उदय भारतम् के रूप में भारत के राजनीतिक क्षितिज पर एक ऐसी सोच वाली पार्टी का प्रादुर्भाव हुआ है,जो भारत की प्राचीन गरिमा स्थापित करने के साथ- साथ भारतीय समाज को नवोन्मेषी सोच से परिपूर्ण,आत्मनिर्भर, और सर्व शक्तिशाली प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।प्रस्तुत अनुच्छेद में भारत और भारतीय जैसे शब्दों की कई बार पुनरावृति हुई है।आइए जानते हैं इन शब्दों का पौराणिक और संवैधानिक महत्व के साथ ,- साथ उदय भारतम् पार्टी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों की इसे लेकर पार्टीगत विचारधारा।
भारत और भारतीय को लेकर पुराणों में उल्लेख है।
उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्। वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः’ ।।
अर्थात समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं और उनकी संतानों को भारती कहते हैं।
इस प्रदेश के भारत नाम होने को लेकर तीन विचार प्रमुख हैं।
1. एक विचार के अनुसार राजा दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम पर इस प्रदेश का नाम भारत पड़ा था।
2. दूसरे सिद्धांत के अनुसार इस क्षेत्र का नाम भारत, वैदिक काल की एक जनजाति जिसे भारत कहा जाता था, उसके नाम पर आधारित है।
3. इस क्षेत्र के भारत नामकरण के तीसरे सिद्धांत के अनुसार इस क्षेत्र के लिए भारत शब्द विष्णु पुराण,अग्नि पुराण और स्कंद पुराण से आया है, जिसमें यह वर्णन है कि भारत नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर आधारित है, जिसका जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था।
इस प्रदेश के नाम भारत पर संवैधानिक रूप से दृष्टिपात करें तो इसकी प्रस्तावना में लिखा है ‘ हम भारत के लोग ‘, वहीं दी कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के प्रिएंबल में लिखा है, ‘ वी द पिपुल ऑफ इंडिया’।
इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक में लिखा है इंडिया अर्थात भारत राज्यों का संघ होगा। वही द कॉन्स्टिट्यूशन ऑफ़ इंडिया के आर्टिकल 1 में लिखा है इंडिया दैट इज भारत शैल बी ए यूनियन का स्टेटस
भारतीय संविधान में आज भले ही इस देश के लिए इंडिया अर्थात भारत या इंडिया दैट इज भारत प्रयुक्त हो रहा है।लेकिन राष्ट्रवादियों ने संविधान सभा में इसका जबरदस्त विरोध किया था। संविधान सभा में संविधान के ड्राफ्ट में पहला संशोधन प्रस्ताव इस देश के नामकरण को लेकर ही हुआ था।
बात 18 सितंबर 1949 की है। तब संविधान सभा की बैठक हो रही थी।संविधान के अनुच्छेद-1 से जुड़ा संशोधन संविधान सभा के सदस्य हरि विष्णु कामत (एचवी कामत) पेश कर रहे थे।कामत ने कहा था कि कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि नाम की जरूरत क्या है, इस देश को इंडिया तो कहा ही जाता है, लेकिन जो लोग भारत या भारतवर्ष या भारत भूमि नाम रखना चाहते हैं, उनका तर्क है कि यह इस धरती का सबसे पुराना नाम है।
कामत की बात पर डॉ. बी आर अम्बेडकर सदन में खड़े हो गए थे। उन्होंने तब कहा था कि क्या यह सब पता लगाना जरूरी है? मुझे इसका उद्देश्य समझ में नहीं आता। यह किसी अन्य स्थान पर भी दिलचस्प हो सकता है। मेरे मित्र को “भारत” शब्द स्वीकार है। बात सिर्फ इतनी है कि उन्हें एक विकल्प मिल गया है लेकिन मुझे बहुत खेद है, सदन के सामने समय बहुत कम है। इसे देखते हुए उन्हें इस बात का कुछ एहसास होना चाहिए। मुझे अफसोस है कि इसकी गंभीरता को नहीं समझा जा रहा है।
डॉ भीमराव अंबेडकर के तर्कों के बावजूद एच वी कामत अपनी बातों पर अड़े रहे और संशोधन प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया।हालांकि तब संख्या बल में कम होने के कारण एच वी कामत का प्रस्ताव गिर गया।इसके बाद इस देश का नाम सिर्फ इंडिया की जगह पर इंडिया अर्थात भारत या इंडिया दैट इज भारत पर जबरदस्ती सहमति बनाकर बीच का एक रास्ता निकाल लिया गया,लेकिन राष्ट्र के प्राचीन गौरवशाली नाम से जुड़ा यह मुद्दा अभी भी विभिन्न राजनीतिक दलों के सामने उस रूप में ही खड़ा है जैसा कि यह 18 सितंबर 1949 को था।
इस देश का प्राचीन गौरवशाली नाम भारत को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों की स्थिति पर विचार। करें तो काग्रेस और आम आदमी पार्टी ने कभी भी इस देश का नाम सिर्फ भारत रखने को लेकर कोई प्रयास नहीं किया है।हां आप नेता अरविंद केजरीवाल अपने भाषण के अंत में भारत माता की जय कहकर इस दिशा में अपने कर्तव्यों की इतिश्री करते जरूर नजर आ जाते हैं।
इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के दृष्टिकोण पर विचार किया जाए तो भारतीय जनता पार्टी के सभी बड़े नेता अपने भाषणों में भारत माता की जय का जयकारा लगाते दिख जाते हैं।इसके अलावा भारत में आयोजित जी 20 के सदस्य देशों देश की बैठक में भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से छपवाए गए निमंत्रण कार्ड में सभी विदेशी राष्ट्रध्यक्षों को आमंत्रित करने के दौरान मेहमान के रूप में प्रेसिडेंट आप भारत लिखा गया था,जिसने उस समय बड़ी सुर्खियों बटोरी थी।लेकिन उसके बाद से इस देश का नाम भारत करने की दिशा में भारतीय जनता पार्टी का कोई योगदान नहीं दिख रहा है।
अब बात उदय भारतम् पार्टी की की जाए तो इसके नाम के साथ ही भारत जुड़ा हुआ है,जो भारत के प्राचीन गौरव से इसकी अभिन्नता को प्रकट करता है। वही इस राजनीतिक दल का मानना है कि हम सिर्फ इस देश का नाम इंडिया हटाकर भारत रखनेमात्र के पक्षधर नहीं है, बल्कि हम भारत की सनातन संस्कृति और इसके समृद्ध मूल्य और परंपराओं को बनाए रखने के पक्षपाती हैं।
क्रमशः