तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता हाल ही रद्द कर दी गई। नीति पालन समिति ने उन पर सवाल पूछने के बदले उपहार और पैसे लेने का आरोप लगाया था। इसे अनैतिक, विशेषाधिकार का हनन बताया गया। 500 पन्नों की रिपोर्ट को दो घंटे के भीतर स्वीकार कर लिया गया और महुआ मोइत्रा को संसद से बाहर करने की सिफारिश की गई। इससे कई संदेश गए हैं, जिनमें बीजेपी सांसदों के साथ-साथ विपक्षी दलों के सांसदों को भी परेशान करने की योजना शामिल है।
मोइत्रा ने लोकसभा में मोदी के दोस्त अडानी पर सवाल उठाने की गलती की। इससे पहले इसी तरह के सवाल पर गुस्सा करके अन्य कारणों से अदालत द्वारा अधिकतम सजा सुनाए जाने के बाद राहुल गांधी की सांसदी रद्द कर दी गई थी। इसके बाद अडानी मुद्दे पर लोकसभा में सवाल उठाने वाले आप सांसद संजय सिंह को जेल जाना पड़ा। जमानत एक अधिकार है और कारावास एक अपवाद है। उनके मामले में यह फॉर्मूला भुला दिया गया। अडानी देश के प्रधानमंत्री नहीं हैं, लेकिन अब तक के घटनाक्रम से पता चलता है कि अडानी पर सवाल उठाने वालों पर कार्रवाई हो रही है।
मोइत्रा की संसद सदस्यता रद्द होने के बाद अब लोकसभा में अडानी पर कोई सवाल नहीं करेगा। इसके सूत्रबद्ध अलिखित संकेत दिए गए। अब विरोध की आवाज दबाने के लिए ऐसे नए तंत्र विकसित किये गए हैं, जिससे कि जो लोग सत्ता के साथ रहेंगे, वे ही हमेशा खुशहाल रहेंगे। संसद के सदनों में सांसदों से प्रश्न पूछने का शून्यकाल निष्प्रभावी कर दिया गया है।
शून्यकाल में पूछे गए सवालों पर सबकी नजर होती है। मोइत्रा मामले के बाद कोई भी सांसद संवेदनशील सवाल पूछने की हिम्मत नहीं करेगा, इसे ही नई आजादी कहने का समय आ गया है।
ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि सभी सांसदों को अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक ही सीमित रहना पड़ रहा है। अब न तो अडानी से सवाल होगा, न ही सरकार पर जवाब देने की बारी आएगी। मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई के बाद उनकी सांसदी रद्द करने के फैसले के बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे लोकसभा से वॉकआउट कर गए। उन्होंने पत्रकारों का सामना नहीं किया। लेकिन उनके चेहरे की मुस्कुराहट बहुत कुछ बयां कर रही थी। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने उठाया था। जय अनंत ने इसकी शिकायत सीबीआई से की थी। इस पर तुरंत ध्यान दिया गया। जबकि जय अनंत कभी महुआ मोइत्रा के करीबी दोस्त थे। यह जल्द से जल्द स्पष्ट हो जाएगा कि महुआ मोइत्रा मामले में किसने कैसी भूमिका निभाई….? लेकिन इससे मिला संकेत सांसदों के लिए सांकेतिक संकल्प जैसा है।
महुआ मोइत्रा के मुताबिक, सौंपी गई 500 पन्नों की रिपोर्ट में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि उन्होंने उपहार स्वीकार किया है। अगर 500 पन्नों की इस रिपोर्ट को एथिक्स कमेटी ने दो घंटे में पढ़ लिया, तो इस कमेटी की पढ़ने की क्षमता की सराहना की जानी चाहिए। इस कार्रवाई से मोइत्रा को जनता की अदालत में न्याय मिलना आसान हो गया है।
महुआ मोइत्रा को संसद से बाहर निकालने के लिए नीति पालन समिति की बैठक कुछ ही मिनटों में ही खत्म हो गई। इसने संसद के ई-पोर्टल का लॉगिन विवरण प्रदान करने के लिए कदाचार, विशेषाधिकार का उल्लंघन, सदन की अवमानना का आरोप लगाते हुए महुआ मोइत्रा के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की। सीपीआई (एम) सांसद जॉन ब्रिटास ने इस पर एक विस्तृत लेख लिखकर अपनी राय व्यक्त की है।
