दिवाली से एक दिन पूर्व वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एकमात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। उसपर भी यह पूजा दिन में नहीं अपितु रात्रि में की जाती है।रात्रि में होनेवाली इस पूजा में यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है। इस दिन यम के लिए आटे का चतुर्मुख यानि 4 बत्तियों वाला तेल का दीपक बनाकर घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है।इस दीप को जमदीवा अर्थात् यमराज का दीपक कहा जाता है। यमराज को दीपक दिखने के लिए दीपक को दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिए।
जल, रोली, फूल, चावल, गुड़, नैवेद्य आदि सहित यमराज और दीपक का पूजन करें। दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से यमराज को नमन तो करें ही, साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।
दीपावली के एक दिन पूर्व रात्रि काल में यमराज जी के निमित्त जलाया जाता है, मान्यता है कि जिस घर में दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती है।सन्ध्या समय मुख्य द्वार पर यम के नाम का दीपक परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के पश्चात सोते समय जलाया जाता है।इस दीप को जलाने के लिए पुराने दीपक का उपयोग किया जाता है,सबसे वरिष्ठ सदस्य जलाते हैं,इसके पश्चात उस दीपक को पूरे घर में घुमाकर उसे घर से बाहर कहीं रख आते हैं,घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीपक को नहीं देखते हैं।
यमराज जी के दीपक जलाने की पौराणिक कथा के अनुसार
प्राचीन काल मे हंसराज नामक एक प्रतापी राजा अपने मित्रों, सैनिकों और अंगरक्षकों के साथ जंगल में आखेट करने गया और सबसे बिछुड़कर अकेला रह गया और भटकते हुए एक अन्य राजा हेमराज के राज्य में पहुंच गया।
हेमराज ने थके-हारे हंसराज का भव्य स्वागत किया, उसी रात्रि हेमराज के यहां पुत्र जन्म हुआ ,इस अवसर पर हेमराज ने राजकीय उत्सव में सम्मिलित होने आग्रह किया,तो राजा हंसराज रुक गए।बच्चे के छठवीं के दिन पूजा के समय षष्ठी देवी ने प्रकट हो कर कहा कि आज इस शिशु के जन्म की तो इतनी प्रसन्नता हैं,लेकिन यह अपने विवाह के चौथे दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा।इस भविष्यवाणी से समस्त राजमहल में शोक छा गया, राजा रानी पर जैसे वज्रपात ही हो गया।हंसराज ने राजा हेमराज और उसके परिवार को ढांढस दिया- मित्र, आप तनिक भी विचलित न हों,इस बालक की मैं रक्षा करूंगा,संसार की कोई भी शक्ति इसका बाल बांका नहीं कर सकेगी।
इसके बाद हंसराज ने यमुना के किनारे एक भूमिगत किला बनवाया और उसी के अंदर राजकुमार के पालन-पोषण की व्यवस्था कराई ।@राजकुमार की प्राणरक्षा के लिए हंसराज ने सुयोग्य ब्राह्मणों से अनेक तांत्रिक अनुष्ठान, यज्ञ, मंत्र जाप आदि की भी व्यवस्था करा दी।
राजकुमार युवा हुआ, उसके गुणों के विषय मे सर्वत्र चर्चा होने लगी, राजा हेमराज ने राजकुमार का विवाह भी एक सुंदर कन्या से कर दिया।इस विवाह से प्रजा भी प्रसन्न थी और राज्य में अभी मांगलिक चल ही रहे थे।परन्तु प्रारब्ध को तो परिवर्तित नही किया जा सकता है।विवाह के ठीक चौथे दिन यम के दूत राजकुमार के प्राण हरण करने आ पहुंचे।
राजकुमार और राजकुमारी की मनोहारी छवि देखकर यमदूत भी विचलित हो उठे, किंतु राजकुमार के प्राणहरण का अप्रिय कार्य उन्हें करना ही पड़ा।राजकुमार की मृत्यु पर क्रंदन का ऐसा हाहाकार मचा और दारुण दृश्य उपस्थित हुआ जिससे द्रवित होकर दूत भी स्वयं रोने लगे।
अपने दूतों को रोते देख यमराजजी ने अपने दूतों से पूछा कि क्या तुम्हें इस जीव पर इतनी दया आ गई कि इसे जीवित रहने दिया जाए?इस पर एक दूत ने सिर झुकाकर निवेदन किया कि नाथ! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इस प्रकार की मृत्यु से प्राणियों को छुटकारा मिल जाए?इस पर यमराज जी ने कहा कि जीवन और मृत्यु सृष्टि का अटल नियम है तथा इसे बदला नहीं जा सकता। यमुना में स्नान कर, यम का पूजन-दर्शन अकाल मृत्यु से और रोग से मुक्त जीवन प्राप्त किया जा सकता है। इसके बाद हेमराज और उसकी प्रजा ने रात्रि काल में दीप जलाकर यमराज की पूजा की, जिससे यमराज प्रसन्न हुए और यमदूतों ने राजकुमार के हरे प्राण को वापस लौटा दिया। तब से दीपावली की एक दिन पूर्व रात्रि कल में यमराज को दीप दिखाकर पूजा करने की परंपरा प्रारंभ हो गई।