पटना (बीरेंद्र कुमार झा): एक कहावत है चौबे गए छब्बे बनाने दुबे बनकर लौटे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर यह कहावत पूर्ण रूप से लागू होती है। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में रहते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में जब नीतीश बाबू को अपने लिए पीएम के उम्मीदवार के रूप में प्रतिस्थापित करने का कोई रास्ता नजर नहीं आया तो आरजेडी के नेताओं खासकर लालू यादव और तेजस्वी यादव को जी भरकर कोसते रहे। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए से नाता तोड़ उसी पार्टी के शरणागत हो गए। उम्मीद थी की यूपीए के समय में अपने आप को किंगमेकर कहने वाले लालू के लाल तेजस्वी यादव कम से कम किसी तरह यूपीए की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार तो बनवा ही देंगे। लेकिन यहां भी अब उनकी उम्मीदों पर पानी फिर सकता है और डर इस बात का लगने लगा है कि कहीं तेजस्वी प्रधानमंत्री का ख्वाब देखने वाले नीतीश कुमार को अपना उल्लू सीधा करने के बाद किसी मठ या आश्रम का बाबा बनने के लिए मजबूर न कर दे।
आरजेडी जुटी है अपने अभियान को पूरा करने में
आरजेडी तो अब अपने इस अभियान में पूरी तरह से जुटी हुई भी नजर आने लगी है। एनडीए में रहते हुए जैसे पहले नीतीश कुमार अपने सहयोगियों की मदद से 2019 में लोकसभा चुनाव के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष यह कहकर दवाब बनाते थे कि नीतीश कुमार में पीएम मैटेरियल है। अब आरजेडी नीतीश के स्टाइल में ही इन्हें चारो खाने चित्त करने में जुट गई है। आरजेडी नेता शिवानंद तिवारी ने यह कहना शुरू कर दिया है कि अब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री की गद्दी तेजस्वी यादव को सौंप कर किसी आश्रम का बाबा बन जाएं।
नीतीश ने हाल ही में किया है आरजेडी से गठबंधन
अब आरजेडी वाले इन्हें बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में मुख्यमंत्री रहते हुए भी उस गठबंधन को छोड़कर आरजेडी से गठबंधन में आने के कुछ ही समय बाद इन्हें बाबा बनाने में जुट गई है तो यह भी नीतीश बाबू की करनी का ही प्रतिफल है।
नीतीश ने 2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर गठबंधन तोड़ा
नीतीश ने खुद ही अपने लिए यह माहौल तैयार किया है जिससे आरजेडी को यह लगने लगा है कि आरजेडी के लिए यही अवसर है जब यह न सिर्फ नीतीश कुमार से 2017 में तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करते हुए आरजेडी गठबंधन से नाता तोड़ने का बदला ले सकते हैं, बल्कि उनसे मुख्यमंत्री की कुर्सी छीनकर तेजस्वी यादव को उसपर बिठाने के बाद उन्हें राजनीति छोड़कर किसी आश्रम का बाबा बनने के लिए मजबूर भी कर सकती है क्योंकि अब तो नीतीश बाबू के पास छटपटाकर भी आरजेडी के साथ रहने के अलावा कोई अन्य चारा नहीं बचा है।
तो फिर पाला बदल सकते हैं नीतीश बाबू…
अब जरा उन परिस्थितियों का मूल्यांकन करें जिससे पता चल सके कि क्या वास्तव में जैसा आरजेडी सोच रही है कि नीतीश कुमार के पास अब तेजस्वी को को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप कर किसी आश्रम का बाबा बनने के अलावा कोई चारा नहीं है या वे एक बार फिर से गुलाटी मार सकते हैं क्योंकि गुलाटी मारने मैं उनका कोई विकल्प नहीं है।
