बिहार विधानसभा चुनाव में पहले फेज के मतदान का आखिरी आंकड़ा आ गया है।यह आंकड़ा 64.66 फीसदी है। इसे बिहार चुनाव में रिकॉर्ड वोटिंग के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि विधानसभा चुनाव 2020 की तुलना में इस बार 8 फीसदी से ज्यादा की बढ़त है।लेकिन इन आंकड़ों की तह में और जाएंगे तो पाएंगे कि ये आंकड़ा उससे भी ज्यादा दिलचस्प है, जो चुनाव आयोग बता रहा है।
आंकड़ा यह भी बता रहा है कि इस बार 2020 की तुलना में करीब 35 लाख ज्यादा लोगों ने वोटिंग की है और वह भी तब जब 2020 के कुल वोटर और 2025 के कुल वोटर्स की संख्या में करीब 4 लाख का ही अंतर है। तो आखिर इन आंकड़ों का असली मतलब क्या है, क्या ये ऐतिहासिक आंकड़े बिहार का इतिहास बदलने जा रहे हैं, क्या इन आंकड़ों में बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा भी छिपा हुआ है और आखिर ऐसे आंकड़े सामने आने की असली वजह क्या है?
बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण में कुल 18 जिलों की कुल 121 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग हुई।चुनाव आयोग की ओर से जारी प्रेस नोट के मुताबिक पहले फेज में कुल करीब 3.75 करोड़ वोटर थे। इनमें से 64.66 फीसदी लोगों ने वोट किया है। तो इस आधार पर मोटा-मोटी आप ये कह सकते हैं कि करीब 3 करोड़ 75 लाख वोटर में से दो करोड़ 42 लाख 47 हजार 500 लोगों ने वोट किया। यानी कि करीब एक करोड़ 32 लाख 52 हजार 500 लोगों ने वोट नहीं किया।
अब साल 2020 से इसकी तुलना करते हैं और समझने की कोशिश करते हैं। साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव कुल तीन फेज में हुए थे।तो 2025 के पहले फेज में जो सीटें हैं, उस हिसाब से साल 2020 में इन 121 सीटों पर करीब 3 करोड़ 71 लाख 55 हजार 778 वोटर्स थे। वोटिंग हुई थी 55.81 फीसदी। यानी कि करीब 2 करोड़ 7 लाख 36 हजार 639 लोगों ने वोट किया था।और 1 करोड़ 64 लाख 19 हजार 139 लोगों ने वोट नहीं किया।इस लिहाज से देखें तो 2020 की तुलना में साल 2025 में करीब 35 लाख से ज्यादा लोगों ने वोट किया है।
स्पेशल इंसेटिव रिविजन, जिसके जरिए पहले 65 लाख और फिर चार लाख कुल 69 लाख नाम हटाए गए और करीब 21.5 लाख नए वोटर जोड़े गए। इस लिहाज से करीब 47.5 लाख वोटर के नाम हटा दिए गए।जबकि ये लोग साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बतौर वोटर मौजूद थे। अब ये वो वोटर थे, जो डुप्लीकेट थे या जिनकी मौत हो गई थी या किसी और दूसरी वजह से ये असल में वोटर नहीं थे।
तो जब साल 2020 में चुनाव आयोग ने जो वोट प्रतिशत जारी किया था, उसमें ये 47.5 लाख लोग भी मौजूद थे, जिन्हें वोट देना ही नहीं था। ऐसे में तब इन 121 सीटों का कुल वोट प्रतिशत आया था 55.81 फीसदी। साल 2020 वो साल था, जब देश में कोरोना का प्रकोप था और लोग अपने घरों से निकलने को राजी नहीं थे। ऐसे में अगर इन 47.5 लाख वोटों को भी दो हिस्सों में बांट दिया जाए तो हर फेज में करीब 24 लाख वोटर कम होते हैं।
अब एक बार फिर से साल 2020 की 121 सीटों और साल 2025 की 121 सीटों का आंकड़ा देखिए और समझिए। 2020 में जब नाम नहीं कटे थे तो वोट नहीं देने वालों का आंकड़ा 1 करोड़ 64 लाख 19 हजार 139 का थाऔर इस बार नाम कटने के बाद भी वोट न देने वालों का आंकड़ा 1 करोड़ 32 लाख 52 हजार 500 का था। अगर इस साल वोट न देने वालों में कटे हुए नाम को भी जोड़ दिया जाए तो आंकड़ा जो आता है वो कहता है कि करीब 1 करोड़ 54 लाख लोगों ने वोट नहीं किया।
