

सरकार किसी की भी हो, किसानों की मौत ही सरकार की नीति बन गयी है। लिहाजा अपना हिस्सा स्वयं ढूंढने और आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इसलिए मैं जीरो बजट पर बर्बाद फलों से होममेड वाइन बनाने का फॉर्मूला सुझा रहा हूं।
आसव या वाइन बनाने की प्रक्रिया बहुत सरल है। किसी भी फल का रस निकालें, उसमें मीठा (चीनी) 24 प्रतिशत, अम्लता पीएच 3.5, और उसमें थोड़ा-सा खमीर मिला लें और इस रस को बीस दिनों तक किसी अंधेरी और ठंडी जगह पर ढककर रखें। यह स्वचालित रूप से किण्वित होता रहता है। इसमें जो चीनी होती है, फल में जो फ्रुक्टोज/ग्लूकोज होता है, या अगर आप ऊपर से सुक्रोज भी मिलाते हैं, तो यीस्ट इसे दो भागों में विभाजित कर देता है, फ्रुक्टोज और ग्लूकोज। फिर किण्वन की प्रक्रिया अपने आप शुरू हो जाती है। जार के नीचे बैठे कीचड़ और ऊपर के अच्छे रंग वाले तरल को समय-समय पर अलग करते रहना चाहिए। इस प्रक्रिया में, कुछ फल तीन महीने में वाइन का उत्पादन करते हैं, जबकि अन्य को फल की विशेषताओं के आधार पर चार या छह महीने लग सकते हैं।
हर फल का अलग गणित होता है। किण्वन के बाद कीचड़ और तरल को अलग करने की प्रक्रिया को रेकिंग कहा जाता है। वाइन में किण्वन शुरू होने के बाद, आपको मिश्रण को छानना होगा और तरल को दूसरे कंटेनर में स्थानांतरित करना होगा। ‘रैकिंग’ नामक यह प्रक्रिया कंटेनर के तल पर एकत्रित तलछट को हटाने में मदद करती है। वाइन को ‘समाशोधन प्रक्रिया’ के रूप में भी जाना जाता है।
रैकिंग के बाद शुद्ध स्पार्कलिंग वाइन तैयार की जाती है। हम सरकारी अनुमति से इस शराब को बोतलबंद करके बेच सकते हैं। मैंने अब अनुमति प्राप्त करना आसान कर दिया है, इसके लिए कभी भी मुझसे संपर्क करें। एक बार बनी वाइन अमर हो जाती है, दुनिया में वाइन ही एकमात्र ऐसी चीज हो सकती है, जिसकी कोई समाप्ति तिथि नहीं होती। वाइन जितनी पुरानी होगी, उतनी ही महंगी होगी। पुरानी से पुरानी वाइन की मांग अधिक है और इनकी कीमत भी अधिक हो सकती है।
मूल रूप से संबंधित फलों के पोषण मूल्य वाइन में शेष रहते हैं। वाइन को ‘किण्वित फलों के रस’ के रूप में वर्णित किया जा सकता है। किसी भी फल के रस में खमीर मिलाने पर किण्वन 20-25 दिनों तक जारी रहता है। इस बीच, फलों के रस में मौजूद चीनी को वाइन बनाने के लिए अल्कोहल में बदल दिया जाता है।
आमतौर पर कहा जाता है कि वाइन अंगूर से बनाई जाती है, लेकिन वाइन अंगूर से उसी तरह बनाई जाती है, जैसे वाइन किसी अन्य फल से बनाई जाती है। अंतर यह है कि अंगूर में प्राकृतिक रूप से 20-25% शर्करा (फ्रुक्टोज-ग्लूकोज) होती है। तो यह वाइन बनाने के लिए काफी है। काजू, स्ट्रॉबेरी, करवंद जैसे फलों में 10-12% शर्करा होती है, इसलिए इन फलों से वाइन बनाते समय कुछ चीनी (सुक्रोज) मिलानी पड़ती है, लेकिन एक बार किण्वन प्रक्रिया शुरू होने पर, सुक्रोज का रूपांतरण फ्रुक्टोज और ग्लूकोज में हो जाता है और फिर इसे अल्कोहल में बदल दिया जाता है।
तो वाइन पीने का मतलब किण्वित फलों का रस, जूस पीना है। एक बार जब 9 से 10% अल्कोहल का उत्पादन हो जाता है, तो वाइन यानी वह जूस कई दिनों या सालों तक टिका रहता है।
अल्कोहल किण्वन द्वारा निर्मित होता है। अल्कोहल का उत्पादन स्टार्चयुक्त पदार्थ यानी आलू या अनाज, गुड़ यानी गन्ना और फलों के रस से किण्वन द्वारा किया जाता है। यह लगभग 14% है। क्योंकि संस्कृतियाँ वे जीव हैं, जो एक बार 13-14% अल्कोहल बन जाने पर अल्कोहल का उत्पादन करते हैं, तो वे जीवित नहीं रह पाते और मर जाते हैं। इस उत्पादित अल्कोहल को अल्कोहल बनाने के लिए स्टिल के माध्यम से आसवन द्वारा अलग किया जाता है। इस प्रक्रिया में किण्वित अल्कोहल में जो पोषण मूल्य होते हैं, वे डिस्टिल्ड अल्कोहल यानी अल्कोहल में मौजूद नहीं होते हैं।
शराब के प्रकार
स्टार्चयुक्त चावल को किण्वित करके अर्थात भट्टी के माध्यम से आसवित करके प्राप्त अल्कोहल से बनी शराब को वोदका/व्हिस्की कहा जाता है। फलों को किण्वित करके और फिर स्टिल में आसवित करके प्राप्त अल्कोहल से बनी शराब को रम कहा जाता है और फलों को किण्वित करके और फिर स्टिल के माध्यम से आसवित करके प्राप्त अल्कोहल से बनी शराब को ब्रांडी कहा जाता है। आसुत अल्कोहल मूलतः पानी की तरह सफेद होता है। शराब बनाने के दौरान इसे जली हुई लकड़ी की गंध, या जली हुई चीनी की गंध-रंग (कारमेल) देकर रंगा जाता है।
वाइन मतलब वास्तव में क्या है?
