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उत्तर प्रदेश: निकाय चुनाव को लेकर OBC आरक्षण के लिए आयोग गठित,सेवानिवृत्त जज राम अवतार सिंह होंगे अध्यक्ष

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लखनऊ (बीरेंद्र कुमार): निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ का निर्णय आने के बाद सरकार ने इस पर तेजी दिखाते हुए ओबीसी आयोग का गठन कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार की दोपहर इस प्रस्ताव को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी और इसके बाद शाम को नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत अभिजात ने आयोग गठन संबंधी अधिसूचना जारी कर दी।

क्या था न्यायालय का निर्देश?

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ओबीसी आरक्षण लागू किए बिना ही यूपी में चुनाव कराने का सरकार को निर्देश दिया था।हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट के फार्मूले के बारे में भी जानकारी मांगी थी। इसमें पूछा गया था कि क्या आयोग का गठन कर लिया गया है? इस मामले में राज्य सरकार ने साफ कह दिया कि वह पिछड़ों को आरक्षण दिए बिना चुनाव नहीं करना चाहती है। ट्रिपल टेस्ट के आधार पर निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग को आरक्षण के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया गया है। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही यूपी के निकाय चुनाव में पिछड़े वर्गों का आरक्षण निर्धारित होगा।

कौन कौन हैं आयोग में?

निकाय चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के निर्देश के बाद सरकार ने पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए अध्यक्ष सहित पांच सदस्यीय आयोग का गठन किया है। इस आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति राम अवतार सिंह हैं।पूर्व आईएएस शिव सिंह वर्मा,पूर्व आईएएस महेंद्र कुमार,पूर्व अपर बुद्धि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा, और अपर जिला जज बृजेश कुमार सोनी इसके सदस्य बनाए गए हैं।आयोग को 6 महीना के अंदर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है।

न्यायालय के निर्देश के बाद आरक्षण को लेकर सरकार पर विपक्ष हुआ हमलावर

इससे पूर्व उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने रेपिड सर्वे के आधार पर पिछड़ों को आरक्षण देकर निकाय चुनाव कराने की तैयारी की थी।इसपर हाई कोर्ट ने सरकार को बिना पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिए ही राज्य में निकाय चुनाव कराने का निर्देश दिया था।हाई कोर्ट से सरकार को पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण के बिना चुनाव कराने के आदेश के बाद विपक्षी दल कांग्रेस,एसपी,और बीएसपी ने भारतीय जनता पार्टी को निशाने पर लेते हुए कहा की बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार आरक्षण को खत्म करने के लिए ही यह सब कर और कर रही है। यह बात दिगर है कि इनके शासनकाल में भी पिछड़े वर्ग के रैपिड सर्वे के आधार पर ही उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव संपन्न होते आए हैं।

विपक्ष के आरोप पर सरकार का पलटवार

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के निर्देश के बाद विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा सरकार पर हुए हमले का जवाब देते हुए राज्य सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करने के साथ ही यह साफ कर दिया कि निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 में वर्ष 1994 से व्यवस्था की गई है। इसके आधार पर रैपिड सर्वे यानी पिछड़ों की गिनती कराते हुए आरक्षण दिया जाता रहा है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 1994 के बाद अब तक नगर निकायों के सभी चुनाव (वर्ष 1995 ,2000,2006 2012 और 2017) इसी अधिनियम में दिए गए प्रावधानों और रैपिड सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर कराए गए थे। अधिनियम में दी गई व्यवस्था और रैपिड सर्वे के शासनादेश वर्ष 2022 को हाईकोर्ट द्वारा निरस्त नहीं किया गया है।

 

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