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न बीजेपी, न एनडीए, बल्कि ये ‘अमोशा’ पार्टी…!

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प्रकाश पोहरे (प्रधान संपादक- मराठी दैनिक देशोन्नति, हिंदी दैनिक राष्ट्रप्रकाश, साप्ताहिक कृषकोन्नति)

एक राजा शक्तिशाली हो जाता है, तो वह अकेले ही सत्ता का प्रयोग करता है्। फिर, वह सपने देखने लगता है कि दुनिया का सबसे बड़ा शासक वही है। तब राजा सोचने लगता है कि हमें सब ‘विधाता’ कहकर पुकारें! ऐसा नहीं है कि लोग ऐसा सोचते हैं। लेकिन राजा के चारों ओर मौज-मस्ती करने वाले विदूषक उसे ‘विधाता’ कहकर बुलाने लगते हैं। राजा उन्हें पसंद करने लगता है। ये चापलूस जो कहते हैं, राजा को वही सत्य लगने लगता है। यहाँ तक कि चापलूस लोग भी जानते हैं कि यदि वे राजा के कान में नहीं फुसफुसाएँगे, तो उनका क्या होगा! सत्ता का यह खेल वर्षों से खेला जा रहा है। लेकिन हर बार राजा की अयोग्यता के कारण उसकी हार होती थी। विश्व में जितने साम्राज्य थे, उनका अंत किसी अन्य प्रकार से नहीं हुआ। तो जब भारत में साम्राज्य खड़ा ही नहीं हुआ, तो राजा ‘विधाता’ बनने का सपना क्यों देख रहा है?

ये सब दोहराने का कारण ये है कि एक शख्स नरेंद्र मोदी ने दुनिया को एक नया शब्द दिया है! उन्होंने खुद को ‘प्रगतिशील’, ‘प्रतिगामी’, ‘संघी’, ‘हिंदुत्ववादी’, ‘कम्युनिस्ट’, ‘मार्क्सवादी’ के साथ-साथ ‘मोदीस्ट’ के रूप में परिभाषित किया है। इसका मतलब है कि नेता, पार्टी, दर्शन और देश सब एक ही शब्द में समाहित हैं। चीन साम्यवादी हुआ करता था, अमेरिका पूंजीवादी था, कुछ कार्यकर्ता मार्क्सवादी थे। अब यह ‘मोदीवादी’ शब्द भारतीय मतदाताओं के मुंह में डालकर मोदी पूरे देश को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बिल्कुल, मान लीजिए कि मोदी इस देश को ‘मोदीवादी भारत’ बनाना चाहते हैं! ऐसा कहने का ठोस कारण यह है कि नरेंद्र मोदी खुद अपने लिए वोट करने के लिए भाषण दे रहे थे। उन्होंने कभी किसी उम्मीदवार का नाम नहीं लिया, न बीजेपी का, न एनडीए का। इतना ही नहीं उन्होंने खुद ही ऐलान किया था कि ‘अब की बार, फिर मोदी सरकार’ और चार सौ की संख्या तक पहुंचने के लिए भाषण भी दिए। अगर आज बहुमत नहीं मिलने के कारण वे 10 साल में पहली बार ‘एनडीए सरकार’ शब्द बोलते नजर आ रहे हैं, तो यह बात अलग है…

2014 में जब नरेंद्र मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनकर उभरे, तो तबसे बीजेपी के भीतर लोकतंत्र खत्म हो गया। इतना ही नहीं, बल्कि एनडीए के घटक दलों पर दबाव बनाकर ‘मैं, मेरा और सिर्फ मेरा’ कहकर घूमने लगे। आज भी मोदी ने खुद को एनडीए और बीजेपी संसदीय दल का नेता घोषित करवा दिया। दरअसल, अगर कोई पार्टी या गठबंधन है तो उस गठबंधन की एक संसदीय संस्था होती है। उस संस्था को अपने प्रमुख का नाम सुझाना होता है। इच्छुक उम्मीदवार अपना नाम आगे बढ़ाते हैं। फिर सर्वसम्मति से चुनाव होता है। हालांकि, यहां ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं की गई। इस साल का लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 के चुनावों से काफी अलग रहा। पिछले दोनों चुनावों में मोदी का प्रभाव सबसे प्रभावशाली कारक था। हालाँकि, मौजूदा चुनाव में मोदी का प्रभाव काफी कम हो गया।

