अखिलेश अखिल
चुनाव हो रहे हैं कर्नाटक में लेकिन राजनीति चल रही है महाराष्ट्र में। क्या इसके कोई आपसी सम्बन्ध हैं ? हो भी सकता है और नहीं भी। लेकिन राजनीति का सच तो यही है कि उसके बयान कई मायने लिए होते हैं और उसके कुछ निहितार्थ भी होते हैं। जहां तक कर्नाटक के चुनाव के बीच महाराष्ट्र में अगले सीएम को लेकर बयान बाजी चल रही है उसके पीछे की एक कहानी कर्नाटक के चुनाव को प्रभावित करना भी हो सकता है। कर्नाटक में महाराष्ट्र से सटे इलाकों में एनसीपी और उद्धव शिवसेना मिलकर चुनाव चुनाव लड़ रहे हैं। चुकी यह इलाका महाराष्ट्र की राजनीति से ज्यादा प्रभावित होती है इसलिए एनसीपी नेता जयंत पाटिल का यह बयान कि महाराष्ट्र का अगला सीएम एनसीपी से होगा यह कर्नाटक चुनाव को प्रभावित करने के लिए भी हो सकता है। इस बयान का अर्थ ये हैं कि महाराष्ट्र से सटे कर्नाटक की जनता एनसीपी को वोट करें ताकि आने वाले समय में सीमा विवाद को ख़त्म किया जाए। बयान के पीछे की एक राजनीति यह भी हो सकती है।
अब पाटिल के बयान पर नजर डालते हैं। पाटिल ने सतारा जिले के कराड में पत्रकारों को बताया कि ”महाराष्ट्र में अगला मुख्यमंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का ही होगा। और यह सभी लोगों ने मान लिया है।” इसी के साथ उन्होंने कहा है कि राज्य में भविष्य में एनसीपी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर सामने आएगी। इस बयान के अर्थ लगाए जाए पहला सवाल तो यही है कि वह सभी लोग कौन हैं जिन्होंने इस बात की स्वीकृति दी है कि अगला सीएम एनसीपी का होगा। और दूसरी बात पाटिल ने एनसीपी के सबसे बड़े दल होने की कही है। शिंदे गुट के 16 विधायकों की सदस्यता अगर सुप्रीम कोर्ट से ख़त्म की जाती है तो जाहिर है पाटिल जो कह रहे हैं वह सही होगा। फिर तो एनसीपी की बड़ी पार्टी होगी। लेकिन इसके दूसरे मायने भी निकाले जा सकते हैं।
कई लोग यह कयास लगा रहे हैं कि शिंदे की सरकार गिरने के बाद एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि इसकी कोई संभावना नहीं है। शरद पवार बीजेपी के साथ अभी नहीं जा सकते। चाहे जो भी हो जाए। अजीत पवार की राजनीति भले ही सीएम बनने की हो और वे इसके लिए एनसीपी को तोड़कर भी बीजेपी के साथ जा सकते हैं। लेकिन शरद पवार ऐसा नहीं कर सकते। तो फिर सवाल है कि एनसीपी की बड़ी पार्टी होने की बात पाटिल ने क्यों किया ?
यह भी तो संभव है कि जिन 16 विधायकों पर तलवार लटक रही है उनकी सदस्यता ख़त्म होने के बाद शिंदे गुट के बाकि विधायक एनसीपी के साथ चले जाएँ। उद्धव शिवसेना ऐसे विधायकों को अपने साथ ले नहीं सकते। और कांग्रेस के साथ ये विधायक जा नहीं सकते। ऐसे में बीजेपी के साथ जाने से बाकी विधायक एनसीपी में ही जाना पसंद करेंगे ताकि कम से काम मराठा राजनीति को गति मिल जाए। संभव है कि पतिक का बयान इस तरफ भी इशारा कर रहा हो। और बहुत सम्भावना भी इस बात की है कि शरद पवार जो खेल कर रहे हैं वह खेल कुछ इसी तरह का हो। और ऐसा हुआ तो एनसीपी बड़ी पार्टी भी होगी और उसके सीएम भी होंगे। लेकिन अभी को इन्तजार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का है।