इंजीनियरिंग डिग्रीधारी नीतीश कुमार राजनीति में छात्र आंदोलन की उपज हैं। 1996 में ये सबसे पहले अटल बिहारी बाजपेयी के मंत्रिमंडल में मंत्री बने। फिर 2005 में एनडीए गठबंधन में लालू के जंगल राज को समाप्त कर बिहार के मुख्यमंत्री बने। फिर 2010 के चुनाव में एनडीए गठबंधन में विधानसभा का चुनाव लड़ते समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री को गठबंधन की तरफ से तो क्या बीजेपी की तरफ से भी स्टार प्रचारक के रूप में बिहार में प्रचार न करने देकर बीजेपी को अपनी औकात बता दिया। इसके बाद जब 2014 के चुनाव में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को ही पीएम का चेहरा घोषित किया तो नीतीश कुमार ने गोधरा काण्ड में अल्पसंख्यकों का हत्यारा होने का आरोप लगाते हुए बीजेपी को एक तरह से धकियाते हुए अलग कर दिया और उसी आरजेडी से गठबंधन कर लिया जिसके सत्ता में रहने तक वे जंगल राज्य वाले कहकर उपहास किया करते थे।
2014 में पहली बार एनडीए से अलग हुए थे नीतीश
2014 में जब लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने बिहार समेत देश के बड़े हिस्सों से चुनाव जीतकर सरकार बनाई तो नीतीश कुमार ने हेकड़ी दिखाने के लिए अपनी विधायकी बरकरार रखते हुए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस की सोनिया गांधी की तरह रिमोट से सरकार चलाने की मनसा लिए अपने वफादार जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन थोड़े ही समय में जब इन्हें लगा कि जीतन राम मांझी इनके रिमोट पर चलना तो दूर इनको ही राजनीति से दूर करने में लगे हैं तो जीतन राम मांझी को धकिया कर मुख्यमंत्री की गद्दी पर फिर से धमककर बैठ गए। फिर आरजेडी से गठबंधन के तहत ही बिहार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए। लेकिन 2 ही साल में इनका मन फिर कुलबुलाया और इन्होंने तेजस्वी को बड़ा भ्रष्टाचारी बताते हुए आरजेडी को बदनाम करते हुए उससे नाता तोड़ बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से दुबारा नाता जोड़ कर मुख्यमंत्री बन गए।
नीतीश ने आरजेडी से दूसरी बार किया गठबंधन
बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंध के साथ वाली इनकी दूसरी पाली इस वर्ष आरजेडी के नेतृत्ववाले यूपीए गठबंधन में चले जाने तक चली। यहां आकर जब पीएम मैटेरियल नीतीश कुमार सीएम से पीएम का ख्वाब देखने लगे तो पहले आरजेडी ने अपनी योजना के तहत आगे बढ़ने दिया,फिर हालत ऐसा पैदा कर दिया कि दिल्ली में विपक्ष के नेताओं के साथ बैठक करने के बावजूद नीतीश कुमार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहना पड़ा की वे 2024 के चुनाव में पीएम का चेहरा नहीं हैं, वे तो सिर्फ विपक्ष को एकजुट का रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार ऐन वक्त पर लंगड़ी न लगा दें इस डर से आरजेडी नीतीश कुमार के इस हालात का लाभ उठाने के लिए इन पर सीएम की कुर्सी तेजस्वी यादव को सौंप कर आश्रम का बाबा बनने के लिए मजबूर करने में लग गई है। और दो बार बीजेपी को बदनाम कर एनडीए से निकलने के बाद अगर दो बार आरजे डी से भी ब्रेकअप कर लेंगे तो जायेंगे जहां! लेकिन आरजेडी को भी नीतीश कुमार को बाबा बनने वाली अपनी योजना पर फूंक फूंक कर पैर रखना होगा वरना गुलाटी मारने मैं माहिर नीतीश कुमार आप पार्टी में जाकर बीजेपी के साथ ही आरजेडी को भी मजा चखा सकते है।