अखिलेश अखिल
कल त्रिपुरा में मतदान है। 60 सदस्यीय त्रिपुरा विधान सभा के लिए एक तरफ बीजेपी गठबंधन पूरी ताकत से फिर से वापसी चाहता है तो दूसरी तरफ कभी एक दूसरे के धुर विरोधी रहे कांग्रेस और माकपा गठबंधन कर बीजेपी को सत्ता से हटाने को तैयार है। एक तीसरा धड़ा टिपरा मोथा पार्टी का भी है जिसका स्थानीय आदिवासी जन जातियों पर खास पकड़ है। इस पार्टी की अगुवाई त्रिपुरा के स्थानीय राजवंश से जुड़े प्रद्योत देव बर्मा कर रहे है ।प्रद्योत की कोशिश है कि विधान सभा खंडित हो जाए और वे किंग मेकर की भूमिका में दिखें ।इसकी संभावना भी दिख रही है ।अगर प्रद्योत की पार्टी कुछ सीटें लाने में सफल होती है तो संभावना इस बात की हो गई है कि प्रद्योत कांग्रेस गठबंधन को सपोर्ट करेंगे ।माकपा 43 सीटों पर लड़ रही है जबकि कांग्रेस 13 सीटों पर लड़ रही है ।उधर बीजेपी जहां 55 सीटों पर लड़ रही है वही उसकी सहयोगी पार्टी आईआईटीएफ 5 सीटों पर मैदान में है। मुकाबला बेहद रोचक है ।
लेकिन सबकी निगाहें कांग्रेस माकपा गठबंधन पर है ।अभी तक जहां भी ये दोनो दल मिलकर लड़े है चुनाव हारे हैं बंगाल चुनाव इसका बड़ा उदाहरण है ।लेकिन जानकर मान रहे है कि अगर त्रिपुरा में यह गठबंधन बेहतर कर गया तो भविष्य में विपक्षी एकता को बल मिलेगा और इसके साथ ही देश में कांग्रेस के साथ गठबंधन की राजनीति तेज हो सकती है ।महाराष्ट्र भी त्रिपुरा को देख रहा है ।उसके परिणाम महा अघारी को मजबूत कर सकता है ।लेकिन त्रिपुरा में यह गठबंधन कुछ भी करने में विफल रहा तो कांग्रेस की आगामी योजना पर पानी फिर सकता है ।
बता दें कि चुनाव की घोषणा से पहले तक त्रिपुरा में वामदलों और कांग्रेस में महासंग्राम की स्थिति थी। कार्यकर्ता और नेता आपस में भिड़ रहे थे। जैसे ही चुनाव की घोषणा हुई दोनों एक हो गए। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या शीर्ष स्तर पर गठबंधन के बाद कार्यकर्ता भी एक-दूसरे के साथ आ चुके हैं। अगर ऐसा हुआ तो लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों के एक मंच पर आने की बात को बल मिल सकता है। अगर नहीं हुआ तो बंगाल के बाद त्रिपुरा का संकेत भी साफ निकलेगा। ऐसा ही सबक यूपी में भी अखिलेश यादव को मिल चुका है। वर्षों तक बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी एक-दूसरे के प्रबल विरोधी रहे, परंतु 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर लिया। परिणाम ने अखिलेश की आंखें खोल दी। उन्होंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ बसपा से भी पिंड छुड़ा लिया।
उधर ,त्रिपुरा में कांग्रेस-वामदलों की संयुक्त शक्ति के आगे अगर भाजपा कमजोर पड़ जाती है तो लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष को एक फार्मूला मिल जाएगा। महाराष्ट्र में शिवसेना (ठाकरे गुट) को कांग्रेस और राकांपा का सहारा मिल सकता है। इसी तरह बिहार में जदयू और राजद की दोस्ती रंग ला सकती है। उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भाजपा के साथ राजनीति करते हुए अपनी जमीन तैयार की है। इसी तरह बिहार में भाजपा के साथ तालमेल कर चुनाव लड़ते आ रहे जदयू भी त्रिपुरा से सबक लेने की स्थिति में होगा।