दरअसल, यह पता लगाना भी जरूरी है कि क्या कोई स्पष्ट नियम या कानून है, जो सांसदों को अपना पासवर्ड गोपनीय रखने से रोकता है? मेरी जानकारी में कई सांसद अपने व्यस्त कार्यक्रम के कारण संसद के ई-पोर्टल पर प्रश्नों का सटीक मसौदा तैयार करने के लिए पेशेवर सहायकों को नियुक्त करते हैं और इसका कोई पर्याय भी नहीं है। उसी समय उन्हें पासवर्ड भी दे दिया जाता है, तो फिर सवाल उठता है कि आखिर ये आरोप महुआ मोइत्रा पर ही क्यों है? यह भी कहा जा रहा है कि महुआ मोइत्रा पर महंगे और संदिग्ध उपहार या नकदी स्वीकार करने का आरोप अभी तक साबित नहीं हुआ है। महुआ मोइत्रा ने खुद को मिले तोहफों का ब्यौरा खुद दिया है, ब्योरे को देखने से यह भी पता चलता है कि इनमें से कोई भी महंगा या बहुत ज्यादा कीमत का नहीं है।
एथिक्स कमेटी में शामिल जेडीयू सांसद गिरिधर यादव ने सादे कागज पर महुआ मोइत्रा को उपहार और कुछ मदद देने का हलफनामा देने वाले दर्शन हीरानंद से दुबई के कारोबारी को गवाह के तौर पर बुलाने का आग्रह किया। लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। दर्शन हीरानंदानी की अडानी के साथ पेशेवर मतभेद थे, दर्शन हीरानंदानी ने 16 अक्टूबर 23 को इन आरोपों से इनकार किया था कि उन्होंने महुआ मोइत्रा को पूछताछ के लिए पैसे और उपहार दिए थे। लेकिन बाद में उन्होंने खुद सादे कागज पर 19 अक्टूबर को एक और हलफनामा देकर स्वीकार किया कि मैंने व्यापारिक मतभेदों के कारण महुआ मोइत्रा को संसद में कुछ प्रश्न पूछने के लिए मजबूर किया था। गौर करने वाली बात यह है कि हीरानंदानी में यह वैचारिक बदलाव तीन दिन में अचानक हुआ या उन पर कोई दबाव डाला गया?
राहुल गांधी, संजय सिंह और महुआ मोइत्रा अडानी को लेकर सवाल पूछ रहे थे। इसे उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई का सामान्य सूत्र माना जा रहा है।
इसके बाद करीब 146 सांसदों को इसीलिए निलंबित कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने संसद में कूदकर नारे लगाने वाले दो युवकों के मामले में गृहमंत्री से सिर्फ बयान की मांग की थी और फिर बिना चर्चा के तीन कानून पारित कर दिए गए और उन पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई। उन तीन कानूनों में से एक के कारण हाल ही में देश में ट्रक ड्राइवरों ने अभूतपूर्व हड़ताल की और सरकार को पीछे हटना पड़ा और स्पष्ट करना पड़ा कि हमने अभी तक इन कानूनों को लागू नहीं किया है। इससे ही अंदाजा लग जाता है कि पारित किये गये तीन कानून कितने अत्याचारी होंगे। तीनों कानूनों के प्रावधान अभी सामने नहीं आए हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि कानून पर चर्चा करने से उनकी आवाज दबाने के लिए 146 सांसदों को जानबूझकर निलंबित किया गया था। वर्तमान राजनीतिक लड़ाई यह दर्शा रही है कि राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं, अपराध, व्यापार और धन का एक भयानक कॉकटेल कैसे काम कर रहा है! इससे दुनिया को स्पष्ट संकेत और संदेश गया कि भारत में संसदीय लोकतंत्र किस स्तर पर पहुँच गया है…..!
प्रकाश पोहरे
( फेसबुक पर पढ़ने के लिए:PrakashPoharePage
और ब्लॉग पर जाने के लिए प्रकाशपोहरेदेशोन्नति.ब्लॉगस्पॉट.इन टाइप करें)
प्रतिक्रिया के लिए ईमेल :- pohareofdesonnati@gmail.com
मोबाइल नंबर +91-9822593921
कृपया फीडबैक देते समय अपना नाम व ग्राम या शहर अवश्य लिखें.