केवल किन्नव प्रक्रिया यानी फल के रस को किण्वित किया जाता है यानी ‘भट्ठी पर चढ़ाए बिना’ जिससे प्राकृतिक अल्कोहल बनता है, यानी वाइन में उस फल के प्राकृतिक आकर्षक रंग और स्वाद के अलावा पोषक मूल्य भी होता है। इसीलिए मैं वाइन को ‘पौष्टिक पेय’ कहता हूं। हम प्रतिदिन 2-3 कप चाय-कॉफी पीते हैं। इसमें कौन से पोषक तत्व हैं? इसकी जगह अगर आप वाइन पिएंगे, तो आपको भरपूर पोषण मूल्य, रोग प्रतिरोधक क्षमता मिलेगी।
वाइन और शराब दोनों में अल्कोहल होता है। लेकिन वाइन में जो अल्कोहल होता है, वह किण्वित होता है यानी ठंडी प्रक्रिया द्वारा निर्मित होता है। किण्वन द्वारा उत्पादित अल्कोहल को उर्ध्वपातन द्वारा अलग किया जाता है, अर्थात भट्टी का उपयोग करके अल्कोहल (गर्म प्रक्रिया) दोनों अल्कोहल होता है, लेकिन पीने वाले पर इसका प्रभाव अलग-अलग होता है। शराब के अत्यधिक सेवन से अपशब्द निकलते हैं, सेवनकर्ता बेमतलब की बात करता है, ओवर एक्टिंग करता है। लेकिन अगर वाइन अधिक मात्रा में पी भी ली जाए, तो भी पीने वाला ज्यादा शोर नहीं करता, क्योंकि संगीत एक जैसा ही होता है। शास्त्रीय संगीत सुनने वाले आमतौर पर नृत्य नहीं करते हैं, लेकिन जब लोक संगीत – ढोलकी, ढोल, ताशा बजना शुरू होता है, तो कोई भी अपने आप नृत्य करना शुरू कर देता है! यही फर्क शराब और वाइन में है।
वाइन बनाने की प्रक्रिया हम घर पर ही कर सकते हैं। इसके लिए किसी मशीनरी, बिजली की जरूरत नहीं है।
यदि आसव सड़क पर बेचा गया तो—-
जैसा कि शरद पवार साहब कहते हैं, इसे तो ठेले पर बेचो, बच्चों को भी पिलाओ, लेकिन इस पेय को वाइन कह दो तो हंगामा खड़ा हो जाता है! कानून बहुत सख्त है। अगर कानून बदल जाए, तो क्रांति हो जाएगी। आज नहीं तो कल, ऐसा होना तय है और मैं इस दिशा में काम कर रहा हूं। क्योंकि बात यह है कि अगर किसी किसान को पर्याप्त कीमत न मिलने पर मिट्टी के मोल पर फल बेचना पड़े, तो क्या वह हाथ-पैर नहीं मारना चाहेगा?
18 फलों में से चार वाइन का परीक्षण राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला पुणे (राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशाला पुणे) में किया गया है और यह साबित हो गया है कि उनमें पोषण मूल्य है। मैं स्वयं पिछले दस-पंद्रह वर्षों से प्रायोगिक तौर पर शोध कर रहा हूं। मैं वाइन उत्पादन की समस्याओं के समाधान के लिए सरकार से संपर्क कर रहा हूं।
किसानों के लिए यह जरूरी है कि वे अपना दबाव बढ़ाएं, ताकि इस संदर्भ में आने वाली तकनीकी दिक्कतों के लिए जनप्रतिनिधि सरकार से बात करें। कर्नाटक राज्य के कूर्ग जिले में, विभिन्न फलों और सब्जियों, यहां तक कि मिर्च और प्याज को संसाधित करके 150 प्रकार की वाइन घर-घर बनाई और बेची जाती है। वाइन से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करने के लिए जिले-जिले में वाइन फेस्टिवल का आयोजन जरूरी है। मैं अगले दिसंबर या जनवरी में अकोला में अपने वेदानंदिनी एग्रो टूरिज्म में एक वाइन फेस्टिवल का आयोजन कर रहा हूं। इससे पहले हमने 29 अगस्त को एक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें मेरे मित्र कोंकण के वाइन शोधकर्ता माधव महाजन के साथ इस बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी। उसे अवश्य पढ़ें। आप उनसे उनके मोबाइल नंबर 9421136122 पर संपर्क कर सकते हैं। साथ ही नागपुर के मेरे अन्य वाइन प्रेमी और शोधकर्ता श्री शरद फड़नवीस, जो पिछले कई वर्षों से नागपुर में वाइन फेस्टिवल का आयोजन कर रहे हैं, से मोबाइल 9970882351 पर संपर्क किया जा सकते हैं। हर साल की तरह इस साल भी फड़नवीस 2 और 3 दिसंबर को वाइन फेस्टिवल आयोजित कर रहे हैं। तुम्हें उनसे मुलाकात अवश्य करनी चाहिए।
-प्रकाश पोहरे
(संपादक, दैनिक देशोन्नति)
मोबाइल – +91 98225 93921
2prakashpohare@gmail.com