अखिलेश अखिल
क्या मायावती अब किसी गठबंधन का हिस्सा होगी ? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि अभी हाल में हुए घोसी उपचुनाव में मायावती के रोकने के बाद भी उनके वोटरों ने सपा के पक्ष में भरपूर वोट डाला है। पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान भी बसपा के वोटरों ने सपा को वोट डाला था। ऐसे में अगर मायावती किसी भी गठबंधन के साथ नहीं जाती है तो पार्टी को बचाने का संकट भी पैदा हो सकता है।
यूपी के घोसी उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती का दाव नहीं चला और उनके फरमान का उनके वोटरों ने बायकाट कर दिया। घोषी उपचुनाव में मायावती की पार्टी का कोई उम्मीदवार नहीं था। अकसर मायावती उपचुनाव में हिस्सा में भी नहीं लेती। लेकिन इस बार घोसी उपचुनाव के दौरान मायावती ने अपने वोटरों को घर से बाहर नहीं निकले का निर्देश दिया था और कहा था कि जरूरत पड़े तो नोटा पर मतदान करे। किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को वोट न करे। लेकिन जिस तरह के परिणाम सामने आये हैं उससे साफ़ हो गया है कि मायावती के वोटर भी इस बार घोसी उपचुनाव में सपा के उम्मीदवार में वोट डाले हैं और मायावती के निर्देश का उलंघन किया है।
ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या मायावती का अपने कोर वोटर पर भी कोई पकड़ नहीं रह गई है। जाहिर है मायावती का दाव बेकार चला गया है। मायावती के इस दाव के फेल होने के बाद अब कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कई लोग अब मान रहे हैं कि मायावती के वोटर अब अब उनके पाले से खिसक गए हैं। पिछले विधान सभा के वक्त भी कुछ ऐसा ही देखा गया था । बड़ी संख्या में मुस्लिम और दलितों ने सपा के पक्ष में वोट डाले थे।
अब मायावती के सामने कई तरह की चुनौती आती दिख रही है। घोसी उपचुनाव के परिणाम बता रहे हैं कि मायावती के कहने के बाद भी के वोटरों ने सपा के पक्ष में वोट डाल दिया है। अगर विधान सभा चुनाव के रिकॉर्ड को देखे तो यह भी पता चल रहा है कि बसपा का कोर वोटर अब सपा के साथ जुड़ गया है। और ऐसा है तो मायावती को अब फिर से चुनावी रणनीति तैयार करने में बड़े बदलाव की जरूरत होगी। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि मायावती अभी तक इंडिया और एनडीए से दुरी बनाकर चल रही थी लेकिन अब उसे फिर से सोंचना होगा। अगर वह कोई बड़ा निर्णय नहीं लेती है तो गमे लोकसभा चुनाव में उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मायावती की सबसे बड़ी चुनौती अपने वोट बैंक को बचाने की है। अगर वह वोट बैंक नहीं बचाती है तो पार्टी पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि लगातार उनके वोट बैंक में सेंधमारी हो रही है।
बता दें कि 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने उपचुनाव में कयूम अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाकर सियासी मैदान में उतारा था। उन्हें 50000 से ज्यादा वोट मिले थे। पूर्वांचल में घोसी विधानसभा सीट बहुजन समाज पार्टी के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण सीट मानी जाती रही है। 2007 में बहुजन समाज पार्टी से फागु चौहान यहीं से विधायक हुए। जबकि उससे पहले भी बसपा ने यहां पर अपनी जीत दर्ज थी बहुजन समाज पार्टी के लिए घोसी विधानसभा सीट इसलिए भी महत्वपूर्ण रही है कि जिन चुनावों में वह यहां से नहीं जीती, उसमें भी बसपा दो नंबर पर ही रही है। इसलिए यह माना जाता रहा है बहुजन समाज पार्टी का अच्छा खासा वोट बैंक और वर्चस्व घोसी विधानसभा में रहा है। 2022 में हुए विधानसभा के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी को 54000 से ज्यादा वोट मिले थे। लेकिन उपचुनाव में आए नतीजे और समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को मिले वोट बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी ने लोकसभा चुनावों से पहले किस तरीके की सियासी गलती कर दी है।
अब ऐसे में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या आने वाले दिनों में मायावती अपनी रणनीति बदलेगी / क्या वह इंडिया या फिर एनडीए के साथ जाएगी ? जानकार कह रहे हैं कि मायावती के वोटरों का रुझान जिस तरह से सपा की तरफ गया है उसे देखते हुए बसपा कोई नयी रणनीति नहीं बनती है तो उस पर संकट आ सकता है पार्टी भी संकट में फंस सकती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा का गठबंधन सपा के साथ था। तब उसे दस सीटों पर जीत मिली थी लेकिन विधान सभा चुनाव में उसकी हालत ख़राब हो गई।