उत्सर्जन कम होने के बावजूद दुनिया 10 से 15 साल के भीतर 1.5 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान वृद्धि) की सीमा पार कर जायेगी. एक अध्ययन में यह अनुमान जताया गया है. अध्ययन के अनुसार, परिणामों का अनुमान जताने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) का इस्तेमाल किया गया. अध्ययन के अनुसार, यदि अगले कुछ दशकों में उत्सर्जन अधिक रहता है, तो इस सदी के मध्य तक पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में पृथ्वी के औसतन दो डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होने का अनुमान है. साथ ही इसके 2060 तक उस सीमा तक पहुंचने का भी अनुमान है.
जलवायु परिवर्तन का अनुमान
जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित इस अध्ययन में दुनियाभर के हालिया तापमान अवलोकनों का उपयोग करके जलवायु परिवर्तन का अनुमान जताया गया है. अध्ययन के प्रमुख लेखक, अमेरिका में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक जलवायु वैज्ञानिक, नूह डिफेनबॉघ हैं.
धरती पर तापमान पहले से ही अधिक
डिफेनबॉघ ने कहा कि भविष्य के बारे में अनुमान जताने के लिए जलवायु प्रणाली की वर्तमान स्थिति पर निर्भर एक पूरी तरह से नए दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, हम पुष्टि करते हैं कि दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा पार करने की दहलीज पर है. उन्होंने कहा कि हमारे एआई मॉडल से यह स्पष्ट है कि पहले से ही धरती पर तापमान अधिक है और यदि इसके शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचने में एक और आधी शताब्दी लगती है, तो इसके दो डिग्री सेल्सियस को पार करने का अनुमान है.
चपेट में लगभग आधी से ज्यादा पृथ्वी
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के मौसम विज्ञानियों का कहना है कि कॉर्बन गैस का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो ऐसी गर्मी पड़ती रहेगी और साल दर साल हालात और बिगड़ते रहेंगे. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस बढ़ते तापमान का असर दुनिया के 58 प्रतिशत हिस्से पर पड़ेगा और लगातार गर्मी के पुराने रिकॉर्ड टूट जाएंगे. रिपोर्ट के मुताबिक, आसमान से बरसती आग का सबसे ज्यादा नुकसान या असर पिछड़े देशों पर होगा. विज्ञानियों की मानें तो ऐसा इस शताब्दी के खत्म होते-होते होना शुरू हो जाएगा.