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क्या है लिली थॉमस केस? जिसके चलते रद्द हुई राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता

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अखिलेश अखिल
कब कौन सा कानून किस पर भारी पड़ेगा यह कौन जानता है ?लेकिन सच की लड़ाई लड़ने वाले इसकी परवाह कहां करते। एक समय आज से दस साल पहले जिस कानून की आर लेकर लालू प्रसाद बचना चाहते थे और राहुल गांधी ने जिस अध्यादेश को फाड़ तक दिया था वही कानून आज राहुल पर भारी पड़ गया। तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और राहुल राजनीति में सफाई चाहते थे। उन दिनों वे लालू प्रसाद के खेल से परेशान भी थे। सरकार के अध्यादेश को राहुल ने फाड़ दिया। लालू जेल गए। उनकी सांसदी भी खत्म हुई और कह सकते है कि उनकी राजनीति ही समाप्त हो गई। आज भले ही लालू प्रसाद कांग्रेस के सहयोगी है लेकिन आज लालू प्रसाद को भी राहुल की हालत पर दया आ रही होगी और दुख भी हो रहा होगा।

राहुल ने जिस बिल की प्रति को संसद में फाड़ा,उसी के तहत हुई सजा

ध्यान रहे कि लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए यूपीए शासन काल में मनमोहन सिहं सरकार द्वारा भी एक अध्यादेश लाया गया था, लेकिन जब इस बिल को संसद के पटल पर रखा जा रहा था तब राहुल गांधी ने इसका विरोध करते हुए बिल की प्रति को संसद में फाड़ दिया था, जिसके बाद मनमोहन सिंह की सरकार ने अध्यादेश वापस ले लिया था। तब राहुल गांधी ने इस फैसले को राजनीति से भ्रष्टाचार को खत्म करने का औजार बताया था।

उस वक्त राहुल गांधी ने कहा था कि लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के मामले में कोर्ट का फैसला पूरी तरह न्यायिक है, क्योंकि यदि आरोप सिद्धि के दिन से ही जनप्रतिनिधियों की सदस्यता खत्म नहीं की जाती है तो भारतीय राजनीति में जड़ जमा चुका भ्रष्टाचार को खत्म नहीं किया जा सकेगा।

आज उसी फैसले के आधार पर राहुल गांधी की संसद सदस्यता को खत्म कर दिया गया है। राहुल गांधी को दोष सिद्ध होते ही इसी फैसले को आधार बनाते हुए लोकसभा सचिवालय ने उनकी संसद सदस्यता को खत्म करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। अब अचानक से लिली थॉमस बनाम भारत सरकार के फैसले को चुनौती देने की मांग की जाने लगी है। इस बाबत अब सुप्रीम कोर्ट में आज ही एक याचिका भी पहुंच गई है।

क्या है लिली थॉमस मामला

बता दें कि लिली थॉमस बनाम भारत सरकार मामले आज भी एक नजीर है । आपराधिक मामलों में दोषी पाए गए राजनेताओं को पद से हटने और चुनावों में भाग नहीं लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को एक बड़ा फैसला दिया था। लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई विधायक, सांसद या विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और इसमें उसे कम से कम दो साल की सजा होती है तो ऐसे में वो तुरंत अयोग्य घोषित माना जाएगा।

केरल की वकील लिली थॉमस ने दायर की थी जनहित याचिका

दरअसल 2005 में केरल की वकील लिली थॉमस और एनजीओ लोक प्रहरी के महासचिव एसएन शुक्ला ने शीर्ष अदालत के समक्ष एक जनहित याचिका दायर कर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 यानी आर पी ए की धारा 8 (4) को चुनौती दी थी । जो कि हाई कोर्ट में लंबित अपीलों के कारण सजायाफ्ता विधायकों को अयोग्यता से बचाता था। लिली थॉमस की इस याचिका के जरिए सजायाफ्ता राजनेताओं को चुनाव लड़ने या आधिकारिक सीट रखने से रोककर आपराधिक तत्वों से भारतीय राजनीति को साफ करने की मांग की गई थी। इसने संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191(1) की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।

बता दें कि अनुच्छेद 102(1) संसद के किसी भी सदन की सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित करता है जबकि अनुच्छेद 191(1) राज्य की विधान सभा या विधान परिषद की सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित करता है। दलील में तर्क दिया गया कि ये प्रावधान केंद्र को और अयोग्यताएं जोड़ने का अधिकार देते हैं । बता दें कि इस फैसले से पहले सजायाफ्ता सांसद आसानी से अपनी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे और अपनी आधिकारिक सीटों पर बने रह सकते थे।

10 जुलाई, 2013 को सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस एके पटनायक और एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि, “संसद के पास अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (4) को अधिनियमित करने की कोई शक्ति नहीं है और तदनुसार अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (4) संविधान से असंगत है ।” कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि संसद या राज्य विधानमंडल के किसी मौजूदा सदस्य को आरपीए की धारा 8 की उप-धारा (1), (2), और (3) के तहत किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है, तो “इस तरह की दोषसिद्धि और/या सजा के आधार पर” उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा ।”

अदालत ने यह भी कहा था कि एक सजायाफ्ता सांसद या विधायक की सदस्यता अब धारा 8 (4) द्वारा संरक्षित नहीं होगी, जैसा कि पहले के मामलों में होता था।

राहुल गांधी के पास क्या विकल्प हैं?

जहां तक अब राहुल गांधी के सामने विकल्प की बात है ऐसे में दोषसिद्धि के फैसले को चुनौती देने के लिए राहुल गांधी को पहले सूरत सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा। अगर यहां या फिर किसी हायर कोर्ट द्वारा फैसला रद्द नहीं किया जाता है या उनके दोषसिद्धि पर स्टे नहीं लगता है तो राहुल गांधी की सदस्यता बहाल नहीं हो सकेगी। फैसला रद्द नहीं होने की स्थिति में राहुल गांधी को अगले आठ वर्षों तक चुनाव लड़ने की अनुमति भी नहीं दी जाएगी।

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