यानी कि न सिर्फ आंकड़ों में बढ़ा हुआ मतदान का प्रतिशत दिख रहा है, बल्कि वोट देने वालों की संख्या भी करीब 35 लाख बढ़ी है। इस लिहाज से देखें तो 2020 के मुकाबले करीब 17 फीसदी ज्यादा लोगों ने इस बार वोट दिया है। इस बढ़े हुए वोट प्रतिशत और बढ़ी हुई वोटर्स की संख्या की कई ऐसी वजहें हैं, जिन्हें आप किसी भी सूरत में इन्कार नहीं कर पाएंगे।
दीपावली और छठ के करीब चुनाव
बढ़े हुए वोट की सबसे बड़ी वजह वो दो त्योहार हैं, जो पूरा बिहार मनाता है। पहला है दीपावली और दूसरा है छठ।28 अक्तूबर को छठ के खत्म होने के 10 दिन के अंदर ये चुनाव हुए।ऐसे में जो लोग त्योहार मनाने के लिए अपने-अपने घर आए थे, उनमें से ज्यादातर लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया और अपने घर से बाहर अपनी नौकरी पर जाने से पहले वोटिंग की।
साल 2020 से अगर इसकी तुलना करें तो बिहार में पहले चरण का चुनाव 28 अक्तूबर को हुआ था, जबकि छठ का संध्या अर्ध्य 20 नवंबर को था।ऐसे में चुनाव से त्योहार के बीच तीन हफ्ते का अंतर था।लिहाजा जो लोग त्योहार के लिए घर आए, वो तब आए जब पहले चरण की वोटिंग खत्म हो चुकी थी और लोगों की प्राथमिकता वोटिंग नहीं बल्कि उनका अपना त्योहार था।
इस बार त्योहार पर घर आने वालों के पास वो 12 हजार ट्रेन भी थीं, जिन्हें केंद्र सरकार की ओर से खास तौर पर बिहार के लिए चलाया गया था। ट्रेन में धक्का-मुक्की की तस्वीरें दिखीं, लोग सीट हासिल करने के लिए परेशान भी दिखे, लेकिन लोग बड़ी संख्या में घर आए और जो घर आए, उनमें से ज्यादातर लोगों ने त्योहार मनाने के बाद वोट दिया और तब बिहार से बाहर गए, क्योंकि इस बार 2020 की तुलना में रिकॉर्ड 35 लाख ज्यादा लोगों ने वोट दिया है और इनमें बड़ी संख्या अप्रवासी बिहारियों की दिख रही है।
2020 में बिहार विधानसभा के चुनाव उस वक्त हुए, जब कोरोना अपने चरम पर था. लोग घरों से बाहर निकलने में दहशत महसूस कर रहे थे।लेकिन 2025 में हालात बिल्कुल अलग हैं।अब कोरोना का कोई नामलेवा नहीं है।लिहाजा 18 साल का युवा हो या 90 साल का बुजुर्ग, किसी को भी घर से निकलने और बूथ तक पहुंचने में कोई हिचक नहीं हुई। लिहाजा न सिर्फ वोटिंग प्रतिशत बढ़ा बल्कि वोट देने वालों का भी आंकड़ा बढ़ गया।
इस बार बिहार का चुनाव महज दो फेज में सिमटा है। चुनाव घोषित करने से लेकर वोटिंग के बीच में करीब एक महीने से भी कम का वक्त लगा है।ऐसे में लोगों में चुनाव की दिलचस्पी बनी हुई थी और लोग इसकी वजह से घरों से वोट डालने भी निकले।क्योंकि जब तक वो पूरी चुनावी प्रक्रिया से ऊबना शुरू होते, उससे पहले ही वोटिंग खत्म हो गई।
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले फेज में बढ़ी हुई वोटर्स की संख्या की बड़ी वजह बिहार में हुआ स्पेशल इंसेंटिव रिविजन यानी कि एसआईआर भी है।एसआईआर की वजह से उन वोटरों को डिलिट कर दिया गया, जो ऐक्टिव नहीं थे।
इसका मतलब ये है कि वोटर लिस्ट से वो वोटर्स हटा दिए गए, जिनका अस्तित्व नहीं था, जो या तो गुजर चुके थे, या कहीं और के वोटर बन गए थे या किसी भी दूसरी वजह से बिहार के वोटर नहीं रह गए थे।ऐसे लोगों का नाम हटा तो ऐक्टिव वोटर्स बढ़ गए और नतीजा बढ़े हुए चुनाव प्रतिशत के तौर पर दिखा।
अब इसका असर क्या होगा और कितना होगा यह 14 नवंबर को तय होगा।लेकिन एक बात तो तय है कि इस ऐतिहासिक वोटिंग का जो भी नतीजा होगा वो इकतरफा होगा और यह नतीजा सबको चौंकाने वाला होगा।बात चाहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हो या फिर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की या फिर अपनी नई पार्टी के जरिए पहली बार बिहार चुनाव में उतरे प्रशांत किशोर की, सबका चौंकना तय है।