महाराष्ट्र की स्थिति पर गौर करें, तो महाविकास अघाड़ी ने इस साल राज्य में 30 सीटों पर जीत हासिल की है। जबकि महायुति को सिर्फ 17 सीटें मिलीं। राज्य में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 13 सीटें जीती हैं। पूरे देश पर गौर करें तो इंडिया अलायंस की सीटें 232 हो गई हैं। साथ ही एनडीए ने देश में 294 सीटों पर जीत हासिल की है। 400 पार का नारा फेल हो गया है। भले ही एनडीए ने बढ़त ली हो, लेकिन एनडीए को काफी कम अंतर से बढ़त मिली है। मतदाताओं ने साफ चेतावनी दी है कि अगले चुनाव में वे सीधे घर का रास्ता दिखायेंगे। निसंदेह…लोगों ने एनडीए को बहुमत दिया, लेकिन यह बहुमत अकेले मोदी या उनकी बीजेपी को नहीं दिया। मोदी नाम के इस करिश्मे (?) को जनता ने नकार दिया लगता है। देश में 27 जगहों पर बीजेपी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई है। और महाराष्ट्र में जहां मोदी ने 19 सभाएं कीं, 3 सीटों, ठाणे-श्रीकांत शिंदे और सतारा-उदयन राजे भोसले, पुणे-मोहोल को छोड़कर ज्यादातर एनडीए उम्मीदवार हार गए। जबकि नागपुर में तो नितिन गडकरी ने मोदी की कोई रैली ही नहीं करवाई…..!

सही दिमाग वाला कोई भी शख्स नहीं चाहता था कि मोदी दोबारा सत्ता में आएं। यहां तक ​​कि वाराणसी में, जहां मोदी खुद खड़े थे, मतदाताओं ने उन्हें लगभग खारिज कर दिया। इस चुनाव में मोदी ने लगातार नफरत भरे भाषण दिये। मोदी बोलते कुछ हैं, करते कुछ और हैं। उदाहरण के लिए, ‘मन की बात’ में, उन्होंने उन लोगों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की, जो नोटबंदी के बाद मुंबई से, महाराष्ट्र के कई स्थानों से, उत्तर प्रदेश, बिहार में अपने गाँवों की ओर चले गए। लेकिन उनकी यात्रा को कम कठिन और कम समय में पूरा करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। उल्टे उन्होंने आरोप लगाया कि ‘महाराष्ट्र सरकार (उद्धव ठाकरे की) ने उत्तर प्रदेश से कोविड संक्रमण लेकर आने वालों को नहीं रोका’! मोदी कभी गलती नहीं मानते। किसानों के मार्च पर न सिर्फ आंसू गैस के गोले दागे गए, बल्कि सर्दी में उन पर ठंडे पानी की बौछार की गई, उनके रास्ते में गड्ढे खोदे गए, नुकीली कीलें बिछाई गईं। मोदी संसद में कहते हैं कि 700 से अधिक किसान मर गए हैं, लेकिन उन्हें इसके बारे में पता नहीं है। इसलिए मोदी अहंकारी हैं, वह हर समय अपने लिए लाइमलाइट चाहते हैं। उन्होंने यह व्यवस्था की है कि सभी मीडिया उनका अनुसरण करते रहेंगे। ये सब देश के लिए खतरनाक है।

जो लोक-कल्याण चाहता है, वह कभी अपने कर्मों को छिपाने का प्रयास नहीं करेगा। मोदी इस बात से सहमत नहीं हैं कि विकास की योजना बनाते समय रोजगार, उत्पादन, उद्योगों की स्थिति, कृषि और किसानों के वास्तविक आंकड़े जरूरी हैं। दरअसल, हकीकत बयां करने वाले आंकड़ों को झुठलाकर देश की प्रगति संभव नहीं है। मीडिया द्वारा बनाई गई भ्रामक छवि के कारण कुछ समय तक गलत धारणाएँ बनी रहेंगी, लेकिन देश बदतर स्थिति की ओर बढ़ता रहेगा। इसी को पहचान कर जनता ने मोदी की भाजपा को बहुमत नहीं दिया।

