विकास कुमार
लंबे अरसे से बीजेपी का तीन मुख्य एजेंडा रहा है, इनमें पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था,दूसरा, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराना था और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है। पहले दो एजेंडे को पूरा करने के बाद अब बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दे रही है। लिहाजा, 22वें विधि आयोग ने यूसीसी पर 30 दिन के भीतर अपनी राय देने की अपील की है। वहीं बीजेपी कार्यकर्ताओं की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर से समान नागरिक संहिता की चर्चा छेड़ दी है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम का लागू होना है। दूसरे शब्दों में कहें तो सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे। संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है। अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। गौरतलब है कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है।
समान नागरिक कानून का जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में भी किया गया था.। इसमें कहा गया था कि अपराधों, सबूतों और ठेके जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है। इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है। हालांकि, 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव समिति का गठन किया गया। राव समिति की सिफारिश पर 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया। हालांकि, मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिए अलग कानून रखे गए थे।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है। ये दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में शामिल है। साथ ही हमारे पास संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है,जो संपत्ति और उससे जुड़े मामलों से संबंधित है। ये पूरे देश में समान रूप से लागू है। इसके अलावा नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट हैं। उन्होंने संविधान सभा में कहा कि मैं ऐसे कई कानूनों का हवाला दे सकता हूं, जिनसे साबित होगा कि देश में व्यावहारिक रूप से समान नागरिक संहिता है। इनके मूल तत्व समान हैं और पूरे देश में लागू हैं। आंबेडकर ने कहा कि सिविल कानून विवाह और उत्तराधिकार कानून का उल्लंघन करने में सक्षम नहीं हैं।
अभी भारत में क्रिमिनल लॉ सबके लिए समान है। लेकिन धार्मिक मामलों में सभी के लिए कानून अलग हैं। हालांकि, भारत जैसे विविधता वाले देश में समान नागरिक संहिता को लागू करना इतना आसान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने हिसाब धर्म मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है। इस बेहद संवेदनशील मुद्दे पर सरकार को सभी वर्गों से खुलकर संवाद करना चाहिए। सार्थक संवाद के जरिए ही समान नागरिक संहिता को देश में लागू करना चाहिए। क्योंकि किसी भी कानून को जबरन थोपना लोकतंत्र के मूल्यों के विरुद्ध है।