट्र के पास है। महाराष्ट्र में लौह अयस्क मुख्यतः हेमेटाइट प्रकार का होता है। लौह अयस्क विदर्भ के गढ़चिरौली, चंद्रपुर, नागपुर, गोंदिया में टैकोनाइट चट्टान में पाया जाता है। विदर्भ के गढ़चिरौली जिले के एटापल्ली सुरजागढ़ में लौह अयस्क का सबसे बड़ा भंडार है। देउलगांव क्षेत्र लौह अयस्क के लिए प्रसिद्ध है. यहां उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क उपलब्ध है।
चंद्रपुर जिले में चिमूर तालुका के पिंपलगांव और भिसी में और ब्रह्मपुरी तालुका के रत्नपुर और लोहारडोंगरी में लौह अयस्क की खदानें हैं। मैग्नेटाइट प्रकार का लौह अयस्क गोंदिया जिले के गोरेगांव तालुका में पाया जाता है। लौह अयस्क गोंदिया जिले की आग्नेय चट्टानों में पाया जाता है। विदर्भ में, यवतमाल जिले में मांजरी, वांजरी, राजुर में चूना पत्थर का सबसे बड़ा भंडार है। वर्धा, चंद्रपुर में राजुरा और नागपुर में रामटेक व सावनेर डिवीजन में उत्कृष्ट चूना पत्थर पाया जाता है। क्रोमाइट केवल नागपुर और भंडारा जिलों में पाया जाता है।
कोयला मुख्य रूप से विदर्भ में वर्धा और वैनगंगा नदियों की घाटियों में पाया जाता है। पूर्वी विदर्भ की गोंडवानी चट्टानों में अच्छी गुणवत्ता वाला कठोर कोयला होता है। ऐसा कोयला चंद्रपुर के बल्लारपुर, नागपुर के उमरेड और यवतमाल के वणी प्रभाग में पाया जाता है।
ताम्र अयस्क नागपुर जिले के ही पुल्लर, तांबेखानी, कोलारी व चंद्रपुर जिले में पाया जाता है। जिंक एक खनिज है, जो नागपुर जिले के तांबेखानी, कोलारी, भवारी में पाया जाता है। इसके अलावा विदर्भ में टंगस्टन, फ्लोराइट, बैराइट, अभ्रक, काइनामाइट-सिलिमेनाइट, डोलोमाइट जैसे खनिज भी पाए जाते हैं।
गढ़चिरौली जिले के एटापल्ली तालुका में सुरजागढ़ पहाड़ी पर 348 हेक्टेयर पहाड़ी स्थल पर खुदाई चल रही है। हाल ही में स्थानीय लोगों के विरोध को धता बताते हुए यहां खनन क्षमता 30 लाख टन से बढ़ाकर 1 करोड़ टन की जाएगी।
इन खनिजों को बड़ी मात्रा में और कम समय में बंदरगाह तक पहुंचाने के लिए जाहिर है कि एक स्वतंत्र राजमार्ग की आवश्यकता थी। इस हाईवे के साथ ही बंदरगाह को विदर्भ से आसानी से जोड़ने के लिए नागपुर रत्नागिरी हाईवे को भी फोर लेन कर दिया गया है।
इसके अलावा छत्तीसगढ़-हैदराबाद गढ़चिरौली से होकर गुजरने वाला एक मेगा हाईवे है ही। इस सेक्शन से एक ट्रेन भी प्रस्तावित है, जिसके सर्वेक्षण का काम चल रहा है। इससे यह आसानी से ध्यान में आ सकता है कि विकास का यह चरण विदर्भ में बड़े पैमाने पर संसाधनों के दोहन के लिए ही रखा गया है।
यदि आप इस राजमार्ग के डिजाइन पर गौर करेंगे, तो पाएंगे कि इस राजमार्ग से स्थानीय किसानों को कोई फायदा भी नहीं होता है, बल्कि इस मार्ग के कारण विदर्भ सीधे ‘कोरिया’ की तरह उत्तर-दक्षिण में विभाजित हो जाता है। जिसके कारण भूमि पर खेती करने और मजदूरों की आवाजाही पर प्रतिबंध है। राज्य परिवहन निगम द्वारा संचालित जनसाधारण लोगों की एसटी बस भी इस राजमार्ग से नहीं गुजरती है। इससे यह समझना आसान हो जाता है कि समृद्धि आखिर किसकी हो रही है!!
–प्रकाश पोहरे
(सम्पादक– मराठी दैनिक देशोन्नति, हिन्दी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)
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