आज जब राजनाथ सिंह ने बड़ी बेबाकी से एनडीए और बीजेपी के संसदीय नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी का नाम प्रस्तावित किया, तो बीजेपी के कुछ अन्य बड़बोले नेताओं ने उनके नाम का समर्थन करते हुए इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। उस वक्त नितिन गडकरी खड़े भी नहीं हुए, उस मीटिंग का वीडियो सामने आया है। कारण, नितिनजी अटलजी, आडवाणीजी की भाजपा के हैं। वे संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखते हैं। उन्होंने अपनी अब तक की उपलब्धियों और चरित्र से इसे साबित भी किया है। हालाँकि, आज की मोदी पार्टी में चापलूसों की फ़ौज तैयार हो गयी है, तभी तो आज बीजेपी में ‘राजा बोले, दाढ़ी हाले’ जैसी स्थिति देखने को मिल रही है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी ने पिछले दस वर्षों में संसदीय लोकतंत्र के अनुरूप व्यवहार नहीं किया है। नरेंद्र मोदी ने अमित शाह के साथ मिलकर एक अलग एजेंडे का इस्तेमाल किया है, जिसकी लोकतंत्र को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। इस अवधि के दौरान, नरेंद्र मोदी (और निश्चित रूप से अमित शाह) ने सरकार और पार्टी स्तर पर भी इसी नीति का पालन किया। विपक्षी दलों को तिरस्कार का आशीर्वाद मिलने लगा।

लोकतंत्र में विपक्ष एक ऐसा हथियार है जो लोकतंत्र को मजबूत करता है, लेकिन मोदी-पर्व में इसे ‘देशद्रोही’ करार दिया गया। नरेंद्र मोदी का आचरण ऐसा हो गया है, जैसे वह इस देश के राजा हों. मोदी तो यहां तक ​​चले गए कि खुद को भगवान का अंश ही मानने लगे! 2014 से बीजेपी का मतलब है मोदी और मोदी का मतलब है बीजेपी। नहीं, यह दिन-ब-दिन और अधिक ठोस होता जा रहा है। पहले यह था ‘अब की बार मोदी सरकार’ वहां से ‘मोदी की गारंटी’ से लेकर ‘मोदी भगवान के अवतार’ तक का सफर तय कर चुके हैं। और अब तो मोदी खुद ही कहने लगे हैं कि ‘भगवान ने मुझे कुछ मकसद से यहां भेजा है, मेरा काम अभी बाकी है, जब तक वह पूरा नहीं होगा मैं सत्ता में रहूंगा!’

फिलहाल नरेंद्र मोदी दो बड़ी पार्टियों व कई छोटे दलों के सहयोग से तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद नीतीश कुमार और टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर उभरे हैं। एनडीए को 543 में से 293 सीटें मिलीं, जबकि इंडिया अलायंस 233 सीटें हासिल करने में कामयाब रहा। बीजेपी 240 सीटों के साथ बहुमत से दूर रही, मगर उसके नेतृत्व वाले एनडीए ने बहुमत हासिल कर लिया। अगर वह 272 का जादुई आंकड़ा नहीं छू लेती, तो वह अकेले दम पर ही सरकार बना सकती थी। इस तरह बीजेपी समेत पूरा एनडीए फिलहाल आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी और बिहार के जनता दल (यूनाइटेड) पर निर्भर है।

हालाँकि, इससे एक सवाल खड़ा होता है ‘स्वयंभू’ नरेंद्र मोदी गठबंधन सरकार कैसे चलाएंगे? 10 वर्ष के उनके कार्यकाल को देखते हुए यही पाया गया है कि ‘मैं कहता हूँ वही पूर्व दिशा है’ वाला हाल रहा है। अब ऐसे करियर वाले मोदी के साथ टीडीपी और जेडीयू दोनों टिक ही नहीं पाएंगे। पिछले दस सालों में मोदी को किसी भी नेता या पार्टी के साथ सत्ता साझा नहीं करनी पड़ी है। ‘एनडीए’ सरकार की पहचान मोदी सरकार के रूप में हुई। बहरहाल, अब मोदी को गठबंधन सरकार चलानी होगी, लेकिन उनके स्वभाव को देखते हुए यह बेहद मुश्किल लगता है। क्योंकि ‘अ’ दानी के कहने पर, ‘मो’दी के चेहरे पर और ‘शा’ह के माध्यम से चलने वाली ये न तो बीजेपी है और न ही एनडीए, बल्कि ये ‘अमोशा’ पार्टी है!!!  इसलिए ये सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी, जल्द ही सत्ता इंडिया अलायन्स के पास आएगी, ये काले पत्थर पर उकेरी गई सफेद रेखा है..!

लोकतंत्र सिर्फ और सिर्फ मजबूत विपक्षी दल पर ही टिका रहता है और देश में असली लोकतंत्र की शुरुआत कहीं न कहीं से ही सही, शुरू तो हो ही गयी है। तो अभी ‘प्रतीक्षा करें और देखते रहिए’….

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