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केजरीवाल के साथ हेमंत सोरेन की बैठकी के मायने समझिये –

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अखिलेश अखिल
राजनीति करवट बदले और नेताओं का मिजाज कब बदल जाए यह कौन बताएगा ? यही वहज है कि राजनीति समय और परिस्थिति के मुताबिक़ बदलती है और सत्ता का खेल अबूझ पहेली बन जाता है। ये बाते अभी इसलिए कही जा रही है कि कल झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन की बैठक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरबिंद केजरीवाल के साथ हुई। मुलाकात गर्मजोशी वाला रहा। दोनों नेताओं के बीच बातें हुई है ऐसा कहा जा रहा है। क्या बातें हुई इसका खुलासा नहीं है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में जो चर्चा है उसके मुताबिक आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों नेताओं में बातचीत हुई है।

हेमंत सोरेन अभी यूपीए फोल्ड के हिस्सा हैं और कांग्रेस के साथ मिलकर हेमंत झारखंड में सरकार भी चला रहे हैं। लेकिन हेमंत की दिक्कत ये है कि विपक्षी एकता के लिए जितने धरो द्वारा प्रयास जारी है ,सब में उनकी सहमति दिख रही है। वे केसीआर के साथ भी नजर आते हैं और केजरीवाल के साथ भी। वे कांग्रेस के साथ भी हैं और नीतीश कुमार के साथ भी। वे पवार कैम्प के साथ भी हैं और सभी के साथ भी। इससे राहुल को भी दिक्कत होती नजर आ रही है।

हेमंत सोरेन दिल्ली पहुंचे थे बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्डा के बेटे की शादी में भाग लेने। रविवार को यह शादी हुई थी। देश के बड़े -बड़े नेता इसमें शरीक हुए थे। पक्ष वाले भी और विपक्ष वाले भी। इसी शादी में केजरीवाल भी गए थे। बातें तो सभी नेताओं की सभी नेताओं की सभी से हुई लेकिन बाद में चर्चा हेमंत और केजरीवाल की मुलाकात पर आ गई। कहा जा रहा है कि केजरीवाल भी एक बीजेपी विरोधी मोर्चा तैयार करना चाहते हैं। यह बात और है कि केजरीवाल काफी समय से केसीआर के साथ हैं और उनके हर कार्यक्रम में केजरीवाल हिस्सा लेते हैं। लेकिन भीतर से यह भी कहा जाता है कि केजरीवाल खुद भी प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं।

केजरीवाल और हेमंत की मुलाक़ात के मायने चाहे जो भी हो लेकिन इतना तो साफ़ है कि केजरीवाल केसीआर की राजनीति को आगे बढ़ाते जा रहे हैं। केसीआर की चाहत यही है कि गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस एकता बने और बीजेपी को हराया जाए। लेकिन हेमंत तो अभी यूपीए के साथ हैं। उधर कांग्रेस भी विपक्षी एकता को लेकर काम कर रही है। विपक्षी पार्टियां जानती हैं कि कांग्रेस के बिना कोई भी एकता संभव नहीं है। लेकिन विपक्ष के कई नेता यह मान रहे हैं कि कांग्रेस के बिना पहले सभी विपक्ष चुनाव लड़े और फिर बाद में कांग्रेस के साथ शर्तों पर बात करे। कांग्रेस को साथ लाये। अगर विपक्ष को ज्यादा सीटें मिलती है तो कांग्रेस को सपोर्ट देकर विपक्ष की सरकार बनानी पड़ेगी।

लेकिन क्या इस खेल में हेमंत कारगर होंगे ? यह बड़ा सवाल है। अगर हेमंत कांग्रेस से अलग होकर किसी भी धरे में जाते हैं तो उससे बेहतर तो उन्हें बीजेपी के साथ ही जाना चाहिए। लेकिन क्या यह संभव है ?सच तो यही है कि हेमंत की यह चाल कांग्रेस समझ रही है और उस पर नजर भी लगाए हुए है।

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