भारत और चीन के बीच जून 2020 से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में जारी गतिरोध समाप्त हो गया है।अब दोनों देशों की सेनाएं देपसांग और डेमचोक से हट जाएंगी और उसी तरह पेट्रोलिंग करेंगी जैसे 2020 के पहले किया करती थीं।ब्रिक्स सम्मेलन से पहले सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह जानकारी दी थी,जिसकी पुष्टि मंगलवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने कर दी है। चीन के विदेश मंत्रालय ने बताया है कि उनका देश पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में गतिरोध को समाप्त करने के लिए भारत के साथ समझौते तक पहुंच गया है।
भारत और चीन के बीच जारी गतिरोध का समाप्त होना दोनों देशों के बीच कूटनीतिक पहल की जीत है। एस जयशंकर ने इसे सकारात्मक और दृढ़ कूटनीति का नतीजा बताया है।भारत और चीन के बीच लगातार सीमा विवाद को लेकर बातचीत हो रही थी और उसका परिणाम अब सामने आया है। विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने सोमवार को कहा कि कई क्षेत्र इस तरह के भी थे जहां गतिरोध था, लेकिन अब जबकि चीन ने भी यह कह दिया है कि 2020 के पहले की स्थिति बहाल होगी तो यह दोनों देशों के संबंधों में शुभ संकेत है।
जब गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ किया था तब भारतीय सैनिकों ने उनका विरोध किया था,जिससे दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई, जिसमें एक कमांडर सहित 20 सैनिकों की मौत हुई थी। कई चीनी सैनिकों की भी इस झड़प में मौत हुई थी, लेकिन चीन ने इसकी पुष्टि नहीं की थी। बाद में ऑस्ट्रेलिया के एक अखबार ने एक खोजी रिपोर्ट छापी थी,जिसमें यह बताया गया था कि चीन के 38 सैनिक इस झड़प में गलवान नदी में बह गए थे, हालांकि चीन ने सिर्फ चार सैनिकों के मौत की बात को ही स्वीकारा था।गलवान घाटी एलएसी में काफी महत्वपूर्ण है और इस क्षेत्र को लेकर 1962 से ही तनाव है।पूरे इलाके को चीन अपना बताने की कोशिश करता रहा है और इसे कई बार वह गलवान घाटी को अपने क्षेत्र में बताने की गुस्ताखी भी कर चुका है।भारत ने हमेशा ही चीन के इस दावे का मुंहतोड़ जवाब दिया है।गलवान घाटी में जो कुछ हुआ, उसकी वजह यह थी कि भारत यहां पुल बना रहा था जो बहुत जरूरी था।बस यही बात चीन को अखरने लगी जबकि वो खुद एलएसी के पास कई तरह के निर्माण कार्य करता रहा है। 1962 के बाद डोकलाम में कई कंस्ट्रक्शन किए गए थे जो दोनों देशों के बीच विवाद की बड़ी वजह रही थी।
गलवान घाटी में संघर्ष के बाद दोनों देशों ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में हजारों सैनिकों को तैनात कर दिया था, जिसकी वजह से दोनों देश के बीच सीमा विवाद बढ़ गया था।युद्ध जैसी स्थिति थी और दोनों देशों की ओर से टैंक और हथियार तैनात कर दिए गए थे।कई दौर की वार्ता के बाद भी तनाव कम नहीं हुआ और दोनों देश आमने-सामने लगभग युद्ध की मुद्रा में थे। भारत ने इस मुद्दे पर चीन को सटीक जवाब दिया और भारत ने अपनी कूटनीति से चीन को यह बात समझा दी कि वह अब 1962 का भारत नहीं है, जिसके साथ वह अन्याय कर पाएगा। अब जबकि दोनों देशों ने यह माना है कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में गतिरोध खत्म हो गया है, यह दोनों देशों के लिए शुभ संकेत है।बिक्स सम्मेलन में पीएम मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात संभव है, यह मुलाकात दोनों देशों के बीच नए युग की शुरुआत हो सकता है। समझौते के बाद दोनों देशों आगे की योजना पर काम करेंगे, ताकि भविष्य में गलवान जैसी स्थिति उत्पन्न ना हो।कुल मिलाकर अब भारत विश्वास बहाली की प्रक्रिया की अग्रसर होगा, जो झटके में संभव नहीं होगा, यह एक चरणबद्ध प्रक्रिया होगी।