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क्या तीन खेमों में बंटी विपक्षी पार्टियों को एक मंच पर लाने में खडगे कामयाब होंगे ?

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अखिलेश अखिल
विपक्षी पार्टियां यह जरूर कहती हैं है कि सब मिलकर बीजेपी को अगले चुनाव में हराएंगे। लेकिन यही विपक्षी पार्टियां एक मंच पर आने से कतरा भी रही है । कुछ का विरोध कांग्रेस और बीजेपी दोनों से है तो अधिकतर का विरोध बीजेपी से होते हुए भी उनका कोई वैचारिक मतभेद नहीं है। समय के साथ ये पार्टियां बीजेपी के साथ जा भी सकती हैं। उदाहरण के तौर पर उद्धव की शिवसेना ,नीतीश कुमार की जदयू और अकाली दल ऐसी पार्टियां है जिनका बीजेपी से कोई वैचारिक मतभेद तो नही है केवल निजी खुन्नस की वजह से बीजेपी का विरोध करती रही है और अभी अलग है।

वैसे कांग्रेस अध्यक्ष खडगे सभी विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की तैयारी में है और संभव है कि देर सबेर इनको सफलता भी मिल जाए लेकिन यह भी साफ है कि कुछ पार्टियां बीजेपी के साथ जाने से भी गुरेज नहीं करेगी । जब राजनीति नफे नुकसान पर टिकी हो तो फिर पासा पलटते मंच भी बदल सकते हैं ।

कांग्रेस पार्टी के नेता विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में लगे हैं लेकिन विपक्षी पार्टियों के बीच आपसी अविश्वास की वजह से बात आगे नहीं बढ़ रही है। विपक्षी पार्टियां दो खेमों में बंट गई हैं। एक खेमा उन पार्टियों का है, जो हार्डकोर भाजपा विरोधी हैं और कभी भाजपा के साथ नहीं रही हैं। दूसरा खेमा उन विपक्षी पार्टियों का है, जो पहले भाजपा के साथ रही हैं। भाजपा के साथ रही पार्टियों के भी दो खेमे हैं। एक ऐसी पार्टियां हैं, जिनकी राजनीतिक विचारधारा और सामाजिक समीकरण एक जैसा है और दूसरी पार्टियां ऐसी हैं, जिनका जमीनी स्तर पर भाजपा के साथ वोट की लड़ाई है और जिनका साथ आना मुश्किल है।

इस तरह विपक्षी पार्टियों के तीन खेमे हो गए। एक हार्डकोर भाजपा विरोधी, दूसरे प्रदेश की राजनीति में भाजपा की चुनौती से विरोधी हुई पार्टियां और तीसरी निजी खुन्नस में भाजपा से अलग होने वाली ऐसी पार्टियां, जिनको फिर भाजपा के साथ जाने में दिक्कत नहीं है।

ऐसी तीन पार्टियों के नेताओं से मल्लिकार्जुन खड़गे ने बात की है। बिहार में नीतीश कुमार का भाजपा से अलग होना कोई वैचारिक मामला नहीं है। वे पहले भी भाजपा से अलग हुए थे और फिर उसके साथ चले गए थे। आगे भी वे भाजपा के साथ जा सकते हैं। इसी तरह उद्धव ठाकरे का मामला भी है। वे भी निजी खुन्नस में भाजपा से अलग हुए। उनकी विचारधारा पूरी तरह से भाजपा वाली है।

डीएमके की विचारधारा का टकराव है लेकिन जमीनी राजनीति में भाजपा से कोई लड़ाई नहीं है। इन तीन पार्टियों के अलावा नेशनल कांफ्रेंस, अकाली दल, इंडियन नेशनल लोकदल, टीडीपी आदि ऐसी पार्टियां हैं, जिनके बारे में माना जा रहा है कि ये भाजपा के साथ जा सकती हैं। तृणमूल कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा पहले भाजपा के साथ रहे हैं लेकिन जमीनी स्तर पर वोट की राजनीति ऐसी है कि ये दोनों भाजपा के साथ नहीं जा सकते हैं। एक हार्डकोर विरोधियों का खेमा है, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल, भारत राष्ट्र समिति , आम आदमी पार्टी, सीपीएम, सीपीआई, मुस्लिम लीग आदि पार्टियां हैं।

अब देखना ये है कि इनमे से कई सी पार्टी कांग्रेस के साथ जाती है और कौन सी पार्टी बीजेपी के साथ जाना चाहेगी ।कुछ ऐसी भी पार्टियां है जो समय का इंतजार करना चाहेगी ।चुनाव परिणाम के बाद उनकी राजनीति शुरू होगी ।

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